दोस्तों क्या आप भी Moral Stories in Hindi For Class 8 के बारे में सर्च कर रहे हैं? अगर ऐसा है तो आप बिल्कुल सही जगह पर आए है, क्योंकि आज के इस पोस्ट में हम खास कक्षा 8 के लिए नैतिक कहानियाँ शेयर करने जा रहे हैं| आज की इस पोस्ट में हम आपके साथ कुछ खास, चुनिंदा और ज्ञान से भरपूर कहानियाँ लेकर आए हैं| जिन्हें पढ़कर आपको काफी अच्छी नॉलेज मिलेगी और साथ में जिंदगी की राह को समझने में भी सहायता मिलेगी|
जब हमने देखा कि काफी लोग इंटरनेट पर कक्षा 8 की नैतिक कहानियों के बारे में सर्च कर रहे हैं, तब हमने खुद इसके ऊपर रिसर्च शुरू करी और रिसर्च पूरी करने के बाद ही हम आपके साथ चुनिंदा और खास कहानियां शेयर करने जा रहे हैं, ताकि इन कहानियों को पढ़कर आपको ज्ञान हासिल हो| तो चलिए दोस्तों अब हम शुरू करते हैं|
Name of Story | Moral Stories in Hindi For Class 8 | कक्षा 8 के लिए नैतिक कहानियाँ |
Type of Story | Latest Update |
Category | Moral Story |
Language | Hindi |
पुण्यात्मा बाघ – Moral Stories in Hindi For Class 8
एक बार एक जंगल में एक बुड्ढा बाघ रहता था| वह इतना ज्यादा बूढ़ा हो गया था कि उसमें पहले वाली ताकत और फुर्ती नहीं रही थी और ना ही वह अपने खुद का पेट भरने के लिए शिकार कर पता था| फिर बाघ ने सोचा कि खुद का पेट भरने के लिए मुझे कुछ ना कुछ उपाय तो करना ही होगा| काफी देर अपना दिमाग लगाने के बाद बाघ के दिमाग में एक युक्त आई और बाघ ने जंगल में घोषणा की मैं बुड्ढा हो गया हूँ|
इसलिए मैं अपनी बाकी जिंदगी को पुण्य के काम में लगाऊंगा| मैं घास और फल खाकर ही गुजरा करूंगा, प्रभु का सिमरन करूंगा| आज के बाद मैं किसी भी जानवर का शिकार नहीं करूंगा| इसलिए किसी भी जानवर को मुझे डरने की कोई भी जरूरत नहीं है| यह सुनकर सभी जानवर हैरान हो गए और मन ही मन सोचने लगे कि यह बाघ तो कितना पुण्यआत्मा बाघ है| हमें जाकर एक बार बाघ के दर्शन जरूर करना चाहिए|
फिर अगले ही दिन एक खरगोश बाघ की गुफा में बाघ के दर्शन करने के लिए गया, तो बाघ ने खरगोश का शिकार करके उसे खा लिया| फिर अगले दिन गुफा के अंदर एक हिरण गया तो बाघ ने उसे पर भी झपटा मार कर उसका शिकार करके उसको खा लिया| इस प्रकार काफी दिन तक बाघ गुफा के अंदर ही शिकार करता रहा और अपना पेट भरता रहा|
फिर एक दिन लोमड़ी ने सोचा कि मैं भी बाघ को मिलकर आता हूं| लोमड़ी बहुत ही चालक थी, जब वह गुफा के पास गई तो उसने देखा की गुफा के अंदर पशुओं के पंजो के निशान है| लेकिन जब लोमड़ी ने ध्यान से उन निशानों को देखा तो उसे पता चला कि गुफा के अंदर जाने के निशान है| लेकिन बाहर आने का कोई भी निशान नहीं है|
अब लोमड़ी समझ गई थी कि बाघ गुफा के अंदर जाने वाले जानवरों का शिकार करके उसे खा रहा है और खुद का पेट भर रहा है| फिर लोमड़ी ने सोचा कि मैं बाघ को जिंदा रखने के लिए अपनी कुर्बानी क्यों दूं| फिर लोमड़ी वही गुफा के दरवाजे से वापस लौट गई|
नैतिक शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें किसी की चिकनी चुपड़ी बातों में नहीं आना चाहिए।
