Swami Vivekananda Motivational Story in Hindi | स्वामी विवेकानंद मोटिवेशनल कहानियां

दोस्तों क्या आप भी Swami Vivekananda Motivational Story in Hindi के बारे में सर्च कर रहे हैं? अगर ऐसा है तो आप बिल्कुल सही जगह पर आए है| क्योंकि आज के इस लेख में हम आपके साथ स्वामी विवेकानंद जी की मोटिवेशन से भरपूर कहानियां शेयर करने जा रहे हैं| 

आज के इस पोस्ट में हम आपके साथ स्वामी विवेकानंद जी के सरल स्वभाव और उनकी सूझबूझ वाली कुछ चुनिंदा स्वामी विवेकानंद मोटिवेशनल कहानियां शेयर कर रहे हैं, जिनको पढ़ने के बाद आपको भी अपने जीवन के लिए अच्छी सीख मिलेगी और आप भी स्वामी विवेकानंद जी के बताए हुए रास्ते का पालन करेंगे| तो आइए दोस्तों अब हम शुरू करते हैं।

स्वामी विवेकानंद और साधू की कहानी – Swami Vivekananda Motivational Story in Hindi

एक बार की बात है कि स्वामी विवेकानंद जी एक नदी के किनारे पर खड़े थे और वह नाव के आने का इंतजार कर रहे थे| ताकि वह नाव में बैठकर नदी के दूसरे किनारे पर जा सके| इतने में एक साधु नदी के किनारे पर आ गया| उसने स्वामी विवेकानंद को देखा और कहा कि क्या आप ही स्वामी विवेकानंद है तो स्वामी विवेकानंद जी ने मुस्कुराते हुए कहा कि हां मैं ही स्वामी विवेकानंद हूँ|

फिर साधु ने कहा कि मैंने आपके बारे में काफी ज्यादा चर्चे सुने हैं| आप काफी ज्यादा विद्यमान है| लेकिन आप यहां पर खड़े होकर क्या कर रहे हैं? तो स्वामी विवेकानंद ने कहा कि मैं नाव का इंतजार कर रहा हूं ताकि मैं नाव में बैठकर नदी के दूसरे किनारे पर चला जाऊं| इतना सुनने के बाद साधू हंसने लगा और स्वामी विवेकानंद को बोलने लगा की नदी पार करने के लिए नाव की क्या जरूरत है? देखो मैं तुम्हें नदी पार करके दिखाता हूँ| 

साधू पानी के ऊपर चलता हुआ नदी के दूसरी तरफ चला गया और फिर पानी के ऊपर चलता हुआ ही वापस स्वामी विवेकानंद के पास आ गया। साधु स्वामी विवेकानंद के पास आया और कहने लगा कि तुम्हें नदी पार करने का ज्ञान तक नहीं है और लोग तुम्हें फिर भी कितना जानते हैं और देखो मेरे पास नदी पार करने का ज्ञान है लेकिन फिर भी मुझे कोई नहीं जानता| यह सुनकर स्वामी विवेकानंद ने कुछ नहीं कहा इतने में नाव आ गई| 

स्वामी विवेकानंद जी और वह साधू नाव में बैठकर नदी के दूसरे किनारे पर चले गए| दोनों ने अपने अपने हिस्से का 50 पैसा नाव वाले को दिया और नदी के दूसरे किनारे पर उतर गए| फिर स्वामी विवेकानंद जी ने उस साधु को कहा कि मुझे यह बताओ तुमने यह विद्या सीखने में कितना समय लगाया है तो साधु ने कहा कि मुझे 15 साल का समय लगा है| फिर स्वामी विवेकानंद जी ने मुस्कुराते हुए साधु को कहा जो काम तुम 50 पैसे देकर कर सकते हो, उसमें तुमने 15 साल बर्बाद कर दिए| 

ऐसी विद्या का भी क्या फायदा जो किसी के काम ना आए| मैं सिर्फ वही काम करता हूँ, जो किसी के काम आता है और इसीलिए लोग मुझे पहचानते हैं| आप जैसे ऐसे और भी बहुत से लोग हैं जो ऐसे काम करने में अपना समय बर्बाद कर रहे हैं जिनका उनकी जिंदगी में कोई भी उपयोग नहीं है और अपना समय बर्बाद कर रहे हैं| इसलिए काम हमेशा वही करना चाहिए जो किसी के काम आ सके और आपके जीवन में उसका सदुपयोग हो सके। 

नैतिक शिक्षा

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जीवन में कोई भी काम कोई या विद्या सीखने लगे हो तो पहले हमें देख लेना चाहिए कि उसका हमारे जीवन पर क्या असर पड़ सकता है| क्योंकि समय से मूल्य कोई भी चीज नहीं है इसलिए समय बर्बाद तो समझ लो जिंदगी बर्बाद।

