क्या आप भी Sachi Mitrata Story in Hindi with Moral के बारे में सर्च कर रहे हैं? अगर ऐसा है तो आप बिल्कुल सही जगह पर आए हैं, क्योंकि आज की इस पोस्ट में हम आपके साथ चुनिंदा कहानियां शेयर कर रहे हैं| जिसे पढ़ने के बाद आप भी सच्ची मित्रता को समझ सकेंगे और जीवन में अपना एक सच्चा मित्र जरूर बनाएंगे|
जब हमने देखा कि काफी लोग सच्ची मित्रता की कहानियों के बारे में सर्च कर रहे हैं, तब हमने खुद इसके ऊपर रिसर्च शुरू करी और रिसर्च पूरी करने के बाद ही आज हम आपके साथ कुछ खास और चुनिंदा सच्ची मित्रता की कहानी शेयर करने जा रहे हैं| तो चलिए दोस्तों अब हम शुरू करते हैं।
राधे और मोहन की मित्रता की कहानी
एक गांव में राधे और मोहन नाम के 2 बहुत ही अच्छे मित्र थे| वह साथ में ही खेला करते थे और स्कूल भी साथ में ही जाया करते थे| राधे के पिताजी काफी अमीर व्यापारी थे और शाम के पिताजी एक गरीब किसान थे| शाम के पिताजी कड़ी मेहनत कर के शाम को पढ़ा लिखा रहे थे| लेकिन राधे के पास इतनी धन-दौलत होने के बावजूद भी उसमें बिल्कुल भी घमंड नहीं था| जिसकी वजह से राधे और शाम दोनों की काफी गहरी मित्रता थी|
शाम गरीब होने के बावजूद भी अक्सर ही राधे की मदद किया करता था| 1 दिन की बात है कि दोनों की स्कूल में परीक्षा थी| जिसके चलते राधे साइकिल पर जल्दी स्कूल के लिए निकल गया| कुछ देर के बाद शाम भी अपने घर से साइकिल पर निकल गया| उसने आगे चलकर देखा की राधे की साइकिल खराब हो गई है और वह उसे ठीक कर रहा है, लेकिन साइकिल उस से ठीक नहीं हो रही है|
फिर शाम ने राधे की साइकिल को ठीक करने की कोशिश करी और कुछ देर में साइकिल ठीक हो गई और वह दोनों समय पर परीक्षा के लिए स्कूल में पहुंच गए| दोनों ने परीक्षा को अच्छे नंबरों से पास कर लिया| कुछ साल बीते दोनों बड़े हो गए| राधे अपने पिताजी के साथ शहर में व्यापार करने के लिए चला गया और शाम पैसों की कमी की वजह से अपने गांव में ही रह गया|
एक दिन शाम के पिताजी बहुत ज्यादा बीमार हो गए थे| तो डॉक्टर ने बोला कि उन्हें इलाज के लिए शहर लेकर जाना पड़ेगा| शाम ने जैसे तैसे करके अपने रिश्तेदारों से पैसे इकट्ठे किए और अपने पिताजी को इलाज के लिए शहर ले गया| श्याम ने अपने पिताजी को अस्पताल में भर्ती करवाया| तब डॉक्टर ने बोला कि उनके पिताजी के इलाज के लिए 1 लाख रुपए लगेंगे|
लेकिन शाम के पास इतने पैसे नहीं थे और वह सोचकर परेशान हो गया| फिर श्याम ने अपने बचपन के मित्र राधे को फोन करा और सारी बात बताई| फिर राधे अस्पताल में पहुंच गया और श्याम से मिला| फिर राधे ने डॉक्टर से बात करके शाम के पिताजी का इलाज करवाया और सारे पैसे भी खुद दे दिए| इस तरह राधे और श्याम दोबारा से फिर मिले|
नैतिक शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें विपरीत स्थितियों में भी अपनों का साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए।
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राम और श्याम की मित्रता की कहानी