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बाजीराव पेशवा और किसान
यह कहानी बाजीराव पेशवा की है, जो मराठा सेना के प्रधान सेनापति थे| एक बार बाजीराव पेशवा अपने दुश्मन पर विजय हासिल करके अपनी राजधानी की ओर लौट रहे थे| तब उन्हें रास्ते में बहुत बड़े पहाड़ को पार करना था| लेकिन उनकी सेना काफी देर से चल रही थी| जिसकी वजह से सेना बिल्कुल थक चुकी थी और भूख प्यास से उनका बुरा हाल था और बाजीराव की छावनी में उनके पास खाने के लिए कुछ भी नहीं बचा था|
फिर बाजीराव ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि तुम्हें यहाँ जो कोई खेत दिखाई दे वहां से फसल काटकर छावनी में ले आना| बाजीराव के हुकुम के अनुसार सरदार सेवा की एक टुकड़ी लेकर गांव की ओर चल पड़े| वहां पर उन्हें एक किसान दिखाई दिया| सरदार ने किसान को कहा कि हमें किसी बड़े खेत के पास लेकर जाओ| किसान उन्हें बड़े खेत के पास ले गया| फिर सरदार ने अपने सैनिकों को खेत की सारी फसल काट कर अपने थैलों में भरने का आदेश दिया| यह सुनकर किसान का सर चकरा गया|
फिर किसान ने कहा कि आप इस खेत की फसल मत काटो, मैं आपको एक दूसरे खेत में लेकर चलता हूँ, जहां पर फसल पक्की हुई है| सरदार किसान की बात के साथ सहमत हो गया और किसान के साथ चल पड़ा| काफी देर चलने के बाद सरदार अपने सैनिकों के साथ किसान के खेत के पास पहुंच गया| खेत बहुत छोटा था, लेकिन फसल पक्की हुई थी|
छोटा खेत देखकर सरदार को गुस्सा आ गया और उसने किसान को बोला कि तुमने यह क्या हरकत करी है| इतना बड़ा खेत छोड़कर तुम इस छोटे से खेत में हमें क्यों लेकर आए हो| तब किसान ने विनम्रता के साथ हाथ जोड़कर कहा कि वह खत मेरा नहीं था, यह खेत मेरा है| आप जितनी चाहे फसल काट लीजिए यह सुनकर सरदार का गुस्सा भी ठंडा हो गया और वह बिना फसल काटे ही अपने महाराज के पास वापस छावनी में चला गया|
सरदार ने सारी बात पेशवा को बताई| तब पेशवा को अपनी गलती का एहसास हुआ और पेशवा सरदार और सैनिकों के साथ उसे किसान के खेत में गया| पेशवा ने किसान के खेत की सारी फसल को काटा और उसके बदले में किसान को अशरफियां भी दी और फसल काटकर बाजीराव पेशवा अपने सैनिकों के साथ वापस छावनी में ले गए|
नैतिक शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि नम्रता का परिणाम हमेशा अच्छा ही होता है।
न्यायी राजा
यह कहानी राजा विक्रमादित्य की है, जो अपने न्यायप्रियता के लिए काफी ज्यादा मशहूर थे| एक बार राजा विक्रमादित्य खुद के लिए काफी बड़ा और शानदार महल बनवा रहे थे| राजा विक्रमादित्य ने अपने महल का नक्शा भी तैयार करवा लिया था| लेकिन महल बनाने में उन्हें एक समस्या आ रही थी, वह समस्या यह थी कि उनके महल के पास एक झोपड़ी थी| जो उनके महल की शोभा को कम कर रही थी|
फिर राजा विक्रमादित्य ने झोपड़ी के मालिक को अपने पास बुलाया और उसे कहा कि तुम्हारी झोपड़ी के बदले में मैं तुम्हें खूब सारा पैसा दे देता हूँ| तुम इस झोपड़ी को छोड़ दो| लेकिन झोपड़ी का मालिक काफी अड़ियल था| उसने राजा विक्रमआदित्य के प्रस्ताव को ठुकरा दिया और कहा कि महाराज मेरा जन्म यहीं पर हुआ है, मेरी सारी उम्र इसी झोपड़ी में निकली है और मैं इसी झोपड़ी में ही मरना चाहता हूँ|
