दोस्तों क्या आप भी Tenali Raman Short Stories in Hindi के बारे में सर्च कर रहे हैं? अगर ऐसा है तो बिल्कुल सही जगह पर है| क्योंकि आज की इस पोस्ट में हम आपके साथ तेनाली राम की कहानियाँ शेयर करने जा रहे हैं| साथ ही हम आपके साथ तेनालीराम के जीवन परिचय के बारे में भी जानकारी शेयर करने जा रहे हैं| तो चलिए दोस्तों अब हम शुरु करते हैं।
Tenali Raman Short Stories in Hindi Overview
Name of Article | Tenali Raman Short Stories in Hindi | तेनाली राम की कहानियाँ |
Type of Article | Latest Update |
तेनालीराम का संक्षिप्त जीवन परिचय – Tenali Raman Short Stories in Hindi with Moral
तेनालीराम का जन्म 16वी शताब्दी में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के गुन्टूर जिले के गाँव गरलापाडुएक में ब्राह्मण परिवार में हुआ था| उनका शुरुआती नाम तेनाली रमन था। वह शैव धर्म को मानते थे| परंतु बाद में वह वैष्णव धर्म को मानने लगे और अपना नाम तेनालीराम कृष्ण रख लिया था। तेनालीराम कभी भी विधिवत शिक्षा ग्रहण करने के लिए नहीं गए थे| उन्होंने संत महात्माओं और स्वयं स्वाध्याय के द्वारा की शिक्षा ग्रहण करी थी।
तेनालीराम बहुत ही बुद्धिमान इंसान थे वह हमेशा अपने हास्य स्वभाव की वजह से जाने जाते थे| परंतु वह जो भी कहानियां लिखा करते थे वह उसमें वह किसी ना किसी संदेश को देते हुए नजर आते थे| वह इतने बुद्धिमान थे कि माना जाता है कि उनकी विद्वता के लिए स्वयं साक्षात काली मां का आशीर्वाद था|
तेनालीराम राजा कृष्णदेव राय के दरबार में हास्य कवि और मंत्री थे| राजा कृष्णदेव राय तथा तेनालीराम के बीच हादसे की कहानियां बहुत सारी है जो कि समाज को शिक्षित करने वाली हैं| जिनमें से कुछ कहानियों के बारे में अब हम आपको बताने जा रहे हैं। तो चलिए दोस्तों अब हम तेनालीराम की कहानी शुरू करते हैं।
कर्ज से मिली मुक्ति
एक बार की बात है कि तेनालीराम की पत्नी काफी दिनों से बीमार थी और उसकी बीमारी दिन-बर-दिन बढ़ती जा रही थी| तेनालीराम अपनी पत्नी का इलाज करवाना चाहता था परंतु उसके पास इतना धन नहीं था कि वह अपनी पत्नी का ठीक से इलाज करवा सके और उसे स्वस्थ बना सके| तेनालीराम ने महाराज से धन कर्ज लेने के बारे में सोचा और दरबार में चला गया|
दरबार में जाकर तेनालीराम ने महाराज को बोला महाराज की जय हो| महाराज मेरी पत्नी बहुत ज्यादा बीमार है| मुझे आपसे धन की आवश्यकता है| आप मुझे कृपया करके राजकोष से उधार दे दे ताकि मैं अपनी पत्नी का इलाज करवा सकूं।
महाराज ने जवाब दिया कि तेनालीराम तुम हमारे प्रिय मित्र और दरबार के श्रृंगार हो| तुम्हें जितने भी धन की जरूरत है तुम राजकोष से ले जाओ| यह बात सुनकर तेनालीराम खुश हो गया और उसने महाराज को बोला कि महाराज मैं आपका सदा आभारी रहूंगा| फिर तेनालीराम अपनी जरूरत के अनुसार राजकोष से धन ले गया और उसे अपनी पत्नी के इलाज में लगाने लगा|
