दोस्तों क्या आप भी Subhash Chandra Bose Story in Hindi के बारे में पढ़ना चाहते हैं| हम सबसे पहले आपको बताना चाहेंगे कि सुभाष चंद्र बोस की कहानियां देशभक्ति से ओतप्रोत है| इन कहानियों से उनकी देशभक्ति और बुद्धिमता के बारे में भी पता चलता है| तो आइए सबसे पहले हम आपको बताते हैं कि सुभाष चंद्र बोस कौन थे?
सुभाष चंद्र बोस कौन थे?
सुभाष चंद्र बोस ऐसे देश भगत और उन मतवालों में से एक थे| जिन्होंने देश के लिए अपना घर, समाज, परिवार सब कुछ छोड़ दिया था और एक विशाल सेना खड़ी की थी| जिन्होंने अंग्रेजों को चुनौती देने का कार्य किया था। सुभाष चंद्र बोस की देशभक्ति और देश के प्रति निष्ठा और विश्वास उनके द्वारा गठन की गई हिंद फौज से उजागर होती है।
सुभाष चंद्र बोस ने “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा” इस नारे से देशभक्तों की फौज खड़ी की थी| इस फौज में उन्होंने केवल पुरुषों की ही नहीं बल्कि वीरांगनाओं की भी एक समांतर फौज खड़ी की थी| उनके द्वारा खड़ी करी गई फौज बहुत ज्यादा ताकतवर थी क्योंकि उसमें देशभक्ति सर्वोपरि थी। आज के इस पोस्ट में हम उन महान स्वतंत्र सेनानियों में शुमार सुभाष चंद्र बोस की कहानियां के बारे में बताने जा रहे हैं।
देशभक्ति सर्वोपरि – Subhash Chandra Bose Story in Hindi
1 दिन सुभाष चंद्र अपने मित्रों के साथ बैठे थे और वह आपस में बात कर रहे थे कि वह बड़े होकर क्या बनेंगे? तो उनके एक मित्र ने कहा कि मैं बड़ा होकर छोटा मोटा काम कर लूंगा तो सुभाष चंद्र ने पूछा कि छोटा-मोटा काम कौन सा करोगे तो उनके मित्र ने बताया कि मैं सब्जी, चाय पकौड़े बेचना, फल की दुकान लगा लूंगा। तो उसके जवाब में सुभाष चंद्र बोस ने बोला कि हमारे घर में ऐसे विषयों पर चर्चा नहीं होती है|
मेरे पिताजी और बड़े भईया शाम को बैठक में देशभक्ति ही की बातें करते हैं और वह हमेशा बच्चों को प्रेरित करते हैं कि वह पढ़ लिखकर इंजीनियर, डॉक्टर, मजिस्ट्रेट, वकील, IPS या IAS बने। उन्होंने उस समय यह भी बोला था कि मैं किसी छोटे-मोटे काम करने के लिए नहीं बना हूं यह दृढ़ निश्चय मेरा अटल है।
सुभाष चंद्र ने बोला कि मैंने भी निश्चय किया है कि मैं भी बड़ा होकर ऑफिसर बनूंगा| इसके लिए उन्होंने जी जान से पढ़ाई की ओर पिता जी के कहने पर सुभाष चंद्र बोस ने सिविल सर्विस परीक्षा को पास कर लिया था यह एक महत्वपूर्ण पद था| लोगों में इस पद के लिए बहुत ही ज्यादा मान्यता थी| लोग इस पद को बहुत बड़ा मानते थे| परंतु सुभाष चंद्र ने इस पद को अस्वीकार कर दिया|
क्योंकि उन्हें महसूस हुआ कि अगर वह इस पद को स्वीकार करते हैं तो उनको अंग्रेजों के अधीन काम करना पड़ेगा जो कि उनको बिल्कुल भी पसंद नहीं था| क्योंकि उस समय अंग्रेज देश को दोनों हाथों से लूट रहे थे और उनकी देशभक्ति की वजह से उन्होंने इस पद को स्वीकार नहीं किया।
नैतिक शिक्षा