फिर राजा विक्रमादित्य ने सोचा कि किसी गरीब आदमी के साथ अन्याय करना उचित नहीं है| उन्होंने झोपड़ी के मालिक को वहां से जाने का आदेश दे दिया| फिर राजा विक्रमादित्य ने अपने मंत्री से कहा कि कोई बात नहीं मैं हम झोपड़ी को कुछ नहीं करेंगे और इस झोपड़ी को यहीं रहने देंगे| जब भी कोई मेरे इस शानदार महल को देखेगा तो वह इसके सौंदर्यबोध की सहाराना जरूर करेगा और जब भी कोई इस झोपड़ी को देखेगा तो वह मेरे न्यायप्रियता की तारीफ भी जरूर करेगा।
नैतिक शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जियो और जीने दो।
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बलवान कौन
एक बार हवा और सूर्य के बीच में बहस हो गई| दोनों एक दूसरे को कहने लगे कि मैं बलवान हूँ| हवा कहती है कि मैं बलवान हूँ और सूर्य कहता मैं बलवान हूँ| फिर उन्होंने सोचा कि हम इस बात का कैसे पता करें कि हम दोनों में से बलवान कौन है? तभी उन दोनों की नजर रास्ते में जा रहे एक यात्री पर पड़ी| उस यात्री ने अपने ऊपर कपडा ओढ़ रखा था|
फिर सूर्य और हवा के बीच में फैंसला हुआ कि जो हम में से इस व्यक्ति के ऊपर से कपडे को उतार देगा वह ज्यादा बलवान होगा| पहले हवा की बारी आई, हवा ने अपना पूरा जोर लगाते हुए यात्री की और हवा फेंकनी शुरू कर दी| जैसे-जैसे हवा का प्रभाव बढ़ता रहा यात्री की अपने कपडे के ऊपर भी पकड़ भी बढ़ती गई| काफी देर तक हवा अपना जोर लगाती रही और यात्री भी अपने कपडे को उतनी ही कसकर पकड़ता रहा| फिर हवा थक गई और उसने जोर लगाना बंद कर दिया|
फिर सूर्य की बारी आई| सूर्य हवा के प्रयास को देखकर मुस्कुराने लगा और कहने लगा कि अब देखना मेरी गर्मी से यह आदमी अपने कपडे को जरूर उतार देगा और यह कहकर सूर्य मुस्कुराने लगा| फिर सूर्य ने अपनी गर्मी बढ़ानी शुरू कर दी और उसे व्यक्ति ने भी अपने कपडे से पकड़ नरम कर ली| यह देखकर सूर्य का हौसला और भी बढ़ गया और सूर्य मुस्कुराने लगा|
फिर सूर्य धीरे-धीरे अपनी गर्मी बढ़ाता रहा और अब गर्मी इतनी ज्यादा बढ़ गई थी कि आदमी को कपडे की कोई जरूरत नहीं थी और उसने कपडे को उतार कर रख दिया और इस प्रकार सूर्य हवा से ज्यादा ताकतवर साबित हुआ|
नैतिक शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जोर दिखाने से कोई भी बलवान नहीं होता।
शेर का हिस्सा
एक बार एक जंगल में रीश, लोमड़ी, भेड़िया और शेर रहते थे| एक दिन उन्होंने मिलकर शिकार करने के बारे में सोचा| वह चारों शिकार की ओर निकल पड़े| तभी उन्हें रास्ते में एक भैंस दिखाई दी| उन चारों ने भैंस के ऊपर झपटा मारकर उसे मार दिया और उसका शिकार कर दिया| उन चरों ने भैंस के चार हिस्से कर दिए और सभी ने अपने अपने हिस्से पर अधिकार जमा लिया|
तभी शेर ने गरजते हुए बोला कि रुको कोई भी शिकार के पास नहीं जाएगा| शिकार का पहला हिस्सा मेरा है क्योंकि मैं इस जंगल का राजा हूँ| शिकार का दूसरा हिस्सा मेरा है क्योंकि मैं शिकार करने में तुम्हारा आगू था| शिकार का तीसरा हिस्सा मेरा है क्योंकि मुझे शिकार अपने बच्चों के लिए लेकर जाना है और बचा शिकार का चौथा हिस्सा जिसे भी चाहिए मुझसे लड़ाई करके उसे जीत ले| बाकी तीनों जानवरों ने शिकार का चौथा हिस्सा भी छोड़ दिया और वह वहां से चुपचाप चले गए और इस प्रकार शेर ने पूरी भैंस के ऊपर खुद का कब्जा जमा लिया।