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स्वामी विवेकानंद जी और तीन बंदर की कहानी

एक बार स्वामी विवेकानंद जी एक जंगल में से जा रहे थे| तभी रास्ते में उनके सामने तीन बंदर आ गए और वह स्वामी विवेकानंद जी के पीछे-पीछे चलने लगे| कोई बंदर उन पर झपटा मार रहा था तो कोई बंदर उनसे समान छीनने की कोशिश कर रहा था| लेकिन स्वामी विवेकानंद जी बंदरों से घबराते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे| 

इतने में स्वामी विवेकानंद जी को एक आदमी दिखा| उस आदमी ने स्वामी विवेकानंद जी को कहा कि तुम इन बंदरों से डरो मत, तुम जितना इनसे डरोगे ये उतना ही तुम्हे डराएंगे| तुम उनका डटकर सामना करो| यह बात सुनकर स्वामी विवेकानंद जी ने पीछे मुड़कर देखा और जोर से चिल्लाये| स्वामी विवेकानंद जी के चिल्लाते ही बंदर वहां से भाग गए| 

ठीक उसी तरह हमारे जीवन में नकरात्मक सोच भी हमें उसी तरह परेशान करती है जैसे बंदर स्वनी जी को परेशान कर रहे थे| अगर हम नकरात्मक सोच का सामना करेंगे तो यह हमारे जीवन पर कोई भी बुरा प्रभाव नहीं डाल पाएंगे| क्योंकि नकरात्मक सोच हमारे मन से ही पैदा होती है इसलिए अगर हमने इस पर काबू कर लिया तो समझो हमने अपने डर पर भी काबू कर लिया| इसलिए हमें मुसीबत से डरना नहीं बल्कि उसका सामना करना है| 

नैतिक शिक्षा

इस कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है कि अगर हम नेगेटिव सोच से घबरा जायेंगे तो यह हमें उतना ही डराएगी और हम जीवन में कुछ नहीं कर पाएंगे| इसलिए हमें नकरात्मक सोच से भागना नहीं उसका सामना करना है।

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स्वामी विवेकानंद और मूर्तिकार की कहानी

एक बार स्वामी विवेकानंद जी अपने गुरु श्री रामकृष्ण जी के साथ जा रहे थे| तभी रास्ते में उन दोनों को जाते हुए एक मूर्तिकार दिखाई दिया, जो एक पत्थर पर एक तस्वीर बना रहा था| तो रामकृष्ण जी ने उस मूर्तिकार से पूछा कि तुम पत्थर पर क्या बना रहे हो? तो मूर्तिकार ने कहा कि मैं राजा की तस्वीर बना रहा हूँ| फिर रामकृष्ण जी ने पूछा कि क्या तुम्हारे पास राजा की तस्वीर है? तो मूर्तिकार ने कहा नहीं मेरे पास उनकी तस्वीर नहीं है?

इस पर रामकृष्ण जी ने बोला तो तुम अपने राजा की तस्वीर कैसे बनाओगे? फिर मूर्तिकार ने कहा कि राजा की तस्वीर मेरे मन में छपी हुई है और मैं उसी से मूर्ति बनाऊंगा। स्वामी विवेकानंद जी और उनके गुरु रामकृष्ण जी उस मूर्तिकार के पास खड़े रहे और उसे मूर्ति बनाते हुए देखते रहे| देखते ही देखते कुछ समय में मूर्तिकार ने अपने राजा की तस्वीर बना दी| 

इस पर स्वामी विवेकानंद और उनके गुरु रामकृष्ण दोनों हैरान हो गए और उनको अपने कई सवालों के जवाब भी मिल गए| उन्हें समझ आ गया कि अगर आप जीवन में अपनी मंज़िल को पाने की ठान रखी है तो आप उसे किसी भी हालत में हासिल कर सकते है| इसलिए कुछ करने से पहले आपका मकसद साफ़ होना चाहिए|

नैतिक शिक्षा

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि अगर किसी मुकाम को हासिल करने के लिए अपने दिमाग को उस ओर केंद्रित कर दें तो हम अपनी मंजिल को आसानी से हासिल कर सकते हैं।

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स्वामी विवेकानंद जी और अंडों के छिलकों की कहानी

एक बार की बात है कि स्वामी विवेकानंद जी ने भाषण देने के लिए लंदन जाना था| वह अगले दिन भाषण देने के लिए लंदन के लिए जहाज पर रवाना हो गए| भाषण देने से 1 दिन पहले शाम के समय स्वामी विवेकानंद जी शाम को घूमने के लिए बाहर निकल गए| वहां पर पास में एक पुल था| वह उसी पुल के पास घूम रहे थे| घूमते घूमते वह वहां पर एक नदी के पास जा पहुंचे| 