यह एक बार एक गांव में राम और श्याम नाम के दो मित्र रहते थे| उनकी मित्रता बहुत घनिष्ठ थी और वह बचपन से ही साथ में खेला करते थे और साथ में ही काम किया करते थे| समय बीतता गया दोनों बड़े हो गए और दोनों की शादी हो गई| शाम के घर एक लड़के ने जन्म लिया और वही राम के घर एक लड़की ने जन्म लिया था| वह दोनों अपने परिवार के साथ बहुत खुशी जीवन व्यतीत कर रहे थे|
उसी गांव में एक राजा राज करता था जो बहुत ही कठोर दिल का था| वह गांव वालों के ऊपर अन्याय करता और उन्हें बिना किसी गुनाह के सजा भी देता रहता था| इस बात को लेकर सारे गांव वाले बहुत परेशान थी| लेकिन गांव वालों के बीच राजा के प्रति इतना ज्यादा डर था कि कोई उसके खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था|
तभी श्याम ने राजा के खिलाफ आवाज उठाने की सोची| उसने राजा के खिलाफ जैसे और नारेबाजी करना शुरू कर दिया| कुछ दिनों के बाद राजा तक श्याम की इस क्रांतिकारी वाक्य की बात पहुंच गई| राजा को श्याम पर बहुत गुस्सा आया, राजा ने अपने मंत्री को कहा कि वह सूरज ढलने से पहले श्याम को उसके पास हाजिर करें| राजा के मंत्री और सैनिक शाम को ढूंढने के लिए गांव में चले गए और उन्होंने श्याम को पकड़ लिया|
वह श्याम को पकड़कर राजा के पास ले गए| राजा ने श्याम की बिना कोई बात सुने उसे फांसी की सजा सुना दी| राजा ने श्याम की फांसी की सजा के लिए अगले दिन का समय तय करा| राजा ने बोला कि कल सुबह सूरज की पेही किरण के साथ ही श्याम को फांसी दे दी जाए| फिर श्याम ने राजा को कहा कि फांसी से पहले वह अपनी बीवी और बच्चों मिलना चाहता है| लेकिन राजा बहुत कठोर दिल का था उसने साफ मना कर दिया|
तभी वहां राम भी खड़ा था जो सारी बातें सुन रहा था| उसने राजा को कहा कि अगर श्याम अपने निर्धारित समय तक वापस नहीं आएगा तो आप उसके बदले मुझे फांसी दे देना| लेकिन आप श्याम को एक बार अपनी बीवी और बच्चे को मिलने की आज्ञा जरूर दें| यह बात सुनकर राजा ने श्याम को अपने बीवी बच्चों को मिलने की अनुमति दे दी और राम को वहीं पर रोक लिया|
शाम वहां से चला गया और कुछ देर में वह अपने घर पहुंच गया| वह अपनी बीवी बच्चों के पास बैठ गया| कुछ देर उनके साथ समय व्यतीत करने के बाद श्याम वापस राजमहल के लिए घोड़े पर बैठकर निकल गया| लेकिन रास्ते में घोड़े की तबीयत खराब हो गई जिसकी वजह से शाम निर्धारित समय पर नहीं पहुंच पाया| उधर फांसी की तैयारी चल रही थी और निर्धारित समय भी हो गया था| फिर राम को फांसी देने के लिए बुलाया गया और उसके फांसी की तैयारी शुरू कर दी गई|
इतने में श्याम भी वहां पर पहुंच गया और श्याम ने कहा कि आप राम को सजा नहीं दे सकते, क्योंकि गुनाह मैंने किया है, इसलिए सजा का हकदार भी मैं हूँ| फिर राम ने कहा कि जैसे तय हुआ था कि निर्धारित समय पर अगर श्याम वापस नहीं आएगा तो फांसी मुझे दी जाएगी| यह सब कुछ देख कर राजा का कठोर हृदय भी उनकी घनिष्ठ मित्रता के आगे पिघल गया और राजा ने दोनों को अपने पास बुलाया और दोनों की फांसी की सजा भी माफ कर दी| इसके बाद से राजा बिल्कुल बदल गया और वह अपनी प्रजा से बहुत प्यार करने लगा और उनके साथ न्याय करने लगा।
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भालू कछुआ और कौवे की मित्रता की कहानी
