Short Story on True Friendship with Moral in Hindi

दोस्तों क्या आप Short Story on True Friendship with Moral in Hindi सर्च कर रहे हैं| अगर ऐसा है तो आप बिलकुल सही जगह पर आए हैं, क्योंकि इस ब्लॉग में हमने कुछ बेहतरीन कहानियां लिखी हैं जो कि सच्ची दोस्ती को दर्शाती है और आपको इन कहानियों को पढ़कर सच में सच्ची दोस्ती क्या होती है इस बारे में पता चलेगा| तो चलिए दोस्तों अब हम शुरू करते है| 

कुत्ते और गिलहरी की अनूठी दोस्ती  – Short Story on True Friendship with Moral in Hindi

किसी गांव में एक कुत्ता और एक गिलहरी रहा करते थे| वह एक दूसरे के बहुत अच्छे मित्र थे| वह हमेशा एक साथ खाना, पीना, खेलना और घूमना फिरना करते थे| दोनों को एक दूसरे का साथ बेहद पसंद था, लेकिन गिलहरी खेलकूद में बहुत तेज थी और जब भी वह दोनों कोई प्रतियोगिता करते तो गिलहरी हमेशा जीत जाती थी| लेकिन कुत्ते को यह बात बुरी लगती थी, क्योंकि आखिर कभी-कभी वह भी तो जीतना चाहता था| 

कुत्ते और गिलहरी की अनूठी दोस्ती - Short Story on True Friendship with Moral in Hindi

गिलहरी अक्सर यह कहा करती थी कि मैं तुमसे जीत जाती हूँ, क्योंकि मैं खेलने कूदने में बहुत माहिर हूँ| फिर 1 दिन बहुत जोरों की बारिश हो रही थी, गिलहरी पानी में उछल कूद रही थी और खेल रही थी| फिर अचानक गिलहरी का पांव फिसला और वह तालाब में गिर गई| 

तालाब में गिरते ही उसे सबसे पहले अपने मित्र कुत्ते की याद आई| उसने आवाज देते हुए अपने मित्र को बुलाया और कुत्ता भी तुरंत ही उसके पास उस तालाब में पहुंच गया और तैरती हुई गिलहरी को अपने पीठ पर बैठा कर बाहर निकाल लिया| गिलहरी ने उसका धन्यवाद किया और कहने लगी कि मेरे मित्र तुम भी मुझसे कम नहीं हो, तुम अपनी जगह मुझसे बहुत बेहतरीन हो और मई अपनी जगह बेहरीन हूँ| 

नैतिक शिक्षा

तो बच्चों इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें हमेशा अपने ऊपर विश्वास रखना चाहिए, हर एक व्यक्ति अपनी जगह बेहतरीन होता है|

बुद्धिमान दोस्त की सलाह

कर्नाटक के एक छोटे से शहर में वास्तु, मधुसूदन और वेंकटेश नाम के 3 मित्र रहते थे| वह तीनों ही बहुत ही सच्चे मित्र थे और हमेशा एक दूसरे के अच्छे बुरे वक्त में मदद किया करते थे| इसी तरह एक दिन तीनों मित्र खेल रहे थे, फिर गांव से एक व्यक्ति भागता हुआ वेंकटेश के पास आया और कहने लगा तुम यहां खेल रहे हो और वहां तुम्हारे पिताजी अपने जीवन की आखिरी सांसे ले रहे हैं| 

वेंकटेश भागता हुआ अपने घर गया और पाया कि उसके पिताजी बिस्तर में पड़े हुए हैं और बहुत ही बीमारी की हालत में लग रहे हैं| पूछने के बाद उसके पिताजी ने बताया कि आज वह बाजार में हमेशा की तरह काम कर रहे थे और अचानक से बेहोश हो गए और अब उन्हें नहीं लगता है कि वह जी पाएंगे| वेंकटेश रोता हुआ अपने पिताजी से कहने लगा कि आप ऐसी बातें मत कीजिए, आप ठीक हो जाएंगे| 

फिर उसके पिताजी ने वेंकटेश को कहा कि तुम्हारी माता के जाने के बाद मैं तुम्हारी देखभाल कर रहा था| लेकिन अब से तुम्हें खुद की देखभाल खुद करनी होगी| यह लो कुछ पैसे जो मैंने अभी तक कमाया है| इस पूंजी को लेकर तुम शहर चले जाओ और वहां कोई काम धंधा शुरू कर लो| यह कहते-कहते व्यंकटेश के पिताजी भगवान को प्यारे हो गए| वेंकटेश बहुत घबरा गया और डरने लग गया कि अब वह क्या करेगा| 