नैतिक शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जिसकी लाठी उसकी भैंस
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चतुर ज्योत्षी
एक बार एक राज्य में एक ज्योत्षी रहता था| उसकी की हुई भविष्यवाणी हमेशा ही सही साबित होती थी| वह जब भी किसी के बारे में भविष्यवाणी करता था कभी भी गलत साबित नहीं हुई थी| एक बार उसी राज्य के एक राजा ने ज्योत्षी को अपने पास बुलाने का आदेश दिया| राजा के सैनिक ज्योत्षी को लेकर राजा के पास पहुंचे| राजा ने ज्योत्षी का स्वागत बड़े ठाट बात से किया| राजा ने ज्योत्षी को ऊंट पर बिठाकर अपने राज्य में बुलाया| यह देखकर ज्योत्षी भी बहुत खुश हुआ|
फिर ज्योत्षी को राजा के पास पेश किया गया| राजा ने ज्योत्षी को अपनी जन्म कुंडली दी और उसे अपना भविष्य बताने के बारे में कहा| फिर ज्योत्षी ने राजा की जन्म कुंडली को काफी देर तक ध्यान से देखने के बाद बड़ी ही विनम्रता के साथ राजा को उसके भविष्य में होने वाली अच्छी-अच्छी बातों के बारे में बताना शुरू कर दिया| यह सुनकर राजा मन ही मन खुश होने लगा और अपने भविष्य के बारे में सोचने लगा|
फिर ज्योत्षी ने राजा को अपने भविष्य में होने वाली दुर्घटनाओं के बारे में धीरे-धीरे बताना शुरू कर दिया| यह सुनकर पहले तो राजा का मन उदास हो गया और फिर गुस्से में आ कर राजा ने कहा कि यह क्या तुम अनाप-शनाप बोल रहे हो, इस बोलना बंद करो| फिर राजा ने ज्योत्षी को बोला कि तुम अपनी जन्म कुंडली देखकर बताओ कि तुम्हारी मृत्यु कब होने वाली है|
अब ज्योत्षी भी समझ चुका था कि राजा उसे मृत्यु दंड देने वाला है| फिर चतुर ज्योत्षी ने बड़ी ही चतुराई के साथ राजा को कहा कि आपकी मृत्यु के एक दिन पहले मेरी मृत्यु होने वाली है| यह सुनकर राजा चुप हो गया| राजा पहले ज्योत्षी को मृत्युदंड देने वाला था, जब उसे पता चला कि ज्योत्षी की मृत्यु से एक दिन पहले उसकी मृत्यु होने वाली है तो राजा ने ज्योत्षी को मृत्युदंड नहीं दिया और ज्योत्षी के चतुर जवाब को सुनकर राजा बहुत खुश हुआ और उसे बदले में उपहार देकर उसे इज्जत के साथ राजमहल से उसके घर छोड़ने का आदेश दिया।
गरीब आदमी और अमीर आदमी
एक बार एक गांव में गरीब मोची और एक अमीर व्यापारी रहता था| वह दोनों पड़ोसी थे| गरीब मोची ने अपने घर के अंदर ही जूतियां सिलाई का काम शुरू कर रखा था| वह घर पर बैठकर ही जूते सीता था और घर का खर्च चलता था| गरीब मोची जब भी जूते सीता था, वह खुश होकर मन में गाने गुनगुनाते रहता था और हमेशा खुश ही रहता था|
वहीं दूसरी और अमीर व्यापारी यह देखकर बहुत हैरान था कि गरीब मोची के पास तो इतने पैसे भी नहीं है वह फिर भी इतना मुस्कुराता और गुनगुनाते रहता है और कभी भी वह दुखी नहीं होता है| गरीब मोची कभी भी रात को अपने घर के दरवाजे भी बंद नहीं करता था| गरीब मोची का मानना था कि उसके घर पर ऐसा कुछ भी नहीं है जो कोई चुरा कर ले जाएंगे| इसलिए रात को घर के दरवाजे खुले रखता था और हमेशा ही भगवान की पूजा करता रहता था| इस बात से अमीर व्यापारी को मोची से इर्षा भी होती थी|