कुछ समय के बाद तेनालीराम की पत्नी स्वस्थ और कुशल हो गई| परंतु अब तेनालीराम की परेशानियां और भी ज्यादा बढ़ गई थी क्योंकि तेनालीराम जानता था कि उसे अब महाराज को धन वापस लौटाना है| परंतु उसके सबसे बड़ा प्रश्न यह था कि वहां धन कहाँ से लाएगा| इसलिए वह महाराज से दूरियां बनाने लगा| उसके विचारों के बारे में महाराज को मालूम हो गया था| इसलिए तेनालीराम महाराज को यहाँ भी मिलता महाराज हमेशा उसे धन लौटाने तो कहते रहते|
परन्तु तेनालीराम के पास धन नहीं था और वह बहुत ज्यादा परेशान था कि धन कहां से लौटाएगा। तेनालीराम ज्यादा बुद्धिमान था उसने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल किया और धन ना लौटने के लिए एक युक्त लगाई और विचार किया कि मैं महाराज को धन नहीं लौटाऊंगा और उनके मुख से ही धन की माफी का वचन ले लूंगा।
ठीक ऐसा ही हुआ तेनालीराम ने जो योजना बनाई थी उस योजना के अनुसार तेनालीराम अपने बिस्तर पर लेट गया और दरबार में अपने बीमार होने की खबर पहुंचा दी| यह सुनकर महाराज चिंतित हो गए और उसी समय तेनालीराम के घर उसका हाल चाल पूछने के लिए पहुंच गए| जैसे ही महाराज पहुंचे तेनालीराम की पत्नी ने कहा कि इनका समय निकट आ गया है|
यह ना कुछ खा रहे हैं, ना कुछ पी रहे हैं, इन्होंने मरनग्रहण कर लिया है। जब महाराज ने तेली राम से हालचाल पूछा तो तेनालीराम ने कहा कि महाराज मेरा समय निकट आ गया है और आप से लिया हुआ धन मुझे मरने भी नहीं दे रहा है यह मेरे ऊपर बहुत बड़ा बोझ है| जब तक मैं आपके राजकोष से लिया हुआ धन जमा नहीं करूंगा तब तक मुझे मृत्यु भी नहीं आएगी|
यह बात सुनकर महाराज ने तेनालीराम को आश्वासन दिया और कहा कि मैं तो तुमसे मजाक में धन मांगा करता था। मुझे धन नहीं चाहिए महाराज के मुख से यह वचन सुनते ही तेनालीराम झटपट खड़ा हो गया| यह देखकर महाराज भी आश्चर्यचकित हो गए और उन्होंने तेनालीराम से पूछा:-
अरे तेनालीराम तुम तो बहुत ज्यादा बीमार थे, तुम तो मरने वाले थे तो तेनालीराम ने इसके जवाब में महाराज को बोला कि महाराज आप से लिया हुआ कर्ज मुझे मरने नहीं दे रहा था| अब आपने मेरे सर से कर्ज हटा दिया है तो मैं भी स्वस्थ हो गया हूं, मेरी बीमारी दूर हो गई है और धन्य है महाराज आपने मुझे नया जीवन दिया है। तेनालीराम की यह बात सुनकर महाराज बहुत ज्यादा हैरान हो गए और खुद को ठगा हुआ महसूस करने लगे।
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नैतिक शिक्षा
इंसान को कभी भी किसी भी स्थिति से घबराना नहीं चाहिए बल्कि धैर्य के साथ काम लेना चाहिए| जैसे की तेनालीराम संकट में गिरने के बाद भी अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करता है और परिस्थिति में विजय प्राप्त कर लेता है।
जिस परिस्थिति में आम मनुष्य घबरा जाता है और हार मान कर बैठ जाता है उस परिस्थिति में भी तेनालीराम ने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल किया और वह जीत जाता है।