जैसे ही यह खबर उसके दोस्तों तक गई उसके दोस्त भी व्यंकटेश से मिलने आ गए| फिर व्यंकटेश उनसे कहने लगा कि मेरे पास सिर्फ यह कुछ रुपए हैं और इन रुपयों को लेकर उसे आज ही शहर के लिए निकलना होगा| वरना अगर वही गांव में रहा तो यह पैसे भी खत्म हो जाएंगे और उसे भूखे मरने की नौबत आ जाएगी| यह कहता हुआ वेंकटेश गांव छोड़कर चला गया| फिर पीछे दोनों दोस्त एक दूसरे से कहने लगे कि हां वेंकटेश चला गया है| अब हम उसे कब मिलेंगे और हमें व्यंकटेश की बहुत याद आएगी| 

यह कहते हुए मधुसूदन वास्तु से कहने लगा कि जल्दबाजी में मैं तुम्हें बात बताना भूल गया मैं भी शहर से बाहर अपने पिताजी के साथ जा रहा हूं| मैं पढ़ाई भी नहीं करूंगा और उनका बिजनेस संभाल लूंगा| वास्तु कहने लग गया क्या हम तीनों सच में बिछड़ रहे हैं और क्या जीवन में हम कभी मिल पाएंगे? मधुसूदन फिर से मिलने का वादा करता हुआ वहां से चला गया| बहुत साल बीत गए वेंकटेश ने शहर में बहुत अच्छा बिजनेस खड़ा कर दिया| उसके पास बहुत अच्छी गाड़ी, घर और एक सुंदर सी पत्नी थी| 

फिर एक दिन वेंकटेश की पत्नी कहने लगी कि उसे एक पुरानी सहेली की शादी मैं कर्नाटक जाना है| इस पर वेंकटेश कहने लगा कि कर्नाटक में ही एक छोटा सा शहर है, जहां मेरा बचपन गुजरा है और वहीं पर मेरे पुराने दोस्त है| चलो चलते हैं तुम अपनी सहेली की शादी में चले जाना और मैं अपने पुराने दोस्तों से मिल लूंगा| यह कहते हुए दोनों ने जाने की तैयारी शुरू कर दी और वह दोनों कर्नाटक के लिए रवाना हो गए| 

शादी वाले घर पहुंचते ही वेंकटेश कहने लगा तुम बैठो और मैं अपने दोस्तों से जाकर मिल कर आता हूँ| वेंकटेश वास्तु के घर पहुंचा, वास्तु का घर देखकर लग रहा था कि वास्तु बहुत ही अच्छा जीवन व्यतीत कर रहा है| वास्तु के घर के बाहर नौकर लगे हुए थे और वह शान से अपनी कुर्सी पर बैठा हुआ था| जैसे ही उसने वेंकटेश को देखा तो वह खुशी से दौड़ कर उसके गले लग गया| 

फिर वेंकटेश कहने लगा कि तुमने तो बहुत अच्छी कमाई की है तो वास्तु कहने लगा कि हां मेरे पिता और दादा की बहुत प्रॉपर्टी है| तो मुझे जीवन में कोई परेशानी नहीं है और मैं मस्ती से अपने गांव में रहता हूँ, और अपना जीवन  जी रहा हूँ| फिर वेंकटेश कहता है कि मुझे बहुत खुशी हुई कि तुम इतने अच्छे से अपना जीवन जी रहे हो और फिर वह कहने लगा क्या तुम्हें पता है मधुसूदन कहां है?

फिर वास्तु ने बताया कि मधुसूदन किसी बिजनेस के कारण अपने पिताजी के साथ दूसरे शहर चला गया है| काफी देर बातचीत करने के बाद वेंकटेश वास्तु को कहने लगा कि अब मैं चलता हूं और हो सके तो शहर से बाहर निकलते हुए वे मधुसूदन से जरूर मिलेगा फिर वास्तु कहने लगा कि मधुसूदन को बोलना कि मैं उसे याद कर रहा था| 