जैसे ही वह नदी के पास पहुंचे उन्होंने देखा कि वहां पर बहुत सारे नौजवान लड़के खड़े थे और वह नदी की ओर देख रहे थे और स्वामी विवेकानंद जी भी उन लड़कों को दूर से देख रहे थे, कि वह क्या कर रहे हैं| फिर देखते ही देखते स्वामी विवेकानंद जी को पता चला कि वह लड़के नदी के ऊपर अंडे के छिलकों को तैरते हुए देख रहे हैं और अंडे के छिलकों को निशाना लगाने की कोशिश कर रहे हैं| लेकिन वह इतने सक्षम नहीं थे कि वह अंडों के छिलकों को निशाना लगा सके| 

कुछ देर स्वामी विवेकानंद जी उन्हें देखते रहे और फिर उनके पास चले गए| स्वामी विवेकानंद जी ने उनसे उनकी बंदूक मांगी और लड़कों ने विवेकानंद जी को बंदूक दे दी| विवेकानंद जी ने पहले छिलके पर निशाना लगाया और सटीक जगह पर निशाना लग गया| फिर दूसरे छिलके पर निशाना लगाया वह भी लग गया| ऐसे करते करते स्वामी विवेकानंद जी ने 10 छिलकों को पहली बार में ही निशाना लगा दिया| यह देखकर सभी हैरान हो गए| 

फिर उन लकड़ों ने स्वामी विवेकानंद जी से पूछा कि क्या आप शिकारी हैं? स्वामी विवेकानंद जी ने कहा नहीं मैं शिकारी नहीं हूँ| फिर लड़कों ने कहा तो फिर आप ने इतने सटीक निशाने कैसे लगा दिए? स्वामी जी ने मुस्कुराते हुए उनको जवाब दिया कि अगर आपका ध्यान सटीक है तो आप अपनी मंज़िल को आसानी से हासिल कर सकते हैं| 

इसलिए किसी भी मुश्किल से मुश्किल परिस्थिति का सामना करने के लिए सबसे पहले आप का फोकस सटीक होना चाहिए और आपके अंदर स्थिरता होनी चाहिए| फिर ही आप अपनी मंज़िल को हासिल कर सकते हैं| मैंने भी ऐसा ही करा, मैंने अपने दिमाग और बॉडी को भी नियंत्रित करते हुए अंडो के छिलकों पर अपना फोकस बनाया और फिर मेरा निशाना लग गया। 

अगर आप लोग भी किसी काम को करने के लिए अपने दिमाग और बॉडी को नियंत्रित करते हैं तो आप किसी भी काम को आसानी से कर सकते हैं और अपनी मंज़िल को हासिल कर सकते हैं।

नैतिक शिक्षा

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि अगर हम किसी भी काम को करने के लिए उसके ऊपर अपने दिमाग और बॉडी से फोकस कर ले तो हम उसे आसानी से हासिल कर सकते हैं।

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स्वामी विवेकानंद के वकील दोस्त की कहानी

स्वामी विवेकानंद जी के एक वकील मित्र थे| वह बहुत ही साधारण जीवन व्यतीत करते थे और दिखने में भी बिल्कुल साधारण ही लगते थे| उन्हें देखकर कोई भी यह नहीं कह सकता था कि वह एक अच्छे पेशेवर वकील है| 

एक दिन वकील साहब पैदल अपने गांव से शहर के लिए बस पकड़ने के लिए जा रहे थे| तभी जोर-जोर से बारिश होने लग गई और वहां पर एक गरीब आदमी अपनी रिक्शा को लेकर बारिश में खड़ा था| वह बारिश में बिलकुल भीग चूका था| उसने थोड़ी देर पहले ही रिक्शा ठीक करने के लिए आदमी को बुलाया था| और गरीब रिक्शे वाला आदमी रिक्शा ठीक करने वाले का इंतजार कर रहा था| लेकिन वह अभी तक नहीं आया था| 

जब वकील साहब उसके पास से गुजर रहे थे तो रिक्शा वाले व्यक्ति ने वकील साहब को साधारण सा इंसान समझ कर उन्हें आवाज़ दी और उनको बोलना कि मेरा रिक्साव खराब हो गया है और मेने अपने रिक्शा को ठीक करवाने के लिए आदमी को बुलाया है लेकिन वह अभी तक नहीं आया| क्या आप मेरी मदद कर सकते हैं? मैं आपको इसके बदले में पैसे भी दे दूंगा| इतना सुनते ही वकील साहब उसके पास चले गए और उसके साथ उसकी रिक्शा को ठीक करने में उसकी मदद करने लग गए| 