एक दिन व्यापारी ने मोची को अपने पास घर पर बुलाया और उसे 10000 रुपए दे दिए और कहा कि यह पैसे तुम रख लो और इन पैसों को मुझे लौटने की भी जरूरत नहीं है| एक बार तो मोची पैसे लेकर खुश हो गया और अपने घर चला गया| फिर मोची ने पैसे अपने घर पर रख दिए और पहली बार मोची ने अपने घर का दरवाजा भी रात को बंद किया और रात को नींद भी 5-6 बार टूटी|
पहली बार था कि मोची मन में पैसों के बारे में सोच रहा था| वह चिंतित हो रहा था और उसे नींद भी नहीं आ रही थी| अगला दिन हुआ, मोची 10000 रुपए लेकर व्यापारी के पास गया और हाथ जोड़कर व्यापारी को कहा कि यह पैसे आप रख लीजिए| आपके पैसों की वजह से मेरी रातों की नींद उड़ गई है| मैं इन पैसों को अपने पास नहीं रख सकता हूँ|
नैतिक शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि पैसा हर खुशी नहीं दिला सकता।
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सभी माध्यमों का उपयोग
एक बार एक किसान अपने बच्चों के साथ खेत में काम कर रहा था| किसान का लड़का अपने पिता को खुश करना चाहता था| इसलिए वह अपने पिता के निर्देश अनुसार सारे काम कर रहा था| जब भी उस के पिताजी खेत में उसे कोई काम करने के लिए कहते तो वह झटपट उस काम को करने के लिए तैयार हो जाता है और उस काम में लग जाता था|
फिर किसान ने अपने बेटे के पैर के पास एक पत्थर देखा और बेटे को कहा कि तुम इस पत्थर को इस जगह से हटाकर दूसरी जगह रख दो| हम यहां पर एक पेड़ लगाएंगे| बेटे ने पत्थर को हटाने की कोशिश करी लेकिन पत्थर नहीं हटा| फिर किसान ने अपने बेटे को कहा कि तुम अपने सभी माध्यमों का इस्तेमाल करो और इस पत्थर को हटाने की कोशिश करो| फिर बेटे ने अपनी पूरी ताकत लगाई लेकिन पत्थर फिर भी हटा| यह देखकर बेटा वहीं पर बैठकर जोर-जोर से रोने लगा|
फिर किसान ने अपने बेटे से पूछा बेटा क्या हुआ? तुम रो क्यों रहे हो? फिर बेटे ने कहा कि पिताजी आपने मुझे पत्थर को हटाने के लिए कहा था, लेकिन मैंने पूरी ताकत लगाई और पत्थर को हटा नहीं पाया| फिर किसान ने अपने बेटे को कहा कि जब तुमसे पत्थर हट नहीं रहा था तो तुम मुझसे सहायता ले सकते थे| हम दोनों मिलकर इस पत्थर को आसानी से हटा सकते थे| यह सुनकर बेटा मुस्कुराने लगा और अपने पिता की सहायता लेते हुए दोनों ने पत्थर को हटाकर दूसरी ज्यादा पर रख दिया और वहां पर एक पेड़ लगा दिया|
नैतिक शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जब हमारा कोई काम नहीं बनता है तो हम ईश्वर की सहायता ले सकते हैं और फिर हमारा काम भी बन जाता है।
कर्ण की उद्धारता
एक बार श्री कृष्ण और अर्जुन बाहर टहल रहे थे| तब अर्जुन ने श्री कृष्ण से पूछा कि मुझे एक बात समझ नहीं आती कि लोग कर्ण को इतना उद्धार व्यक्ति क्यों मानते हैं? फिर श्री कृष्ण ने मुस्कुराते हुए कहा कि इसका जवाब तुम्हें समय आने पर मिल जाएगा| फिर श्री कृष्ण ने वहां पर मौजूद दो पहाड़ियों को सोने में बदल दिया और अर्जुन को कहा कि है सोना गांव वालों के बीच बांट दो|