उसने वादा किया कि वह वेंकटेश के का घर शहर जरूर आएगा| फिर वेंकटेश शहर से वापस जाते हुए अपने मित्र मधुसूदन के घर गया| मधुसूदन का घर देखकर वेंकटेश बहुत हैरान हुआ| वह बहुत ही गरीबी में जी रहा था| फिर वेंकटेश के पूछने पर मधुसूदन ने अपने सारे हालत उसे बताएं और बताया कि कैसे बिजनेस में घाटा होने के बाद और उसके पिताजी के गुजरने के बाद उसकी यह दशा है| फिर वेंकटेश ने मधुसूदन को कहा कि तुम शहर में मेरे पास आना और मैं तुम्हें बिजनेस के कुछ तरीके से सिखाऊंगा जिससे तुम भी अच्छा कमा सकोगे और घबराना मत मैं तुम्हारे साथ हूं| 

यह कहता हुआ वह उसके घर से भी रवाना हो गया| फिर बहुत दिन बीत गए मधुसुधन वेंकटेश के घर आया| वेंकटेश का घर देखकर मधुसुधन बहुत खुश हुआ और कहने लगा कि दोस्त तुम्हारी यह तरक्की देख कर मैं बहुत खुश हूं| फिर वेंकटेश ने मधुसुधन से कहा कि मैं भी बहुत नुकसान में हूं और जैसे तैसे अपना गुजारा कर रहा हूं| 

मैंने घर तो बड़ा बना लिया है लेकिन मुझ पर बहुत बड़ा कर्ज है| यह कहते हुए व्यंकटेश ने मधुसूदन को ₹10000 दिए और कहा कि जाकर शहर में इससे कुछ नया काम शुरू करो| मधुसूदन ने पैसे लेने से इनकार कर दिया और वह कहने लगा कि तुम पहले ही नुकसान में हो और तुम पर क़र्ज़ है| तुम किस तरह मुझे यह पैसे दे रहे हो| व्यंकटेश ने कहा घबराओ मत मित्र तुम इसे कर्ज़ की तरह लो और जब कमा लोगे तो मुझे वापस लौटा देना| 

पैसे लेते हुए मधुसूदन नम आंखों से व्यंकटेश के घर से चला गया और उसे बहुत धन्यवाद कहा| फिर कुछ दिनों के बाद वास्तु व्यंकटेश के घर आया| वास्तु को देख कर व्यंकटेश बहुत खुश हुआ दोनों ही मित्र एक दूसरे से गले लगे और व्यंकटेश वास्तु को घरके अंदर ले गया| 

घर देखकर वास्तु व्यंकटेश से कहने लगा कि तुम इतना बड़ा बिज़नेस करते हो| यह घर तुम्हें शोभा नहीं देता है| तुम इतने छोटे से घर में क्यों रह रहे हो| अपना घर बड़ा बना लो या अपना घर बदल लो| फिर इस पर व्यंकटेश कहने लगा नहीं मित्र यह घर मेरे लिए बहुत ज्यादा शुभ है| जब से मैं इस घर में आया हूं मेरे बिज़नेस में चार गुना प्रॉफिट हुआ है और इसके अलावा मैंने 2 और नए बिजनेस भी शुरू किए हैं और उसमें मुझे बहुत तरक्की मिल रही है| 

इस पर वास्तु बोला कि अच्छा तुम किस्मत पर विश्वास करते हो| बहुत अच्छी बात है मैं भी सोच रहा हूं कि कोई बिज़नेस शुरू करता हूं| अभी तक जो भी है मेरे पास है वह मेरे पिताजी और दादा जी का दिया हुआ है| फिर व्यंकटेश ने भी उसे कुछ बिजनेस के आईडिया दिया और कहा कि तुम भी इनसे बहुत पैसे कमा सकते हो| 

उसकी पत्नी यह सारी बातें सुन रही थी| फिर वास्तु के घर से जाने के बाद व्यंकटेश की पत्नी ने उससे पूछा कि आखिर तुमने अपने दोनों मित्रों से झूठ क्यों बोला| तुमने मधुसूदन से कहा कि तुम्हारे ऊपर बहुत कर्ज है जो कि हमारे ऊपर नहीं है और हम किसी प्रकार के घाटे में भी नहीं हैं| फिर अपने मित्र वास्तु से तुमने कहा कि हमारे पास बहुत बड़ा बिजनेस है तुमने वह दिखाया जितना हमारे पास है भी नहीं| 

