दोस्तों के अभी Moral Stories in Hindi for Class 3 के बारे में सर्च कर रहे हैं? अगर ऐसा है तो आप बिल्कुल सही जगह पर आए है, क्योंकि आज की इस पोस्ट में हम आपके साथ कक्षा 3 की नैतिक कहानियां शेयर करने जा रहे हैं|
अगर आप Class 3 के छात्र है और कहानियां पढ़ना पसंद करते हैं तो आप बिल्कुल सही जगह पर आए है, क्यूंकि आज की इस पोस्ट में सिर्फ हम आपके लिए कक्षा 3 की नैतिक कहानियां लेकर आए हैं जो पढ़ने में आपको दिलचस्प लगेंगी और आपको अच्छा भी महसूस होगा| तो चलिए दोस्तों अब हम शुरू करते हैं।
शेर और चूहा की कहानी – Moral Stories in Hindi for Class 3
एक बार एक जंगल में एक शेर रहता था| वह दूसरे जानवरों को मारकर उनका शिकार करता था और खुद का पेट भरता था| शेर ने एक दिन जंगल में किसी जानवर का शिकार किया और उसे खा गया| खाना खाने के बाद शेर बहुत ज्यादा थक गया| फिर से ना देखा कि उसके पास सामने एक बहुत बड़ा पेड़ है| शेर पेड़ के नीचे जाकर लेट गया और शेर को उसी समय नींद आ गई|
उस पेड़ के पास एक छोटी सी बिल थी, जिसके अंदर एक चूहा रहता था| चूहा बहुत ही ज्यादा शरारती था| उसने देखा कि उसकी बिल के बाहर शेर सो रहा है तो चूहा बिल से बाहर निकला और शेर के शरीर के ऊपर चढ़कर कूदने लगा| चूहे के कूदने की वजह से शेर की आँख खुल गए और शेर ने अपने पंजों में चूहे को पकड़ लिया| फिर शेर ने चूहे से कहा कि तुम्हारी इतनी हिम्मत कि तुम मुझसे मजाक कर सको|
तब चूहा बहुत ज्यादा डर गया और शेर को कहने लगा कि मुझे माफ कर दीजिए| मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई है| आप मुझ पर दया कीजिए, मुझे मत मारिए| मैं भी आपके किसी ना किसी काम जरूर आऊंगा| तो शेर जोर जोर से हंसने लगा और कहने लगा तुम इतने छोटे से चूहे हो मेरे क्या काम आ सकते हो तब चूहे ने कहा कि जब जरूरत पड़ेगी तो मैं आपके काम आ कर दिखाऊंगा और आपको तब पता चल जाएगा|
चूहे की बात सुनकर शेर को चूहे पर दया आ गई और शेर ने चूहे को छोड़ दिया| फिर 1 दिन चूहे को शेर की दहाड़ की आवाज सुनाई दी| चूहा भागकर बिल से बाहर निकला| चूहे ने देखा कि शेर को किसी शिकारी ने जाल में फंसा लिया है| शेर जाल से निकलने की बहुत कोशिश कर रहा है, लेकिन जाल से निकल नहीं पा रहा है|
फिर चूहा भागकर शेर के पास गया और चूहे ने अपने दांतो से जाल को काट कर जाल से शेर को बाहर निकाल दिया और इस प्रकार चूहे ने शेर की जान बचा ली| फिर शेर और चूहा दोनों जंगल की ओर चले गए|
नैतिक शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी किसी को कम नहीं समझना चाहिए।
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बिल्ली और लोमड़ी की कहानी
एक बार एक जंगल में एक बिल्ली और एक लोमड़ी रहती थी| दोनों बहुत अच्छी मित्र थी| वह दोनों साथ में घूमती फिरती थी और खाना भी साथ में ही खाती थी और देर तक बैठकर गप्पे मारती थी| फिर एक दिन बिल्ली और लोमड़ी भेड़ियों के ऊपर चर्चा करने लगी|
बिल्ली कहने लगी कि मुझे भेड़ियों से बहुत नफरत है| तो लोमड़ी ने कहा मुझे भी भेड़ियों से बहुत नफरत है| वह कितना तेज दौड़ते हैं लेकिन मुझे पकड़ पाना उनके बस में नहीं है| मैं किसी न किसी तरीके से उनसे बचकर निकल ही जाती हूँ|
तभी बिल्ली ने लोमड़ी ने पूछा कि तुम उनसे कैसे बचकर निकलती हो| तब लोमड़ी ने फुकरी मरते हुए कहा कि मैं कभी कांटेदार झाड़ियों में से भाग जाती हूँ तो कभी झाड़ियों में चुप जाती हूँ| जैसे तैसे करके मैं भेड़ियों के हाथ नहीं आती| बिल्ली ने कहा कि मेरे पास तो सिर्फ एक ही तरीका है, जिसका इस्तेमाल में भेड़ियों से बचने के लिए करती हूँ|