श्री कृष्ण के कहे अनुसार अर्जुन ने सभी गांव वालों को बुला लिया और उन्हें कतार में खड़ा कर लिया| फिर सबको सोना बांटना शुरू कर दिया| सुबह से शाम हो गई, शाम से रात और रात से अगला दिन हो गया, लेकिन पहाड़ी पर सोना बिलकुल भी कम नहीं हुआ और अर्जुन भी सोना बांटते बांटते थक गया था| फिर अर्जुन, श्री कृष्ण के पास आए और उन्होंने कहा कि मैं आप थक चुका हूँ| मुझे अब और सोना नहीं बांटा जाएगा|
फिर श्री कृष्ण ने अर्जुन को कहा चलो ठीक है मैं कर्ण को बुलाता हूं| श्री कृष्ण ने कर्ण को बुलाया और सारे सोने को गांव वालों में बांटने के लिए कहा| फिर कर्ण ने गांव वालों को बुलाया और कहा कि जिसे जितना सोना चाहिए अपने आवश्यकता के अनुसार ले सकता है और यह कहकर कर्ण वहां से चला गया| फिर श्री कृष्ण ने कहा कि जब मैने तुम्हें सोना बांटने के लिए कहा था| तुम प्रत्येक गांव वालों को सोने दे रहे थे और वहां पर अपनी प्रशंसक सुनने के लिए रुके हुए थे|
लेकिन कर्ण ने ऐसा नहीं किया, उसने एक बार में ही सभी गांव वालों को अपनी आवश्यकता के अनुसार सोने उठाने के लिए कहा और प्रशंसा का सुनने का इंतजार किया बिना ही वहां से चला गया| इसलिए लोग कर्ण को उद्धार व्यक्ति मानते हैं। इस प्रकार अर्जुन को अपने सवाल का जवाब मिल गया|
नैतिक शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जब हम कोई दान पुण्य करते हैं तो हमें किसी फल की इच्छा नहीं रखनी चाहिए।
कठिनाई का सामना
एक बार बिहार के एक गांव में गोविंद नाम का व्यक्ति था| एक दिन वह गहरी नींद में सो रहा था| तभी उसके सपने में भगवान आए, उसने देखा कि उसके कमरे में बहुत ज्यादा रोशनी आ रही है और उसके कमरे के बाहर एक बड़ी सी चट्टान खड़ी है| भगवान ने गोविंद को उस चट्टान को हिलाने के लिए कहा| अगली सुबह हुई गोविंद उठा और उसे अपना सपना याद था| उसने बाहर जाकर देखा तो सच में उसके कमरे के बाहर एक चट्टान थी|
गोविंद ने चट्टान को जोर लगाकर धक्का दे दिया और हिलाने की कोशिश किया करी, लेकिन चट्टान अपनी जगह से नहीं हिली| गोविंद ने अगले दिन फिर प्रयास किया लेकिन चट्टान अपनी जगह से फिर नहीं हिली| काफी साल बीत गए गोविंद लगातार चट्टान को धक्का देता रहा लेकिन चट्टान अपनी जगह से बिल्कुल भी नहीं हिली| अपनी कड़ी मेहनत के बावजूद भी जब गोविंद को लगा कि वह चट्टान को एक जगह से दूसरी जगह पर करने में असमर्थ हो गया है तब गोविंद बहुत ज्यादा निराश हो गया|
फिर गोविंद ने भगवान से सहायता लेने के बारे में सोचा| गोविंद ने भगवान से प्रार्थना करी और कहा कि भगवान आप ने मुझे चट्टान को धक्का देने के लिए कहा था| मैंने कई वर्षों तक चट्टान को धक्का दिया, लेकिन चट्टान अपनी जगह से बिलकुल भी नहीं हिली| आपके कहे अनुसार काम को करने में असफल रहा हूं, आप मुझे माफ कर दीजिए|