एक बार एक एक जंगल में एक तालाब था| उस तालाब के अंदर एक कछुआ रहता था और तलाब के साथ पेड़ पर एक कौवा रहता था और उसी जंगल में भालू रहता था| तीनों बहुत अच्छे मित्र थे| वह तीनों साथ में घूमते थे, खाते पीते थे और आपस में हंसी मजाक भी करते थे|
एक दिन जंगल में एक मछुआरा आया| मछुआरे ने तलाब से कछुए को पकड़ लिया और उस कछुए को एक रस्सी से बांधकर अपने डंडे के साथ लटका लिया और जगल से जाने लगा| वही दूसरी और कौवा और भालू यह सब कुछ देख रहे थे, उन्हें कछुए की बहुत चिंता हो रही थी| वह कछुए को शिकारी से छुड़वाना चाहते थे| काफी देर सोचने के बाद उन दोनों के दिमाग में युगत आई|
जिस रास्ते पर मछुआरा जा रहा था, भालू वहां पर जाकर चुपचाप लेट गया| थोड़ी दूर चलने के बाद मछुआरे ने देखा कि वहां पर भालू मरा हुआ पड़ा है| उसने सोचा कि मई इस भालू को भी उठाकर ले जाता हूँ| इसे बेचकर काफी पैसा कमा लूंगा और मछुआरा भालू को उठाने के लिए बालू की तरफ जाने लगा| वही उनका तीसरा मित्र कौवा पेड़ पर बैठा सब कुछ देख रहा था|
जैसे ही मछुआरा भालू के पास पहुंचने लगा कौवा जोर से चिल्लाने लगा, उठो भाई, उठो भागो| उधर से कछुआ भी भागकर जंगल में घुस गया और भालू भी वहां से भाग गया| इस प्रकार मछुआरा ना तो भालू को पकड़ पाया और ना ही कछुए को पकड़ पाया और भालू और कौवे ने मिलकर अपने तीसरे मित्र कछुए की जान बचा ली|
तीनों मित्र शाम को तालाब के पास इकट्ठे हुए, तब कछुए ने भालू और कौवे को जान बचाने के लिए धन्यवाद कहा| इस पर कौवे और भालू ने कहा कि धन्यवाद की कोई बात नहीं है| हम सच्चे मित्र हैं और दुख सुख में एक दूसरे के काम आना ही तो मित्रता है।
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दो शेरों की सच्ची मित्रता की कहानी
एक बार एक जंगल में 2 शेर रहते थे| वे दोनों आपस में बहुत अच्छे मित्र थे और अक्सर ही दोनों शेर और उनके परिवार आपस में मिला करते थे और मिलजुल कर ही खाना खाया करते थे और उनके बच्चे भी आपस में खेला करते थे|
1 दिन किसी बात पर दोनों शेरों के बीच झगड़ा हो गया| झगड़ा इतना ज्यादा बढ़ गया कि दोनों शेरों ने एक दूसरे से बात करनी बंद कर दी| समय बीतता गया और लगभग 1 साल हो गया था| उन दोनों ने आपस में बिल्कुल भी बात नहीं करी थी| यह देखकर शेरों के परिवार वाले बहुत दुखी थे| वह चाहते थे कि इन दोनों की आपस में दोस्ती हो जाए ताकि हम लोग भी दोबारा से आपस में मिलजुल कर रह सके| लेकिन दोनों शेर बहुत जिद्दी थे इसलिए उन दोनों ने एक दूसरे से बात करने की कोशिश भी नहीं करी|
फिर एक दिन शेर और उसके परिवार को भेड़ियों ने घेर लिया और शेर पर हमला करने लगे| यह देखकर शेर के बच्चे डर गए| फिर शेर सोचने लगा कि शायद उसका दोस्त उसे बचाने जरूर आएगा| जब दूसरे शेर को इस बात का पता चला तो बिना सोचे समझे भागा हुआ अपने दोस्त शेर के पास पहुंचा और एक-एक करके सभी भेड़ियों को पाडकर पत्तों की तरह फेंकने लगा|
फिर दोनों शेरों ने मिलकर सभी भेड़ियों को भगा दिया| जब भेड़िए भाग गए तो दूसरा शेर जाकर अपने परिवार के साथ बैठ गया| तब शेर के बच्चे ने शेर से पूछा कि पिताजी जब आप अपने मित्र शेर से बात ही नहीं करते हैं फिर आप उनको बचाने क्यों आए हैं|