तब लोमड़ी ने कहा कि सिर्फ एक ही तरीका है| यह तो बहुत बुरी बात है| फिर लोमड़ी ने बिल्ली से पूछा की वह तरीका क्या है? इस से पहले बिल्ली कुछ बोलती उसने देखा कि सामने से भेड़िया आ रहा हैं| तब बिल्ली ने लोमड़ी को कहा कि मैं अभी दिखाती हूँ| जैसे ही भेड़िया बिल्ली के पास आने लगा| बिल्ली भागकर पेड़ के ऊपर चढ़ गई और खुद की जान बचा ली|
फिर भेड़िया वहां से लोमड़ी के पीछ्ने भागने लगा| लोमड़ी कभी झाड़ियों में भागती तो कभी कुछ करती| लेकिन फिर भी भेड़िए ने लोमड़ी को पकड़ लिया और उसे मार दिया| फिर बिल्ली मन ही मन में सोचने लगी कि लोमड़ी के पास इतने तरीके थे लेकिन उसका कोई भी तरीका काम ना आ सका और वह अपनी जान से हाथ धो बैठी| मेरे पास सिर्फ एक ही तरीका था, जिसका इस्तेमाल करके मैने अपनी जान बचा ली| इसलिए अनेक तरीकों से बेहतर एक तरीका ही है|
नैतिक शिक्षा
हमें जीवन में अनेक तरीकों से बेहतर एक ही तरीका आजमाना चाहिए।
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2 लड़कों और बादाम की कहानी
एक बार एक गांव में दो लड़के रहते थे| दोनों बहुत अच्छे मित्र थे| वे दोनों एक दिन खेलते कूदते हुए गांव से बाहर की ओर जा रहे थे| तब उन्हें रास्ते में एक बदाम गिरा हुआ दिखाई दिया| फिर झट से एक लड़के ने जाकर बदाम को उठा लिया और कहने लगा कि यह बदाम मेरा है| तब दूसरे लड़के ने कहा कि बदाम पर पहली नजर मेरी गिरी गई थी, इसलिए यह बादाम मेरा है|
बदाम को लेकर दोनों के बीच झगड़ा हो गया| दोनों बदाम के लिए बहस करने लगे| तभी वहां पर एक और लड़का आया उसने देखा कि दोनों लड़के बदाम के लिए झगड़ा कर रहे हैं| तब दूसरे तीसरे लड़के ने कहा कि मुझे बादाम दो, मैं तुम्हारा झगड़ा निपटा देता हूँ| उसके कहे अनुसार दोनों लड़के उसकी बात से सहमत हो गया और उसे बादाम दे दिया|
फिर तीसरे लड़के ने बादाम को तोड़ा और 2 हिस्सों में बांट दिया| बादाम का आधा हिस्सा एक लड़के को दे दिया और दूसरा हिस्सा दूसरे लड़के को दे दिया और खुद बादाम की गिरी खा गया| फिर तीसरे लड़के ने कहा कि मेने तुम दोनों को बराबर बादाम बाँट दिया है और मेने तुम्हारा झगड़ा खत्म करा है इसलिएबादाम के अंदर की गिरी मैं खा लेता हूँ|
नैतिक शिक्षा
दो लोगों के झगडे के बीच तीसरे का फायदा हुआ।
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दूधवाली और उसकी बलटी की कहानी
गांव में एक बुड्ढी औरत रहती थी उसकी एक लड़की भी उसके साथ रहती थी| उस बुड्ढी औरत के पास एक गाय थी| वह गाय का दूध निकाल कर बाल्टी में डालकर शहर के लिए जाती और दूध बेचकर अपने घर का गुजारा करती थी|
1 दिन बुड्ढी औरत की तबीयत खराब हो गई| फिर बुड्ढी औरत ने अपनी लड़की को कहा कि तुम आज दूध की बाल्टी शहर ले जाओ और इस दोष से जितना पैसा कमाओगी उसके लिए कुछ खरीद लेना| यह सुनकर लड़की खुश हो गई और दूध की बाल्टी लेकर शहर की ओर जाने लगी| रास्ते में जाते जाते उसके मन में ख्याल आया कि वह दूध बेचकर जो पैसा उसे मिलेगा उससे वह 2 मुर्गियां लेगी|
फिर मुर्गियों से उसे अंडे मिलेंगे और अंडों को बेचकर और मुर्गियां लेगी| ऐसा करते करते वह मुर्गी पालन का बिजनेस शुरू करेगी| फिर उसे दूध बेचने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि सिर पर दोष की बाल्टी उठाकर उसके बाल ख़राब हो जाते हैं| तभी रास्ते में उस लड़की का पाव एक पत्थर से टकरा गया है और लड़की नीचे गिर गई|