इस पर व्यंकटेश मुस्कुराया और कहने लगा कि देखो मधुसूदन बहुत गरीबी में है और हमारे घर की रौनक देखकर उसे छोटा ना महसूस हो इसलिए मैंने उसे आरामदायक महसूस करवाने के लिए बताया की मुझे भी परेशानियां है और मुझे उस पर भी बहुत कर्ज है| उसे पैसे दिए ताकि वह हिम्मत जुटाकर कुछ नया काम कर पाए| 

वहीं वास्तु के दिल में हमारे लिए छोटापन ना आए इसलिए मैंने भी यह दिखाया कि मैं उससे ज्यादा अच्छा कमा रहा हूं और मेरी दी गई सलाह से वह न केवल अपने पिता और दादा जी की प्रॉपर्टी पर निर्भर रहना बंद करेगा बल्कि अपना कुछ काम शुरु कर पाएगा| इस पर उसकी पत्नी बहुत खुश हुई और कहने लगी कि मुझे आप पर गर्भ है भगवान आपके जैसा मित्र सभी को दे| 

नैतिक शिक्षा

तो बच्चों इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि एक अच्छा मित्र आपकी जीवन को बदल सकता है| इसलिए अपने मित्र हमेशा सूझबूझ से चुने जो कि आपके जीवन में आपको सही राह दिखाए| अब तीनों ही मित्र वास्तु व्यंकटेश और मधुसूदन अपनी मेहनत से खूब पैसे कमा रहे थे और आज तीनों ही बहुत अमीर हैं| 

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रवि किशन और रूप सिंह की अमर दोस्ती 

हिमाचल के एक गांव में रवि किशन और रूप सिंह नाम केतीन दोस्त रहते थे| तीनों मित्रों के दिल में एक दूसरे के लिए घनिष्ठ प्रेम था| वह हर दिन एक साथ स्कूल जाया करते थे और दिन का ज्यादा समय एक दूसरे के साथ ही बताया करते थे| फिर धीरे-धीरे हुए तीनों बड़े होने लगे| रवि और किशन दोनों फौज में भर्ती होना चाहते थे| लेकिन रूप सिंह का एक पैर ना होने की वजह से वह आर्मी में भर्ती नहीं हो सकता था| 

फिर रवि और किशन ने जब आर्मी के लिए भर्ती दी तो वे दोनों ही सेलेक्ट हो गए| दोनों मित्रों के दूर जाने की बात से रूप सिंह बहुत घबराया हुआ था| फिर दोनों मित्रों ने रूप सिंह को आश्वासन दिया कि वह हर साल उससे मिलने आएंगे और उसे चिट्ठी भी लिखते रहेंगे| फिर जब जाने का दिन नजदीक आ गया रवि और कृष्ण दोनों तैयार होकर ट्रेनिंग के लिए जाने लगे| रूप सिंह बहुत दुखी था लेकिन वे दोनों की सफलता के लिए खुश भी था| 

रूप सिंह ने दोनों मित्रों को खुशी-खुशी गांव से अलविदा कर दिया| फिर जब भी फौज की छुट्टियां बढ़ती रवि और किशन दोनों ही रूप सिंह के लिए बहुत कुछ लेकर आया करते और उसे पैसों की भी मदद करते| क्योंकि माता-पिता ना होने के कारण रूप सिंह अकेला ही रहता था और गांव में एक छोटी सी दुकान चला कर अपना गुजर-बसर कर रहा था| 

दोनों मित्रों ने ठान ली थी कि वह रूप सिंह के जीवन को और बेहतर बनाएंगे और उसे शहर में कोई बिजनेस खोल कर देंगे| उस वर्ष फ़ौज मै दुश्मनों से भयंकर लड़ाई शुरू हो गई थी| जिसकी वजह से रवि और किशन पूरे 3 साल के लिए घर वापस नहीं आ पाए| फिर जब वह 3 साल के बाद अपने गांव वापस आए तो उन्होंने देखा कि रूप सिंह के घर पर कोई नहीं था और उसकी दुकान भी बंद थी| 

दोनों मित्र घबरा गए और सोचने लगे कि आखिर रूप सिंह के साथ इन 3 सालों में क्या हुआ होगा| फिर आसपास के लोगों से पता करने के बाद उन्हें रूप सिंह का पता मिला| रूप सिंह दोनों को पास के दूसरे शहर में मिला और उसकी दशा देखकर दोनों ही मित्र फूट-फूट कर रोने लगे| रूप सिंह बुरी संगत में पड़ चुका था और वह बहुत ही नशे करने लग गया था| 