तब शेर ने अपने बच्चों को कहा कि नफ़रत कितनी भी ज्यादा क्यों ना हो, दोस्ती इतनी गहरी होनी चाहिए कि कोई भेड़िया उनकी दोस्ती का फायदा ना उठा सके| यह बात दूसरे शेर ने सुन ली थी| शेर ने दूसरे शेर का धन्यवाद किया और दोनों के बीच फिर से दोस्ती हो गई और दोनों के परिवार भी मिलजुल कर रहने लगे।
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रोहन और मोहन की मित्रता की कहानी
एक बार की बात है कि एक गांव में रोहन और मोहन नाम के दो लड़के रहते थे| वह दोनों एक दूसरे को बिल्कुल भी नहीं जानते थे| गांव के बाजार में एक दिन उनकी मुलाकात हुई और उनके बीच काफी देर तक बात होती रही| फिर वह अक्सर ही बाजार में मिलते रहते और ऐसे करते करते उनकी दोस्ती बहुत ज्यादा गहरी हो गई। अब वह इकट्ठे खेला करते थे और साथ में ही स्कूल जाया करते थे| अब गांव के बाजार वाले भी उन दोनों को पहचानने लग गए थे|
समय बीतता गया और दोनों बड़े हो गए। दोनों एक ही क्लास में पढ़ते थे| रोहन पढ़ाई में बहुत ज्यादा होशियार था और मोहन पढ़ाई में ठीक-ठाक ही था| रोहन हर साल क्लास में टॉप करता था और मोहन बस पास होने जितने नंबर ही लेकर पास होता था| पहले तो मोहन को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया वह बड़े होते गए और मोहन रोहन की इस बात से चिढ़ने लगा|
जब भी रोहन टॉप करता मोहन इस बात से चिढ़ता और मन ही मन में सोचता रहता कि अगर रोहन ऐसे ही करता रहा तो 1 दिन रोहन किसी अच्छी यूनिवर्सिटी में एडमिशन ले लेगा और वह खुद वहीं गांव में ही रह जाएगा| काफी समय बीत गया और ठीक वैसे ही हुआ| रोहन ने फिर से क्लास में टॉप किया और उसने आगे की पढ़ाई के लिए विदेश में यूनिवर्सिटी में एडमिशन ले लिया|
फिर कुछ समय के बाद रोहन गांव से चला गया और मोहन उसी गांव में आगे की पढ़ाई करने लगा| अब रोहन के विदेश में नए मित्र बन गए थे| इस बात को सोचकर मोहन और भी ज्यादा परेशान हो रहा था| रोहन अक्सर ही मोहन को विदेश से फोन किया करता था| रोहन जब भी फोन करता था मोहन ज्यादा समय तक रोहन से बात नहीं करता था और ऐसे करते करते उनकी दोस्ती के बीच में दीवार सी खड़ी होने लगी थी|
फिर कुछ महीने बीत गए और मोहन के पिताजी की मृत्यु हो गई| अब मोहन के पास उसकी मां के अलावा और कोई भी नहीं था जिससे वह बात कर सके, अपना दुख सुना सके| तभी एक दिन रोहन का विदेश से फोन आया| जब मोहन ने फोन पर रोहन का नाम देखा तो उसकी आंखों में पानी आ गया और उसने झट से फोन को उठा लिया|
फोन उठाते ही मोहन ने अपने पिताजी के देहांत की सारी बात रोहन को बताई और रोहन भी मोहन की बात काफी देर तक सुनता रहा और उनके बीच आज काफी सालों के बाद इतनी लंबी बात हुई थी| फिर अक्सर ही कभी रोहन का फोन मोहन को आता, कभी मोहन रोहन को फोन करता है और दोनों के बीच पहले जैसी मित्रता हो गई|
नैतिक शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि दोस्ती में दूरियां कितनी भी बढ़ जाए, लेकिन दिलों में दूरियां नहीं आती| वह दोस्त ही क्या जो नाराज ना हो और वह सच्चा दोस्त ही क्या जो उसे मना ना सके।
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Conclusion
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