कुछ करने का अगर इंसान में जज्बा हो तो उसे प्राप्त किया जा सकता है। इंसान को हमेशा अपने अटल विश्वास और मेहनत से सफलता प्राप्त होती है।
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हिटलर को क्यों आया चक्कर
यह उस समय की बात है जब सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस में हुआ करते थे और उस समय उनको काफी सारे प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा था। उसी समय गांधी जी के कहने पर सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया था| जिसकी वजह से कांग्रेस पार्टी भी उन्हें समर्थन नहीं कर रही थी। फिर उसके बाद सुभाष चंद्र बोस अपने घर में काफी समय तक नजरबंद रहे और उस समय उनके घर के आस-पास अंग्रेजो के जासूस 24 घंटे नजर रखे हुए थे जो कि सुभाष चंद्र बोस की रणनीति में विफल कर रही थी।
सुभाष चंद्र बोस ने कुछ समय तक देखा और मौका मिलते ही वह नजर छुपा कर काबुल के रास्ते से जर्मनी पहुंच गए| जर्मनी पहुंच कर उन्होंने हिटलर से मिलने का समय मांगा| परंतु ने समय मिल नहीं पा रहा था| इसके बाद सुभाष चंद्र बोस ने हार नहीं मानी और लगातार कोशिश करने के बाद उन्हें हिटलर से मिलने का समय मिल गया। फिर सुभाष चंद्र हिस्टलर से मिलने के लिए कार्यालय में चले गए| जैसे ही वह हिस्टलर के कार्यालय में गए और जाकर वहां बैठे तो कुछ समय बाद हिटलर आया और उसने हाथ बढ़ाया और हाथ बढ़ाकर कहता है कि
हेलो मैं हिस्टलर हूं, मैं आपकी किस प्रकार सहायता कर सकता हूं|
सुभाष चंद्र ने हाथ जोड़ते हुए कहा मैं हिस्टलर से मिलने आया हूं| सुभाष चंद्र के इस व्यवहार से हिटलर दंग रह गया था| कुछ देर बाद फिर वहां से चला गया। कुछ समय के बाद हिटलर दोबारा से वापस आया और सुभाष चंद्र बोस को हाथ बढ़ा कर बोला कि हाय मैं हिटलर हूं, बताइए मैं आपकी किस प्रकार से सहायता कर सकता हूं| सुभाष चंद्र बोस ने दोबारा से हाथ जोड़ते हुए कहा कि मैं हिटलर से मिलने आया हूं आप से नहीं|
यह देख कर वहां पर बैठे सभी लोग असमंजस में पड़ गए और सुभाष चंद्र बोस को गुस्से और जिज्ञासा की नजर से देखने लगे| ऐसे करते हुए उस समय कई हिटलर आए और वहां से चले गए। फिर वह अंदर गए और असली हिटलर के पास जाकर उनको सारी बात बताने लगे| यह सुनकर हीटर खुद भी परेशान हो गया और सोचने लगा कि पूरा विश्व को हिस्टलर के रहस्य को नहीं जान पाया है, जिसे एक भारतीय व्यक्ति ने पहचान लिया है| फिर हिटलर बाहर आया और दूर खड़ा होकर सुभाष चंद्र बोस को देखने लगा।
सुभाष चंद्र बोस की नजर हिटलर पर पड़ी तो वह खुद हिटलर के नजदीक गए और हाथ जोड़कर कहा कि मैं सुभाष चंद्र हूं, मैं भारत देश से आया हूं और मैं आपसे मदद चाहता हूं| यह सुनकर हिटलर दंग रह गया और उसने पूछा कि आप ने मेरे वास्तविक रूप को कैसे पहचाना| बाकी सभी बातें बाद में हुई तो सबसे पहले उन्होंने यह जानने की जिज्ञासा प्रगट की और उन्होंने सुभाष चंद्र से पूछा कि आपने मेरे इतने रूपों के रहस्य को कैसे पहचाना|