जब उन्हें रूप सिंह मिला तो वह बहुत ही नशे की हालत में था और पिछले 10 दिनों से उसने कुछ खाया भी नहीं था| उन्होंने फटाफट रूप सिंह को हॉस्पिटल में भर्ती किया| रूप सिंह की हालत इतनी नाजुक थी कि डॉक्टर ने कह दिया कि वह बस कुछ दिनों का मेहमान है| फिर जब रूप सिंह को होश आया तो रवि और किशन को अपने आंखों के सामने पाया| उन दोनों को देखकर वह बहुत खुश हुआ और खुशी के आंसू रोने लग गया| 

दोनों ने पूछा कि तूने अपनी यह हालत क्यों बना ली| फिर उसने बताया कि बुरी संगत में पड़ने के कारण उसे नशे की आदत हो गई है और अब वे उससे छूट नहीं रही| दोनों ने उससे कहा तू घबरा मत और उससे सांत्वना देते हुए कहने लगे कि हम तुम्हें ठीक करके गांव वापस लेकर जाएंगे| लेकिन अब रूप सिंह को हिम्मत नहीं थी| 

कुछ दिन हॉस्पिटल में इलाज चलने के बाद रूप सिंह की मौत हो गई| वे दोनों ही रूप सिंह को बचा तो नहीं पाए लेकिन रूप सिंह की आंखों में उन्हें देख कर जो शांति महसूस हुई इससे उनकी दोस्ती अमर हो गयी| 

नैतिक शिक्षा

तो बच्चों इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि जो सच्चे मित्र होते हैं वह जीवन के आखिरी सांस तक भी अपने मित्र को नहीं छोड़ते| इसलिए आप अपने मित्रों के साथ हमेशा ईमानदार रहें और जीवन भर उनका साथ देने की कोशिश करें| 

धर्म के भेदभाव से परे दोस्ती

बच्चों आज की कहानी है, मुंबई के एक छोटे से चोल की जहाँ हर जाति के लोग रहा करते थे| वहां रहने वाले लोग गरीब ज़रूर थे, लेकिन वह दिल के बहुत अमीर थे| सभी एक दूसरे से बहुत प्रेम रखते थे| चाहे वह किसी भी धर्म और जाति के क्यों ना हो| उसी चोल में निश्चित और आमिर नाम के दो लड़के रहते थे| निश्चित एक हिंदू लड़का था और वहीं आमिर एक मुस्लिम परिवार से आता था| 

लेकिन बिना किसी जाति पाती के भेदभाव से दोनों का परिवार आपस में प्यार से रहता था| अक्सर निश्चित और आमिर एक दूसरे के घर पर खाना खाया करते थे| एक दिन गांव में  त्योहार होने के कारण निश्चित अपने पूरे परिवार के साथ गांव चला गया और जाते हुए आमिर को कहने लगा कि अगर तुम भी आते तो मुझे बहुत मजा आता| लेकिन आमिर का स्कूल चल रहा था इसलिए वह उनके साथ नहीं जा पाया| 

निश्चित को गांव में 10 से 12 दिन लग गए| उसी बीच कुछ धर्म अनुयायी ने उस चोल पर हमला कर दिया| वह वहां पर उपस्थित सभी मुस्लिम लोगों को बाहर निकालने लग गए| क्योंकि किसी और शहर में हिंदुओं के साथ बुरा व्यवहार हुआ था| जो कि एक मुस्लिम कम्युनिटी ने किया था| बदले की आग मै वह ऐसा कर रहे थे| 

उन्होंने आमिर के घर पर भी हमला कर दिया और देखते ही देखते एक हंसता खेलता परिवार सड़क पर आ गया| आमिर का परिवार बहुत परेशानी में था उनके पास ना खाने के लिए कुछ था और ना ही रहने के लिए कोई जगह| आसपास के कोई भी लोग उन्हें पनाह देने को तैयार नहीं थे| जब निश्चित और उसका परिवार गांव से मुंबई वापस आया तो उन्होंने पाया कि आमिर के घर पर ताला लगा है| 

बहुत पूछताछ करने पर उन्हें सारी बात का पता चला| अब निश्चित किसी भी हालत में आमिर को ढूंढना चाहता था और उसे घर वापस लेकर आना चाहता था| निशित के पिता कोर्ट में चाय बेचते थे और अपनी ईमानदारी के कारण उसकी काफी बड़े लोगों से जान पहचान भी थी| फिर निश्चित के पिता ने जाकर उन लोगों से मदद मांगी| 