कुछ समय के बाद वहां से एक सज्जन आदमी गुजर रहे थे वह वकील साहब को जानते थे| उन्होंने वकील साहब को देखा तो बोला अरे वकील साहबआप यह क्या कर रहे हैं? आपको तो इस समय अदालत में होना चाहिए और यह बात रिक्शा वाले को सुनाई दे गई| यह सुनकर रिक्शा वाला बिल्कुल पानी पानी हो गया और वकील साहब के पैरों को पकड़ कर रोने लगा और कहने लगा कि मुझे नहीं मालूम था कि आप इतने बड़े आदमी है| मैंने तो आपको साधारण सा आदमी समझ कर बुला लिया था| मुझे माफ कर दीजिए| 

फिर वकील साहब ने रिक्शा वाले को जवाब दिया कि मुझे लगता है आज मुझे अपने केस से ज्यादा आपका रिक्साव ठीक करने का काम सही लगा| इसलिए मैं आपकी मदद कर रहा हूँ| फिर वकील साहब ने रिक्शा वाले को कहा कि मेरा एक दोस्त है उसका नाम स्वामी विवेकानंद है| उसका कहना है कि हमें धर्म को किताबों से निकालकर अपने जीवन में लाना चाहिए और आज मुझे उस धर्म को अपने आचरण में डालने का मौका मिला है| तो मैं इसे अपने हाथ से कैसे निकलने दे सकता था| 

यह बात स्वामी विवेकानंद जी ने अपनी एक सभा में बैठे सभी लोगों को सुनाई और उनको संदेश भी दिया कि लोगों को अपने अहंकार को छोड़कर दूसरों की मदद करनी चाहिए क्योंकि आपके अंदर का अहंकार दूसरों की सेवा करने से ही ख़तम हो सकता है।

नैतिक शिक्षा

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें ऊंच-नीच को अनदेखा करते हुए अपने अहंकार को पीछे छोड़ना चाहिए और लोगों की मदद करनी चाहिए| फिर ही हम अपने अंदर के अहंकार को खत्म कर सकते है और लोगों के काम आ सकते है|

स्वामी विवेकानंद और भूखे बच्चों की कहानी

स्वामी विवेकानंद जी अमेरिका में कुछ काम के सिलसिले में गए थे और उन्हें वहां पर कुछ दिन रहना था| वह रहने के लिए जगह तलाश कर रहे थे| तब उन्हें एक घर मिला जहां पर एक बूढी औरत रहती थी| स्वामी विवेकानंद जी उसी घर में रहने लगे| 

स्वामी विवेकानंद जी अपना खाना खुद बनाते थे| एक दिन वह खाना खाने के नीचे हाल की तरफ जा रहे थे| तभी उनको उनके दरवाजे पर कुछ बच्चे दिखाई दिए जो उनके दरवाजे को खड़खड़ा रहे थे| स्वामी विवेकानंद जी ने दरवाजा खोला तो बच्चों ने उनसे बोला कि हमें भूख लगी है| हमें खाने के लिए कुछ दीजिए| यह बात सुनते ही स्वामी विवेकानंद जी ने अपना सारा खाना उन बच्चों को दे दिया| 

यह सब कुछ वहां दूर खड़ी बूढी औरत देख रही थी| वह स्वामी विवेकानंद जी के पास आई और उसने स्वामी जी को कहा कि आपने तो अपना सारा खाना इन बच्चों को दे दिया है, अब आप क्या खाओगे? तो स्वामी विवेकानंद जी ने मुस्कुराते हुए कहा कि रोटी आपके पेट की ज्वाला को शांत करने वाली चीज है| मैंने अपना भोजन बच्चों को दे दिया, आज भोजन इस पेट में नहीं तो उस पेट में सही और किसी को कुछ देने में जो आनंद मिलता है वह पाने से बहुत बड़ा होता है।

नैतिक शिक्षा

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि अगर हम किसी की मदद करने के लायक है तो हमें जरूर उसकी मदद करनी चाहिए| हो सकता है कि हमारे द्वारा की गई मदद सामने वाले के जीवन में खुशियां बिखेर दे।

Conclusion

उम्मीद करते हैं कि हमारे द्वारा शेयर करी गई Swami Vivekananda Motivational Story in Hindi आप के लिए लाभदायक सिद्ध होगी| अगर आपको हमारे द्वारा शेयर करी गई स्वामी विवेकानंद की कहानियां पसंद आई हो या फिर आप हमें कोई राय देना चाहते हैं तो नीचे कमेंट बॉक्स में कमेंट कर सकते हैं।

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