हीरों का सच
एक बार राजा कृष्णदेव अपने दरबार में मंत्रियों के साथ बैठकर विचार विमर्श कर रहे थे| तभी एक आदमी उनके दरबार में आया और कहने लगा महाराज मेरे साथ न्याय करें| मेरे मालिक ने मुझे धोखा दिया है| इतनी बात सुनते ही महाराज ने पूछा तुम कौन हो और तुम्हारे साथ क्या हुआ है| यह सुनते ही उस व्यक्ति ने बोला कि मेरा नाम नामदेव है| कल मैं अपने मालिक के साथ किसी काम से एक गांव में मैं जा रहा था|
उस समय वहां पर काफी ज्यादा गर्मी थी| गर्मी की वजह से हम दोनों एक पेड़ के नीचे जाकर बैठ गए जो कि एक मंदिर के पास था| वहां पर मंदिर के कोने पर मुझे लाल रंग की थैली पड़ी हुई दिखाई दी| मैंने अपने मालिक की आज्ञा ली और उस थैली को अपने मालिक के पास उठा लाया| जैसे ही हमने थैली को खोला उसमें बेर के आकार के दो हीरे चमक रहे थे। क्योंकि हीरे मंदिर में पाए गए थे तो इसलिए उन पर राज्य का अधिकार था| परंतु मेरे मालिक ने मुझसे कहा कि वह यह बात वह किसी को भी ना बताएं क्योंकि हम दोनों लोग एक एक हीरा आपस में बांट लेंगे।
तब मैंने थोड़ा सा मैं सोचा और मैं खुद भी मालिक की गुलामी से परेशान था और खुद का कुछ काम करना चाहता था| मालिक की यह बात सुनकर मेरे मन में भी लालच आ गया और मैंने भी सोचा कि हीरा पाकर मैं भी अपना कुछ ना कुछ काम शुरू कर लूंगा| परंतु जैसे ही हम लोग मालिक की हवेली में गए तो मालिक ने मुझे हीरे देने से इनकार कर दिया| यही कारण है कि मुझे इंसाफ चाहिए। महाराज कृष्ण राय ने नामदेव की बात सुनकर अपने कोतवाल को बुलाया और उसके मालिक के घर भेज कर उसे महल में पेश होने के लिए आदेश दिया|
फिर नामदेव के मालिक को दरबार में बुलाया गया और उससे पूछा गया कि बताओ आखिर सच क्या है| तो उसके मालिक ने बोला कि महाराज यह बात सच है कि हमें थैली मंदिर के पास मिली’थे| लेकिन मैंने वह दोनों हीरे नामदेव को दे दिए और राजकोष में जमा करवाने के लिए बोला था| फिर नामदेव हीरे लेकर दरबार की ओर निकल पड़ा|
जब नामदेव वापस आया तो मैंने नामदेव से पूछा कि क्या तुमने हीरे जमा करवा दिए हैं नामदेव ने बोला कि हाँ मेने जमा करवा दिए हैं| फिर मैंने नामदेव से उन हीरो की रसीद मांगी तो नामदेव आनाकानी करने लगा और जब मैंने नामदेव को धमकाया तो वह आपके पास आ गया और मनगढ़ कहानियां सुनाने लगा|
यह बात सुनकर महाराज ने बोला कि अच्छा यह बात है और कुछ समय सोचने के बाद नामदेव के मालिक से पूछा कि जो तुम बता रहे हो इसका तुम्हारे पास कोई सबूत है कि तुम सच बोल रहे हो तो नामदेव के मालिक ने बोला अगर आपको मेरी बात पर यकीन नहीं है तो आप मेरे तीनों नौकरों को बुला सकते हैं क्योंकि वह भी उस समय पास में खड़े थे।
यह बात सुनकर महाराज ने उसके मालिक के तीनों नौकरों को दरबार में बुलाया और तीनों नौकरों से पूछना शुरू कर दिया और तीनों नौकरों ने ही नामदेव के खिलाफ ही गवाही दी। उसके बाद महाराज उन तीनों नौकरों और मालिक को दरबार में बिठाकर अपने विश्राम कक्ष में चले गए और साथ में तेनालीराम सोनापति और महामंत्री को भी ले गए|