उसके सर पर रखी हुई दूध की बाल्टी भी नीचे गिर गई और उसका सारा दूध नीचे रास्ते पर गिर गया| रस्ते में गिरा हुआ दूध देखकर लड़की को लगा कि उसका सपना टूट गया है और लड़की जोर जोर से रोने लगी|
नैतिक शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जब तक हमारे हाथ में कुछ है होता हमे उसका अंदाज़ा नहीं लगाना चाहिए।
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बदसूरत ऊंट के दुर्व्यहवहार की कहानी
एक जंगल में एक ऊंट रहता था| वह अक्सर ही दूसरे जानवरों का मजाक उड़ाता रहता था और दूसरे जानवरों का मजाक उड़ाने में उसे बहुत सुकून मिलता था| वह कभी भी किसी जानवर की तारीफ नहीं करता था| जब भी वह किसी गाय को देखता तो उसको बोलता कि तुम कितनी बदसूरत हो, तुम अपनी शक्ल देखो, तुम्हारे शरीर तो हड्डियों का पिंजरा है| ऐसा लगता है कि किसी दिन तुम्हारी हड्डियां तुम्हारे शरीर से बाहर निकल आएगी|
जब वह किसी भैंस को देखता तो उसको बोलता कि लगता है भगवान ने तुम्हारे साथ मजाक किया है| तभी तुम्हें इतनी काली कलूटी बनाया है| तुम्हारे टेढ़े मेढ़े सिंघ हैं, जो तुम्हें और भी ज्यादा बदसूरत बना देते हैं|
जब किसी हाथी को देखता तो हाथी को चिढ़ाते हुए कहता, भगवान ने तुम्हारे साथ बहुत बड़ा मजाक किया है| तुम्हारे शरीर के अंगों में बिल्कुल भी संतुलन नहीं है| तुम्हें विशाल शरीर दिया है, लेकिन तुम्हे एक छोटी सी पूँछ दी है, तुम्हारी आंखें कितनी छोटी है, लेकिन तुम्हारे कान कितने बड़े हैं, तुम्हारे शरीर की मैं बात ओर क्या करूं, मैं चुप रहूं तो ज्यादा बेहतर है|
जब ऊंट किसी तोते से मिलता तो तोते को बोलता तुम्हारी चोंच टेढ़ी और लाल रंग की है| भगवन ने तुम्हारे साथ बहुत बड़ा मजाक कर दिया है| इस तरह जब भी ऊंट किसी जानवर से मिलता हमेशा उसका मजाक उड़ाता और खुश होता था|
1 दिन ऊंट कही जा रहा था, उसे सामने से एक चालाक लोमड़ी दिखाई दी| लोमड़ी मुंहफट थी| वह किसी को भी कुछ भी बोलने से बिल्कुल भी नहीं कतराती थी| जैसे ही ऊंट लोमड़ी के पास पहुंचा, इससे पहले कि ऊंट कुछ बोले लोमड़ी ने बोलना शुरू कर दिया, कि तुम दूसरों का मजाक उड़ाते हो तुमने कभी खुद की शक्ल सूरत देखी है|
तुम्हारा चेहरा है कितना लम्बा है और पत्थर जैसी तुम्हारी आंखें हैं, तुम्हारे पीले पीले दांत हैं| सभी जानवरों में से सबसे बस तुम ही एक जानवर हो जिसके शरीर में कमियां ही कमियां है| बाकी जानवरों में तो एक या दो कमियां ही होंगी| यह बात सुनकर ऊंट का सिर शर्म से झुक गया और वहां से चुपचाप निकल गया|
नैतिक शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें दूसरों की खामियां निकालने से पहले अपनी खामियों पर नजर डालनी चाहिए।
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चूहा और मेंढक की कहानी
एक बार एक चूहा और एक मेंढक 2 अच्छे दोस्त थे| मेंढक तालाब में रहता था और चूहा तालाब के पास की एक बिल में रहता था| दोनों अक्सर ही मिलते जुलते रहते थे| मेंढक अक्सर ही चूहे की बिल में चूहे से मिलने के लिए जाया करता था| लेकिन चूहा कभी भी मेंढक के घर तालाब में नहीं जाता था, क्योंकि चूहे को पानी से डर लगता था|
1 दिन मेंढक ने सोचा कि आज में चूहे को अपने साथ अपने घर तालाब में लेकर ही जाऊंगा| फिर मेंढक अपने तालाब से बाहर निकला चूहे की बिल में घुस गया| मेंढक ने चूहे को अपने साथ तलाब में जाने के लिए कहा| लेकिन चूहे ने मना कर दिया| यह सुनकर चूहे को बहुत गुस्सा आया| मेंढक बिल से बाहर निकला और वहां पर पड़ी रस्सी से चूहे के पैरों को बांध दिया औररस्सी का एक सिर्रा खुद के पैरों से बांध लिया|