जान पहचान अच्छी होने के कारण जल्द ही आमिर के परिवार का पता चल गया| लेकिन अभी भी वह हिंदू अनुयाई एक मुस्लिम परिवार को उस चोल में रहने देना नहीं चाहते थे| फिर काफी जोर और मशक्कत के बाद निश्चित के पिता जी आमिर और उसके पूरे परिवार को अपने घर वापस ला पाए, और जब तक किसी नई जगह का इंतजाम नहीं हो जाता निशित के परिवार ने यह निर्णय लिया कि आमिर और उसका पूरा परिवार उसी के घर पर रहेगा| 

आमिर के पिताजी ने राहत की सांस ली और आमिर को खुश देखकर उसकी मां भी अब बहुत खुश थी| परिवार ने निश्चित के पिताजी का बहुत-बहुत धन्यवाद किया| 

नैतिक शिक्षा

तो बच्चों हमें भी निश्चित से यह सीख लेनी चाहिए कि अगर हमने किसी को अपना मित्र बनाया है तो अच्छे और बुरे दोनों ही वक्त मै अपनी मित्रता निभाए| 

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लियो ने सिखाई सकरात्मत सोच की मिसाल

बच्चों हमें जीवन में हमेशा सकारात्मक बातों पर ध्यान देना चाहिए| यह सीखेंगे हम आज की कहानी में लियो से| 

जेम्स और लियो दोनों ही अच्छे दोस्त थे| एक दिन दोनों खेलते हुए एक रेगिस्तान से गुजर रहे थे| खेलते खेलते दोनों में बहस हो गई और वह दोनों लड़ने लग गए| जेम्स ने गुस्से में आकर लियो को एक थप्पड़ भी मार दिया| इस बात से लियो बहुत दुखी हुआ और उसने रेत पर लिखा कि आज मेरे सबसे प्यारे मित्र जेम्स ने गुस्से में आकर मुझे थप्पड़ मार दिया| 

यह देखकर जेम्स को थोड़ा बुरा तो लगा और वह लियो से माफी मांगने लग गया| लियो ने भी जेम्स को जट से माफ कर दिया और दोनों आगे बढ़ते चले गए| फिर दोनों को कुछ दूर जाकर एक नहर दिखी| गर्मी भी बहुत थी और दोनों का मन किया कि वह इस नहर में नहा लें| फिर दोनों ने अपने कपड़े निकाले और वह उस नहर में नहाने लग गए| 

अचानक लियो का पैर फिसल गया और वह उस नहर के बीचो बीच गिर गया| जेम्स ने जैसे-तैसे कर कर लियो को बाहर निकाला और उसकी जान बचाई| फिर लियो ने एक विशाल पत्थर पर लिखा कि आज मेरे सबसे अच्छे मित्र जेम्स ने मेरी जान बचाई| यह देखकर जेम्स थोड़ा हैरान हुआ और उसने लियो से पूछा कि जब मैंने तुम्हें थप्पड़ मारा तो तुमने यह बात रेट पर लिखी और अब जब मैंने तुम्हारी जान बचाई तो तुमने यह पत्थर पर लिखा ऐसा क्यों ? 

इस पर लियो कहने लगा मित्र हमें हमेशा बुरी बातों को रेट पर लिखे हुए अक्षरों की तरह लेना चाहिए| जो माफ़ी और उदारता की हवा से मिट जाएं और यदि हमारे साथ कोई अच्छा करता है तो उसे हमें पत्थर पर लिखे हुए अक्षरों की तरह मानना चाहिए| जिसे हम कभी भूले ना और ना ही कोई हवा उसे मिटा सके| इस पर जेम्स बहुत खुश हुआ और लियो को गले से लगाया| जेम्स कहने लगा मित्र तुम्हारी इस बात को मैं जीवन भर याद रखूंगा| 

तो बच्चों इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें उदारता और अच्छाई को कभी बुलाना नहीं चाहिए और गलती से हुई बुरी बातों को भूल जाना चाहिए| 

नैतिक शिक्षा

बच्चो आपने इंसानों की दोस्ती के किस्से तो बहुत सुने होंगे| लेकिन आज मैं आपको जो कहानी बताने जा रही हूं उसमें आप देखोगे कि कैसे इंसान और जानवर भी जीवन भर के लिए अच्छे मित्र बन सकते हैं| 