इस पर सुभाष चंद्र बोस ने मुस्कुराते हुए और नम्रता के साथ जवाब दिया कि मैं गुलाम देश से आया हूं और आपसे सहायता मांगने के लिए आया हूं| अभी तक जितने भी हिटलर आए थे उनके स्वभाव में उग्रता और गर्माहट नहीं थी| जो कि उनके स्वभाव में होनी चाहिए थी| यह सुनते ही चक्कर आ गया और उसके पीछे खड़े सैनिकों ने हिटलर को पकड़कर कुर्सी पर बैठाया।
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सुभाष चंद्र को मिली को मिली बोस की उपाधि
सुभाष चंद्र का जन्म 23 जनवरी 1997 को कटक के संभ्रांत परिवार जानकीनाथ बोस तथा प्रभावती के घर हुआ था| उनका पालन पोषण उच्च गिराने में संपन्न हुआ| सुभाष चंद्र बचपन से ही बहुत बुद्धिमान थे और वह देश के लिए कुछ बड़ा करना चाहते थे| जिससे कि देश को आजादी मिल सके| उन्होंने अपने बचपन से ही संघर्ष करना शुरू कर दिया था।
उन्होंने दसवीं की परीक्षा पास की जिसमें वह दूसरे स्थान पर आए थे| उसके बाद उन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला ले लिया| वहां भी उन्होंने राष्ट्रभक्ति का परिचय दिया| जिस वजह से कॉलेज के प्रिंसिपल तथा वहां के छात्र भी उनसे ईर्ष्या करते थे। इस वजह से उन्हें कॉलेज में भी काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा था और अंत में उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया इन सब के बावजूद भी सुभाष चंद्र बोस ने हार नहीं मानी और अपनी राष्ट्रभक्ति को जारी रखा।
उसके बाद उन्होंने सर्वोच्च से परीक्षा को भी पास किया और सरकारी नौकरी करने से इनकार कर दिया| क्योंकि वह समझ गए थे कि अगर वह इस नौकरी को स्वीकार करते हैं तो उन्हें अंग्रेजों के अधीन ही काम करना पड़ेगा जो कि उन्हें बिल्कुल भी पसंद नहीं था| उनके इस फैसले से उन्हें घर में ही नजरबंद कर दिया गया| परंतु फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और राष्ट्र की मुक्ति के लिए वह विदेश चले गए।
हम आपको बताना चाहेंगे कि सुभाष चंद्र बोस द्वारा खड़ी करी गई “हिंद फौज” का गठन उन्होंने विदेश में ही किया था| उनके नेतृत्व और निर्णय लेने की क्षमता को देखकर लोग काफी ज्यादा प्रभावित हुए थे| जब उन्होंने लोगों को एकजुट करना शुरू कर दिया था तो तब लोगों ने उन्हें बोस की उपाधि दी थी और यहां से सुभाष चंद्र को बॉस के नाम से जाना गया
प्रेसीडेंसी कॉलेज के प्रोफेसर की पिटाई
यह उस समय की बात है जब भारत में अंग्रेज हुकूमत कर रहे थे| अंग्रेज भारतीयों के साथ बहुत ही ज्यादा दुःखद व्यवहार करते थे| यह बात तो सारा विश्व जानता है कि अंग्रेजो के द्वारा भारतीयों के ऊपर बहुत ज्यादा अन्याय किया जाता था| इस बात को लेकर सुभाष चंद्र चिंतित रहा करते थे। कुछ समय के बाद सुभाष चंद्र बोस ने प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला ले लिया| लेकिन वहां पर सारी व्यवस्था विदेशी संभाला करते थे और जिसे एक साधारण भारतीय के लिए अच्छा कॉलेज भी नहीं माना जाता था|