फिर मेंढक चूहे को घसीटता हुआ तालाब के अंदर ले गया चूहा और चूहा पानी में डूबने लगा| चूहे ने रस्सी को तोड़ने की बहुत कोशिश करी| लेकिन वह रस्सी को तोड़ नहीं पाया और पानी में डूबने लगा| इतने में तलाक के ऊपर से एक बाज जा रहा था| बाज भोजन की तलाश में था, तब बाज की नज़र चूहा पर गई| बाज ने चूहे को अपने मुंह में डाला और उसको लेकर पास के पेड़ पर बैठ गया|
लेकिन चूहे के साथ मेंढक भी बंधा हुआ था| जिसकी वजह से मेंढक भी चूहे के साथ ही बाज के पास पेड़ पर पांच गया| चुके के साथ मेंढक को देख कर बाज बहुत ज्यादा खुस हो गया और फिर बाज ने दोनों को खा लिया|
नैतिक शिक्षा
इस कहानी से हमे यह शिक्षा मिलती है अगर हम किसी के लिए मुसीबत खड़ी करते हैं तो खुद के लिए भी मुसीबत ही पैदा करते हैं।
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राजा और लकड़हारे की कहानी
एक बार एक राजा था| उसे प्रकृति से बहुत ज्यादा प्यार था| वह अक्सर ही प्रकृति के चित्र बनाया करता था| 1 दिन राजा प्रकृति का चित्र बनाने के लिए पहाड़ी के ऊपर चोटी पर चला गया| चोटी पर जाकर उसने देखा कि यहां से प्रकृति का नजारा और भी सुंदर दिखाई दे रहा है| फिर राजा ने अपने ब्रश से चित्र बनाना शुरू कर दिया| थोड़ा समय लगने के बाद राजा का चित्र बनकर तैयार हो गया|
फिर राजा अपने चित्र को ध्यान से देखता रहा, जहां से भी उसे थोड़ी बहुत कमी दिखती वह ब्रश से उसे ठीक कर देता| ऐसे करते-करते राजा ने चित्र में काफी ज्यादा सुधार कर दिए| फिर राजा ने सोचा कि मैं इस चित्र को जरा दूर से देखता हूँ| राजा चित्र को देखते हुए पीछे की ओर कदम बढ़ाता गया| राजा ने कदम बढ़ाए और देखा कि यहां से चित्र काफी अच्छा लग रहा है|
फिर राजा थोड़ा और पीछे जा कर चित्र को देखता है| राजा ने बिना पीछे देखे अपने कदम बढ़ाने शुरू कर दिए| वहीं पर एक गरीब लड़का लकड़ी काट रहा था| उसने देखा कि वहां पर राजा अपने चित्र को देखते हुए पहाड़ी के किनारे पर पहुंच गया है| उसने देखा कि अगर राजा ने एक भी कदम पीछे हटाया तो राजा पहाड़ी से नीचे गिर जाएगा और उसकी मौत हो जाएगी|
इसलिए लड़का भागकर चित्र की ओर गया और उसने अपनी लकड़ी के चित्र को फाड़ दिया| यह देखकर राजा को बहुत गुस्सा आया, राजा ने कहा हे मूर्ख लड़के यह तूने यह क्या किया? तुमने मेरे चित्र को फाड़ दिया| मैं तुम्हें अपने राज महल में ले जाकर फांसी की सजा दूंगा| तब उस लड़के ने बड़ी ही निम्रता के साथ कहा कि राजा जी आप जरा पीछे मुड़ कर देखे| अगर मैं आपका चित्र ना फाड़ता तो आप पीछे कदम रखते ही पहाड़ी से नीचे गिर जाते और आपके प्राण चले जाते|
राजा ने उस लड़के की बात खत्म होते ही पीछे मुड़कर देखा तो राजा पहाड़ी के किनारे पर खड़ा था| तब राजा को एहसास हुआ इस लड़के की वजह से उसकी जान बच गई है| तब राजा लड़के को अपने साथ अपने राजमहल ले गया और वहां जाकर उसको काफी सारे पुरस्कार दिए और उसे अपनी निगरानी में रखकर उसकी परवरिश की| फिर वह लड़का बड़ा हो गया और राजा ने तब उस लड़के को अपना ही राज मंत्री नियुक्त कर लिया।
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लकड़ियों के गुच्छा की कहानी
एक गांव में मुरली नाम का एक आदमी रहता था उसके 3 लड़के थे| तीनों लड़के आपस में लड़ते झगड़ते रहते थे| मुरली अपने तीनों लड़कों की हरकत से बहुत ज्यादा परेशान था| फिर काफी समय बीत गया और तीनों लड़के बड़े हो गए और मुरली भी बुड्ढा हो गया| लेकिन मुरली के तीनों लड़के अभी भी बच्चों की तरह आपस में लड़ते झगड़ते रहते थे|