फिर भगवान प्रकट हुए, उन्होंने कहा कि बालक मेने तुम्हें चट्टान को धक्का देने के लिए कहा था| चट्टान को एक जगह से दूसरी जगह तक हिलाने के लिए नहीं कहा था| तुमने चट्टान को कई सालों तक लगातार धक्का दिया| तुम अपने काम में सफल रहे हो| तुमने इतने साल कड़ी मेहनत करके चट्टान को धक्का दिया जिसकी वजह से चट्टान तो नहीं हिली, लेकिन तुम्हारा शरीर मजबूत हो गया है| ऐसे में तुम असफल कैसे हो सकते हो? तुम तो सफल हुए हो|
नैतिक शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जब हम कठिनाइयों का सामना करते हैं उसे समय हमें भगवान पर भरोसा करना चाहिए।
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जीवन के संघर्ष
एक बार गोपाल नाम का एक व्यक्ति था| उसके परिवार में सिर्फ उसकी एक लड़की थी| उसकी बीवी की काफी समय पहले मृत्यु हो गई थी| एक दिन गोपाल ने देखा कि उसकी बेटी दुखी बैठी है| तब गोपाल ने अपनी बेटी से पूछा कि बेटी तुम्हे क्या हुआ है? तुम इतनी उदास क्यों हो? फिर बेटी ने कहा पिताजी मेरे जीवन से एक मुश्किल खत्म होती है, दूसरी शुरू हो जाती है| अभी दूसरी चली रही होती है कि तीसरी मुसीबत आ जाती है| मैं इन मुसीबतो से तंग आ चुकी हूँ|
फिर पिताजी मुस्कुराए और बेटी को अपने साथ रसोई में ले गए| गोपाल ने रसोई में आग के ऊपर तीन बर्तन रखें और उनमें पानी डाला| पहले बर्तन में आलू, दूसरे में अंडा और तीसरे में कॉफ़ी डाली| गोपाल की बेटी अपने पिता को देख रही थी और कुछ भी नहीं कह रही थी| गोपाल ने अपनी बेटी को कहा कि हम इस बर्तन को 30 मिनट तक आग पर रखेंगे, उसके बाद देखना क्या होता है|
फिर 30 मिनट के बाद गोपाल ने पहले बर्तन से आलू को बाहर निकाला और अपनी बेटी को आलू दे दिया| बेटी ने आलू पकड़ा और कहा कि यह तो बहुत नरम हो गया है| फिर गोपाल ने दूसरे बर्तन से अंडे को निकाला और अपनी बेटी को दे दिया| अंडा इतनी देर पानी में रहने के बाद बहुत ज्यादा कठोर हो गया था और तीसरे बर्तन में कॉफी को निकाला और बेटी को कहा कि इसे पी लो|
बेटी को कुछ समझ नहीं आ रहा था| उसने अपने पिताजी से पूछा कि पिताजी यह सब क्या है? फिर उसके पिता गोविंद ने कहा कि आलू अंडा और कॉफी को 30 मिनट पानी में डालने के बाद आलू जो सख्त होता है, वह नरम हो गया| अंडा जो नरम होता है वह सख्त हो गया और कॉफ़ी पानी में घुल गए और पानी का रंग और टेस्ट बदल गया|
ऐसे में अब यह तुम पर निर्भर करता है कि जब तुम पर जब कोई मुसीबत आती है तो तुम आलू, अंडा या कॉफी क्या बनना चाहोगी और उस मुसीबत का सामना कैसे करोगी? अब बेटी को सारी बात समझ आ गई थी और अब गोपाल की बेटी पहले की तरह उदास नहीं रही थी और मुसीबत का सामना करने को भी तैयार हो गई थी।
नैतिक शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमारे जीवन में मुसीबतें आती है तो हम पर निर्भर करता है कि हम उन मुसीबत का सामना कैसे करते हैं और मुसीबत पर कैसी प्रतिकिर्या दिखाते हैं।
भगवान का काम
एक बार मोहन को किसी काम से दूसरे शहर के लिए जाना था| उसकी सुबह की बस थी, लेकिन किसी वजह से उसकी बस छूट गई| बस पकड़ने में उसे देरी हो गई| फिर मोहन को भूख भी लग रही थी| मोहन ने सोचा कि सामने होटल में जाकर मैं कुछ खा लेता हूँ| जब मोहन वहां होटल की ओर जा रहा था तब उसने देखा कि रास्ते में दो बच्चे बैठे हैं, जिनके चेहरे को देखकर लग रहा है कि वह बच्चे बहुत ज्यादा भूखे हैं|