वहां पर जाकर इस विषय में उनसे बात करने लगे फिर सबसे पहले महाराज ने महामंत्री से पूछा कि आपको क्या लगता है तो महामंत्री ने बोला कि नामदेव झूठ बोल रहा है क्योंकि उसके मन में लालच आ गया होगा और उसने हीरो को अपने पास ही रख लिया होगा। फिर महाराज ने सोनपति से पूछा तो सुनपति ने बोला कि गवाह झूठ बोल रहे हैं और उसके हिसाब से नामदेव सच बोल रहा है|
परंतु उस समय तेनालीराम चुपचाप खड़ा था फिर महाराज ने तेनालीराम से पूछा कि तुम्हें क्या लग रहा है| तेनालीराम ने बोला महाराज कौन सच बोल रहा है कौन झूठ बोल रहा है इस बात का अभी पता लग जाएगा आप मुझे कुछ समय दीजिए मेरे दिमाग में एक युक्त आई है|
आप तीनों पर्दे के पीछे जाकर छुप जाए और मैं तीनों से पूछना चाहता हूं| महाराज ने तेनालीराम की बात को स्वीकार कर लिया और तीनों जाकर पर्दे के पीछे छुप गए और फिर 3 नौकरों को अंदर बुलाया गया। तेनालीराम ने सबसे पहले गवाह से पूछा क्या तुम्हारे मालिक ने तुम्हारे सामने ही नामदेव को हीरे दिए थे तो गवाह ने बोला जी हां|
फिर तो तुम्हे मालूम ही होगा हीरे किस रंग के थे और हीरों का अकार क्या था| तेनालीराम ने उसे कागज और कलम दे दी और कहा कि तुम मुझे हीरो का चित्र बनाकर दिखाओ यह बात सुनते ही गवाह सुन हो गया और घबरा गया| उसने बोला कि मैंने हीरो को नहीं देखा है क्यूंकि वह लाल रंग की थैली में थे। तेनालीराम ने पहले गवाह कहा कि तुम वहां जाकर चुपचाप खड़े हो जाओ फिर दूसरे गवाह को बुलाया गया उस से भी यही सवाल पूछा गया उसने हीरो के बारे में बता कर कागज में दो गोल गोल आकृतियां बनाकर अपनी बात को सच साबित किया|
फिर उसने तीसरे गवाह को पास में बुलाया और उससे भी यही सवाल पूछा तो उसने बोला कि हीरे भोजपत्र की थैली में थे| इस वजह से हीरो को नहीं देख पाया है| इतना सुनते ही महाराज उसके सामने आ गए| महाराज को देख कर वह हैरान हो गए और समझ गए कि वह अब पकड़े गए हैं उनको अब सच बोलना ही होगा| फिर वह महाराज के पैरों में गिर गए और उनके पैर पकड़ कर कहने लगे कि हमें ऐसा बोलने के लिए हमारे मालिक ने धमकाया था और अगर हम ऐसा नहीं बोलते है तो मालिक हमें हमारी नौकरी से निकाल देंगे।
यह बात सुने ही महाराज ने नामदेव के मालिक के घर में तलाशी लेने के आदेश दे दिए और तलाशी में उसके घर से दोनों हीरे बरामद हो गए। महाराज ने नामदेव के मालिक को 10000 स्वर्ण मुद्राएं नामदेव को देने का हुक्म दिया और जुर्माने के तौर पर 20000 मुद्राएं राजकोष में जमा करवाने का हुक्म दिया| इस प्रकार महाराज ने तेनालीराम की मदद से नामदेव के हक में फैसला सुनाया।
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Conclusion
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