फिर एक दिन मुरली की तबीयत बहुत ज्यादा खराब हो गई, वह बिस्तर पर लेट गया| फिर मुरली ने अपने तीनों लड़कों को लकड़ी के छोटे-छोटे टुकड़े लाने के लिए कहा| तीनों लड़के लकड़ियों के टुकड़े लेकर अपने पिता के पास आये और अपने पिता को दे लकड़ी के टुकड़े दे दिए|
फिर मुरली ने अपने तीनों लड़कों को एक एक लकड़ी का टुकड़ा दिया और तोड़ने के लिए कहा| तीनों लड़कों ने लकड़ी के टुकड़े को तोड़ दिया| फिर मुरली ने दो-दो लकड़ी के टुकड़े दिए और तोड़ने के लिए कहा| तीनों लड़कों ने लकड़ी के टुकड़ों को तोड़ दिया| फिर मुरली ने लकड़ी के टुकड़ों के तीन गुच्छे बनाएं और अपने तीनों लड़कों को दे दिए और तोड़ने के लिए कहा| तीनों लड़कों ने पूरा जोर लगा दिया लेकिन लकड़ी के टुकड़े को तोड़ नहीं पाए|
तब मुरली ने अपने तीनों लड़कों को समझाया कि जैसे एक एक टुकड़ा देने पर तुमने लकड़ी के टुकड़े को तोड़ दिया| जब मैंने तुम्हें लकड़ी का गुच्छा दिया तुम लकड़ी के गुच्छे को तोड़ नहीं पाए| ठीक उसी तरह अगर तुम तीनों एक साथ रहोगे तो तुम्हें कोई भी नुकसान नहीं पहुंचा पाएगा| अगर तुम तीनों अलग-अलग रहोगे तो कोई भी तुम्हें नुकसान पहुंचा देगा| तीनों लड़कों को अपने पिताजी की बात समझ आ गई और तीनों ने वादा किया कि आगे से वह कभी भी आपस में झगड़ा नहीं करेंगे और मिलजुल कर रहेंगे|
नैतिक शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि एकता में ही बल है।
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लकड़हारा और देवदूत की कहानी
एक गांव में एक लकड़हारा रहता था| वह बहुत ही ईमानदार था| वह गांव के पास के जंगलों से लकड़ी काटकर लाता था और उस लकड़ी को बेचकर ही अपना गुजारा करता था| 1 दिन लकड़हारा लकड़ी काटने के लिए नदी के किनारे पर लगे हुए पेड़ के पास चला गया| उसने लकड़ी काटनी शुरू कर दी| जैसे ही लकड़हारे ने अपनी कुल्हाड़ी पेड़ के ऊपर मारी तो उसकी कुल्हाड़ी उसके हाथ से फिसल गई और जाकर सीधी नदी में गिर गई|
लकड़हारा अपनी कुल्हाड़ी को नदी से बाहर निकालना चाहता था| लेकिन नदी का बहाव बहुत तेज था| लकड़हारे के बार बार कोशिश करने के बावजूद भी वह कुल्हाड़ी को बाहर नहीं निकाल स्का| तभी वहां से एक देवदत्त गुजर रहा था| उसने देखा कि वहां पर एक लकड़हारा खड़ा है, जो बहुत ही ज्यादा मायूस है| तब देवदत्त ने लकड़हारे से पूछा कि क्या हुआ? तुम इतने ज्यादा मायूस क्यों हो? तो लकड़हारे ने कहा कि मेरी कुल्हाड़ी पानी में गिर गई है| मैं उसे बाहर निकालना चाहता हूँ|
तो देवदूत ने कहा कि घबराओ मत मैं तुम्हारे लिए तुम्हारी कुल्हाड़ी अभी निकाल कर लाता हूँ| देवदत्त नदी के अंदर गया और अंदर से एक सोने की कुल्हाड़ी लेकर बाहर निकला और लकड़हारे को बोला कि यह लो तुम्हारी कुल्हाड़ी, लकड़हारे ने कहा नहीं यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है| फिर देवदत्त पानी के अंदर दोबारा से गया और इस बार चांदी की कुल्हाड़ी लेकर बाहर निकला| लकड़हारे ने फिर से कहा कि यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है|
देवदत्त फिर से नदी के अंदर गया गया और इस बार लोहे की कुल्हाड़ी लेकर बाहर निकला, लकड़हारे ने कहा यह मेरी कुल्हाड़ी है मुझे यह दे दो| देवदत्त ने लकड़हारे की इमानदारी से खुश होकर सोने और चंडी की कुल्हाड़ी भी लकड़हारे को दे दी|
नैतिक शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि ईमानदारी से बड़ी कोई चीज नहीं है।
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चूहे और कबूतर की कहानी