मोहन ने जाकर दोनों बच्चों को 10 रुपए दिए और होटल में खाना खाने के लिए जाने लगा| तब रास्ते में जाते हुए मोहन को इस बार का एहसास हुआ कि जब वह खुद 10 रुपये मे एक कप चाय नहीं पी सकता तो यह बच्चे 10 रुपये में अपना पेट कैसे भरेंगे? मोहन भाग कर उन बच्चों के पास गया और उन्हें अपने साथ होटल में खाना खाने के लिए लेकर जाने लगा|
जैसे ही बच्चे मोहन के साथ होटल के अंदर दाखिल होने लगे, बच्चों को उनके फ़टे पुराने पहने हुए कपडे देख कर अंदर आने के लिए मना कर दिया गया| फिर मोहन ने होटल वालों से बात करके बच्चों को अंदर आने की अनुमति दिलाई और मोहन बच्चों के साथ टेबल पर बैठ गया| फिर मोहन ने खाना ऑर्डर किया| उस समय बच्चों के चेहरे पर खुशी देखने वाली थी| जब खाना आया, तब बच्चों ने पेट भर कर खाना खाया और खाना खाकर बच्चे बहुत ज्यादा खुश हो गए|
फिर मोहन और बच्चे होटल से चले गए और मोहन अपनी बस पकड़ कर दूसरे शहर के लिए चला गया| काफी दिन बीत गए मोहन के दिमाग में अभी भी वह बच्चे चल रहे थे| वह सोच रहा था कि उन बच्चों का गुजारा कैसे होता होगा? फिर एक दिन जब मोहन मंदिर गया तो मंदिर में मोहन ने भगवान के पास जाकर प्रार्थना की, हे भगवान तुम्हारे बच्चे भूखे और पीड़ित घूम रहे हैं तुम उनके साथ ऐसा नहीं कर सकते हो| तुम्हें उनका ध्यान रखना चाहिए, उन्हें खाने और रहने के लिए घर का इंतजाम भी करना चाहिए।
फिर मोहन थोड़ी देर वही मंदिर के अंदर बैठा रहा| तभी मोहन के मन में विचार आया कि उसने उन बच्चों के साथ जो किया, उन्हें खाना खिलाया और उसका बच्चों के साथ उसे समय होना यह सब कुछ भगवान की ही तो लीला है| जो मैंने किया है यह मुझसे भगवान ने ही तो करवाया है। जब किसी को मदद की जरूरत होती है भगवान जरुरत के समय उसकी मदद के लिए किसी न किसी को जरूर भेज देते है।
नैतिक शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि किसी की मदद से इनकार करने का मतलब भगवान के काम को इंकार करना है।
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Conclusion
उम्मीद करते हैं कि हमारे द्वारा शेयर करी गई Moral Stories in Hindi For Class 8 आपको काफी पसंद आई होगी और इन कहानियों को पढ़कर आपको काफी कुछ सीखने को भी मिला होगा| अगर आपको हमारे द्वारा शेयर करी गई कहानियां अच्छी लगी हो या फिर आप हमें कोई कमेंट करना चाहते हैं तो नीचे कमेंट बॉक्स में कमेंट कर सकते हैं| आप चाहे तो हमारी इस पोस्ट को अपने दोस्तों के साथ शेयर भी कर सकते हैं।
FAQ (Frequently Asked Questions)
इन कहानियों को पढ़ने से हमें क्या लाभ होगा?
इन कहानियों को पढ़ने से हमें अच्छी शिक्षा मिलेगी और अपने जीवन के लिए सही रह चुनने में सहायता मिलेगी।
कक्षा 8 की कहानियाँ विशेष रूप से किनके लिए है?
कक्षा 8 की कहानियाँ विशेष रूप से बच्चों के लिए है|
कक्षा 8 की कहानियाँ से हमे क्या शिक्षा मिलती है?
कक्षा 8 की कहानियाँ से हमे अपने जीवन के लिए सही राह चुनने की शिक्षा मिलती है।