इंसान और जानवर की अटूट दोस्ती

यह कहानी है वंश और सिंबा की जो की एक बहुत ही प्यारा और मासूम सा कुत्ता था| वंश एक दिन जब स्कूल से वापस लौट रहा था तो उसने सिंबा को एक ट्रक के नीचे आने से बचाया और और वह उसे अपने घर ले आया| वंश की माता कुत्ते को देखकर बहुत नाराज हुई और उसे बाहर छोड़कर आने को कहने लगी| 

लेकिन वंश उसे घर के अंदर ले आया और उसकी पट्टी की और उसे भोजन दिया| लेकिन वंश की मां उसे घर से बाहर निकाल देना चाहती थी तो उसने सोचा कि जब वंश कल स्कूल जाएगा तो पीछे से वह इस कुत्ते को भगा देगी| लेकिन वंश अगले दिन सिंबा को अपने साथ ही लेकर गया और स्कूल के गेट के पास उसे बांध दिया| 

जब वंश को स्कूल से छुट्टी हुई तो वह फिर से सिंबा को घर वापस ले आया| वंश की मां काफी दुखी थी और योजना बनाने लग गई कि आखिर वह सिंबा को घर से बाहर कैसे निकाले| लेकिन वंश भी बहुत जिद्दी था और वह किसी भी हालत मै सिंबा को अकेले बाहर छोड़ना नहीं चाहता था| फिर एक दिन रात में जब वंश सो रहा था तो उसकी उसकी मां सिंबा को बहुत दूर जंगल में छोड़ कर आ गई| 

अगले दिन जब वंश सिंबा को ढूंढने लगा तो उसकी माता ने उसे झूठ बोला कि शायद सिंबा अपनी इच्छा से चला गया है| वंश बहुत परेशान हुआ और उसने सिंबा को ढूंढने की हर कोशिश की, लेकिन उसे सिंबा कहीं नहीं मिला| फिर ऐसे ही काफी दिन बीत गए| उस वक्त शहर में बहुत चोर उचक्के घूम रहे थे| वह हर दूसरे घर में चोरी कर रहे थे| 

फिर एक दिन एक चोर वंश के घर पर चोरी करने घुस गया| पूरा परिवार सो रहा था और अचानक ही उन्हें कुत्ते की भौंकने की आवाज सुनाई दी| सबकी नींद अचानक से खुल गई और सभी घर से बाहर आ गए| बाहर आ कर उन्होंने देखा कि चोर के हाथ में एक बैग है जो कि चोरी के सामान से भरा हुआ था और सिंबा एक तरफ उस बैक को अपने दांतों से दबा कर बैठा था| 

सिंबा को देखते ही वह बहुत खुश हुआ और सिंबा की वफादारी देखकर वंश की माता भी बहुत खुश हुई|  वह वंश से माफी मांगने लग गई और बताने लगी की  मैंने ही सिंबा को जंगल में छोड़ दिया था और जितनी बार भी वह हमारे घर आया मैंने उसे भगा दिया| इसीलिए इतने दिनों से सिंबा घर लौट कर नहीं आया|शायद कहीं दूर से ही सिंबा इस चोर को देख रहा था और जब उसने देखा कि वह हमारे घर पर चोरी कर रहा है तो यह यहां पहुंच गया| 

सिंबा की इमानदारी देखकर वंश की मां को अपनी गलती का एहसास हुआ और वे उसे उठाकर अपने घर के अंदर ले गई| अब सिंबा से दोबारा मिलकर वंश भी बहुत खुश था| 

तो बच्चों हमें इन मासूम और बेजुबान जानवरों से शिक्षा लेनी चाहिए की सच्ची दोस्ती क्या होती है और जरूरत आने पर दोस्ती को कैसे निभाया जाता है| 

Conclusion

आशा करती हूँ की आपको Short Story on True Friendship with Moral in Hindi पसंद आई होगी और आपको इन कहानियों से कुछ न कुछ सीख ज़रूर मिली होगी| अगर किसी भी कहानी से सम्बंधिद आपको कोई भी प्रश्न हो तो नीचे दिए गए कमेंट सेक्शन मे हमे कमेंट करके ज़रूर बताएं| ऐसी ही शिक्षा से भरी कहानियों के लिए हमारे ब्लॉग्स पढ़ते रहें| 

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