एक बार जंगल में एक पेड़ के पास एक चूहा रहता था| 1 दिन चूहे को प्यास लगी, वह पेड़ अपनी बिल से बाहर निकला और सामने एक तालाब के पास पानी पीने के लिए जाने लगा| जब चूहा ने पानी पीने के लिए तलाब में अपना मुंह डाला तो वह फिसल गया और तालाब के अंदर गिरने लगा| तभी उसके पास वाले पेड़ के ऊपर बैठा एक कबूतर सब कुछ देख रहा था|
जब चूहा पानी में डूबने वाला था तो कबूतर ने ऊपर से एक पत्ता नीचे फेंक दिया| चूहे ने थोड़ा सा जोर लगाया और पत्ते के ऊपर जाकर बैठ गया और डूबने से बच गया| चूहे ने पानी से बाहर आकर कबूतर का शुक्रिया किया और इस प्रकार दोनों की दोस्ती हो गई| काफी दिन बीत गए 1 दिन कबूतर उसी पेड़ के ऊपर बैठा था| तभी जंगल में एक शिकारी आया| उसने देखा कि कितना सुंदर कबूतर पेड़ के ऊपर बैठा है| उसने सोचा की इस कबूतर का शिकार किया जाए|
शिकारी ने अपनी बन्दुक निकाली और कबूतर पर निशाना लगाने लगा| लेकिन कबूतर को इस बात बिल्कुल भी जानकारी नहीं थी कि उसका शिकारी उसका शिकार करने वाला है| उसी समय चूहा भी वहां पर मौजूद था| जैसे ही चूहे ने देखा कि शिकारी कबूतर का शिकार करने वाला है, चूहा भाग कर शिकारी के ऊपर चढ़ गया और घबरा कर शिकारी की बंदूक नीचे गिर गई|
फिर कबूतर को भी पता चल गया कि उसके साथ क्या हो सकता था| उसी समय कबूतर वहां से उड़ गया| इस प्रकार की चूहे ने कबूतर की जान बचा ली|
नैतिक शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अच्छा काम करने से पहले कभी भी सोचना नहीं चाहिए।
भेड़िया और सारस की कहानी
एक जंगल में एक लालची भेड़िया रहता था| वह दूसरे जानवरों का शिकार करके अपना पेट भरता था| 1 दिन लालची भेड़िया जल्दी-जल्दी में भोजन खा रहा था तभी उसके गले में एक हड्डी फंस गई| भेड़िए ने गले से हड्डी निकालने की बहुत कोशिश करी| लेकिन हड्डी उसके गले से ना निकली| तब भेड़िया सोचने लगा कि अगर यह हड्डी मेरे गले में ऐसे ही फंसी रही तो मैं कुछ नहीं खा पाऊंगा और मैं भूखा प्यासा ही मर जाऊंगा|
तभी भेड़िया वहां से नदी के किनारे पर चला गया| वहां पर एक सारस बैठा था| भेड़िया ने सारस को कहा कि हे सारस तुम्हारी गर्दन इतनी लंबी है, तुम मेरे मुंह से हड्डी को निकाल दो| मैं इसके बदले में तुम्हें इनाम दूंगा| सारस ने भी भेड़िया की बात मान ली और झट से अपनी गर्दन भेड़िए के मुंह के अंदर डालकर हड्डी बाहर निकाल दी|
हड्डी बाहर निकालते ही सारस ने भेड़िए से कहा कि लाओ मेरा इनाम दो| तब लालची भेड़िए ने कहा कि इनाम कैसा इनाम? शुक्र करो कि तुम्हारी गर्दन सही सलामत मेरे मुंह से बाहर निकल आई है| इससे बड़ा इनाम तुम्हें और क्या चाहिए|
नैतिक शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी धूर्त की बातों में नहीं आना चाहिए, क्योंकि उन्हें एहसान भुलाने में तब ज्यादा देर नहीं लगती।
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सम्राट और बूढ़ा आदमी की कहानी
एक बार अमेरिका में एक सम्राट रहता था| जिसे फूलदानी इकट्ठी करने का बहुत शौक था| उसने अपने पास 20 फूलदानियाँ इकट्ठी करके रखी हुई थी| 1 दिन उस सम्राट के किसी सरदार से गलती से फूलदानी टूट गई| जब सम्राट को पता चला कि उसकी फूलदानी सरदार की वजह से टूट गई है, उसे बहुत गुस्सा आया| उसने गुस्से में सरदार को फांसी की सजा सुना दी|
फिर इस बात का पता सम्राट के राज्य में रहने वाले एक बुड्ढे आदमी को हुआ| वह सम्राट के पास गया और कहने लगा कि मैं आपकी फूलदानी को जोड़ सकता हूँ और मैं ऐसे जोड़ूंगा कि पता भी नहीं चलेगा कि यह कभी टूटी थी| यह सुनकर सम्राट खुश हो गया और सम्राट ने अपनी सभी फूलदानियाँ उस बुड्ढे आदमी के सामने रख दी|