वहां पर भारतीय विद्यार्थियों के साथ बहुत ज्यादा अन्याय किया करते थे| भारतीय छात्रों को इर्षा की नजर से देखते थे और मौका मिलने पर उनकी पिटाई भी करते थे। एक समय की बात है कि एक शिक्षक ने एक भारतीय छात्र की इतनी ज्यादा पिटाई करी कि छात्र का सिर फट गया था| जब सुभाष चंद्र को इस बात की जानकारी मिली तो उन्होंने उस प्रोफेसर की शिकायत प्रिंसिपल के पास करी और उन्होंने प्रिंसिपल से यह भी विनती करी कि वह प्रोफेसर को बोले कि वह स्टूडेंट से माफी मांगे| परंतु ऐसा नहीं हुआ क्योंकि प्रिंसिपल और प्रोफेसर अंग्रेजी हुकूमत से ही थे और उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया|
जिसके बाद सुभाष चंद्र बोस ने एक आंदोलन की शुरुआत करी और उनके आंदोलन की वजह से यह खबरें अखबारों की हैडलाइन बन गई| जिससे मामला बिगड़ता गया। बिगड़ते हुए मामले को देखकर प्रोफेसर ने अनमने ढंग से छात्रों से माफी मांगी| परंतु शिक्षक ने अपने व्यवहार में बिल्कुल भी बदलाव नहीं किया था| कुछ समय के बाद उसी प्रोफेसर ने एक और भारतीय विद्यार्थी की पिटाई करी जिसके बाद सभी विद्यार्थियों ने मिलकर उस प्रोफेसर की खूब पिटाई करी| इसके लिए सुभाष चंद्र को दोषी बनाया गया और उसे माफी मांगने के लिए कहा गया|
तो उस समय सुभाष चंद्र ने कहा कि “में गलत के आगे झुकूंगा नहीं और सही से कभी मुंह मोडूगा नहीं” यहां कुछ भी गलत नहीं हुआ है| इसलिए मैं माफी नहीं मांगूंगा| अंग्रेजी हुकूमत यह बात सुनकर बहुत ज्यादा खफा हो गई थी और उन्होंने दंड के रूप में सुभाष चंद्र को कॉलेज से निकाल दिया| किंतु फिर भी उन्होंने अन्याय के सामने अपने घुटने नहीं टेके थे।
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देश की हालत से दुखी बोस
सुभाष चंद्र देश की परिस्थितियों को बचपन से ही समझ गए थे| वह बचपन से ही अपने पिता से छुप छुपा कर समाज कार्य के लिए अपना समय बचाने लगे थे| अपने उस समय में वह अस्पताल, आश्रम, वृद्धाश्रम में समय व्यतीत करने लगे थे| उस समय देश की हालत बहुत ही ज्यादा खराब थी। उस समय बड़ी बड़ी बीमारियां भी चल रही थी जिसका आम लोगों के लिए कोई इलाज नहीं था|
उस समय भारतीय लोग आवारा पशुओं की तरह दुर्भाग्यपूर्ण मर रहे थे और उनके पार्थिव शरीर को आवारा पशुओं के द्वारा नोचा जा रहा था| जिन लोगों के परिवार होते थे वह उनके लिए क्रिया कर्म की व्यवस्था करते थे| यह सब देखकर सुभाष चंद्र बहुत ज्यादा दुखी हो गए थे और उन्होंने इस व्यवस्था को सुधारने के लिए आवाज उठाई|
ठीक ऐसा ही ही हुआ अंग्रेज सरकार के प्रति उन्होंने विद्रोह किया और स्वस्थ सुविधाओं के लिए जन सामान्य को जागरूक किया। धीरे-धीरे समय बीतता गया और व्यवस्थाएं भी सुधरती हुई दिखने लगी| परंतु पराधीनता के बंधन में व्यवहार तथा सेवाएं देशवासियों को मिल नहीं पा रही थी| इन व्यवस्थाओं को देख कर सुभाष चंद्र बहुत ज्यादा दुखी रहा करते थे।
Conclusion
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