बूढ़े आदमी ने अपने सामने फूलदानियाँ देखकर अपनी लाठी उठाई और सभी फूलदानियाँ को तोड़ दिया| यह देखकर सम्राट को बहुत गुस्सा आया और उसने बूढ़े आदमी को कहा हे मूर्ख आदमी तूने यह क्या किया? तुम यहाँ फूलदानियाँ जोड़ने के लिए आये थे ना कि तोड़ने के लिए आये थे| बुड्ढे आदमी ने निम्रता के साथ सम्राट से कहा कि फूलदानियों के ऊपर 19 लोगों की मौत लिखी थी| इसलिए मैंने सभी फूलदानियों को तोड़ दिया|
अब सिर्फ मेरी ही जान जाएगी| इस प्रकार मैंने बाकी 19 लोगों की जान बचा ली है| बुड्ढे आदमी की चतुराई देखकर सम्राट खुश हो गया और सम्राट ने बुड्ढे आदमी और सरदार की फांसी की सजा माफ कर दी|
नैतिक शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि बुराई से लड़ने के लिए केवल एक ही आदमी ही काफी होता है।
सिंभा और नाई की कहानी
एक बार एक गांव में सिंभा नाम का लड़का रहता था| वह बहुत ही होशियार और चलाक लड़का था| वह अक्सर ही लोगों के साथ मजाक करता रहता था| एक दिन सिंभा सुबह-सुबह उठकर नाई की दुकान पर चला गया| नाई की दुकान पर पहुंचकर व शीशे के सामने बैठ कर नाई को बोलने लगा कि मेरी दाढ़ी बना दो| नाई को भी सिंभा की शैतानी समझ आ गई थी|
नाई ने सिंबा को अपने शीशे के सामने की कुर्सी पर बिठाया और उसके कंधे पर तौलिया रख दिया| फिर सिंभा के मुंह पर झाग का साबुन लगा दिया और खुद दूसरे काम करने लग गया| सिंभा काफी देर तक नाई के आने का इंतज़ार करता रहा ताकि वह उसके मुंह से झाग को हटा सके| लेकिन नाई दूसरे कामो में व्यस्त रहा|
तब सिंभा ने नाई से कहा कि तुम मेरी दाढ़ी क्यों नहीं काट रहे हो और मुंह से झाग भी क्यों नहीं हटा रहे हो| तब नाई ने कहा कि मैं तुम्हारी दाढ़ी उगने का इंतजार कर रहा हूँ| नाई की यह बात सुनकर उसकी दुकान पर बैठे दूसरे लोग भी हंसने लग गए| इस प्रकार सिंभा का खुद का ही मज़ाक बन गया|
नैतिक शिक्षा
इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि कभी-कभी दूसरों का मजाक उड़ाने वाले का खुद भी मजाक बन जाता है।
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बारहसिंघा के सिंग और पांव की कहानी
एक जंगल में एक बारहसिंघा रहता था| 1 दिन बारहसिंघा जंगल में जा रहा था, तब उसे काफी प्यास लगी| वह पानी पीने के लिए नदी के किनारे पर पहुंच गया| नदी के किनारे पर जाकर पानी पीने लगा और पानी पीते पीते उसे अपनी परछाई दिखाई दी| बारहसिंघा ने अपनी परछाई में देखा कि उसके सिंघ कितने ज्यादा सुंदर है और सोचने लगा कि किसी और जानवर के इतने सुंदर सिंघ नहीं सकते|
फिर बारहसिंघा की नज़र खुद के दुबले पतले पाव पर गई| जिसे देख कर बारहसिंघा निराश हो गया| इतने में बारहसिंघा को नदी के पास बाघ की दहाड़ सुनाई दी| जैसे ही बारहसिंघा ने देखा तो बाघ उसी की तरफ आ रहा था| बारहसिंघा वहां से भागने लगा| काफी देर भागने के बाद बारहसिंघा ने पीछे मुड़कर देखा तो बाघ उसका पीछा कर रहा था| लेकिन अपने पाव की वजह से बारहसिंघा काफी दूर निकल गया|
फिर बारहसिंघा जंगल में जाकर झाड़ियों से आगे बढ़ने लगा| आगे बढ़ते झाड़ियों में बारहसिंघा के सिंघ फंस गए| बारहसिंघा ने सिंघ निकालने की बहुत कोशिश करी लेकिन सिंघ बाहर ना निकले| फिर बारहसिंघा सोचने लगा कि जिन पाव को देख कर मई निराश हो रहा था आज उन्होंने ही मुझे मेरी जान बचाई है| लेकिन जिन सिंघों पर मुझे घुमान था, आज वही मेरी मृत्यु का कारण बन सकते हैं| इतने में ही वहां पर बाघ आ गया और बाघ ने बारहसिंगे को मार दिया|
नैतिक शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सुंदरता से महत्वपूर्ण उपयोगिता होती है।
गड़ा खजाना की कहानी
एक बुड्ढे किसान के तीन लड़के थे| तीनों लड़के बहुत ही ज्यादा आलसी थे| तीनों लड़के जवान और हटे कट्टे थे, लेकिन मेहनत करना पसंद नहीं करते थे| वह तीनों लड़के अपने पिता की कमाई उड़ा कर उसका मजा लेते थे| फिर एक दिन किसान ने अपने बेटों को बुलाया और कहा कि देखो मैंने तुम्हारे लिए खेत में खजाना छुपा कर रखा है| तुम लोग खेत को खोद डालो और उसमें से ख़जाना निकालकर आपस में तीनों बाँट लो|
अगले ही दिन तीनों लड़के खेत में चले गए और खुदाई शुरू कर दी| तीनों लड़कों ने खेत के एक-एक इंच जमीन की खुदाई कर दी| लेकिन उन्हें खजाना नहीं मिला| तीनों लड़के काफी ज्यादा निराश हो गए और वापस अपने घर चले गए| वापस घर जाकर उन्होंने अपने पिता से कहा कि हमें ख़ज़ाना नहीं मिला|
तब उनके पिताजी ने कहा कि कोई बात नहीं तुम निराश मत हो| तुम लोगों ने बहुत अच्छी खुदाई करी हैं| अब हम बोआई का काम करते है| फिर तीनों लड़कों ने पिता के साथ मिलकर बड़ी लगन के साथ बोआई करी और उस वर्ष बारिश भी समय पर हुई, जिसकी बदौलत खेत में खूब पैदावार हुई|
तीनो लड़के बड़े गर्व के साथ अपने पिता को खेत में लेकर आए और अपनी लहराती हुई फसल दिखाई और कहा कि देखो कितनी अच्छी फसल हुई है| तब किसान ने अपने तीनों लड़कों से कहा कि यही तो तुम्हारा असली खजाना है, जो मैं तुम्हें देना चाहता हूँ| तुम हर साल मेहनत से खेत में फसल बोओ और तुम्हें हर साल ख़ज़ाना मिलता रहेगा|
नैतिक शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि मेहनत का फल हमेशा मीठा होता है।
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भेड़िया और बाँसुरी की कहानी
एक जंगल में एक खूंखार भेड़िया रहता था| वह दूसरे जानवरों का शिकार करके अपना पेट भरता था| 1 दिन भेड़िए ने एक छोटे से मेमने को उठा लिया और उसे लेकर जंगल की ओर भागने लगा| भागते हुए भेड़िए से मेमने ने कहा कि हे भेड़िए चाचा, मुझे मालूम है कि तुम मुझे आज खा जाओगे| क्या तुम मेरी आखिरी इच्छा भी पूरी नहीं करोगे? तब भेड़िया ने कहा कि बोलो क्या है तुम्हारी आखरी इच्छा?
फिर मेमने ने कहा कि मुझे मालूम है कि तुम बांसुरी बहुत अच्छी बजाते हो, मैं तुम्हारी बांसुरी की धुन सुनना चाहता हूँ| कृपा करके आप मेरे लिए एक बार बांसुरी बजा दो ताकि मैं चैन से मर सकूं| भेड़िया ने मेमने की बात मान ली और बांसुरी बजाने के लिए तैयार हो गया| भेड़िया एक जगह पर बैठ गया और बांसुरी बजाने लगा|
जब भेड़िया ने बांसुरी बजानी बंद कर दी तो मेमने ने कहा आप ने बहुत अच्छी बांसुरी बजाई और आपके जैसी बांसुरी और कोई नहीं बजा सकता| क्या तुम मेरे लिए एक बार और बजा सकते हो?
भेड़िए ने फूलकर बांसुरी बजाना शुरू कर दिया, इस बार भेड़िया ने ऊँचे स्वरों में बांसुरी बजाई| बांसुरी की धुन की आवाज़ गडरिये और उसके खूंखार कुत्ते के पास पहुँच गई| गडरिया और उसके कुत्ते भेड़िया के पास आ गए और उन्होंने मिलकर भेड़िया को दबोच लिया और उसे मार दिया| इस प्रकार मेमने ने अपनी जान बचा ली और झुंड में शामिल हो गया|
नैतिक शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि धीरज से ही हम किसी भी संकट को पार कर सकते हैं।
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Conclusion
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