Shree Krishna Motivational Story in Hindi | Krishna Short Story in Hindi

Lord Krishna Story in Hindi – दोस्तों क्या आप भी भगवान श्री कृष्ण की कहानियां के बारे में पढ़ना चाहते हैं| आज के इस पोस्ट में हम आपको भगवान श्री कृष्ण की जीवन से जुड़ी हुई सत्य कहानियों के बारे में बताने जा रहे हैं| 

हम सभी जानते हैं कि भगवान श्री कृष्ण की कहानियां बच्चों और बड़ों को बहुत ज्यादा पसंद आती है, क्योंकि उनसे हमें बहुत ज्यादा ज्ञान मिलता है। हम भगवान श्री कृष्ण जी को कई रूप जैसे कि माखन चोर कृष्ण, बाल कृष्ण, राधा कृष्ण, कुरुक्षेत्र में गीता का सार समझाते हुए भगवान कृष्ण को भी हमने देखा है| 

तो दोस्तों आज के इस पोस्ट में हम आपको भगवान श्री कृष्ण जी की बचपन से लेकर बड़े होने तक की कहानियों के बारे में जानकारी शेयर करने जा रहे हैं| ऐसा भी हो सकता है इनमें से कुछ कहानियां ऐसी भी होंगी जो आप ने अपने माता-पिता या दादा दादी से बचपन में सुनी होंगी| तो चलो दोस्तों अब हम शुरू करते हैं।

Krishna Story in Hindi Overview

Name of ArticleShree Krishna Motivational Story in Hindi | Krishna Short Story in Hindi
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कृष्ण के माखन चोरी की कहानी – Shree Krishna Motivational Story in Hindi

बचपन से ही श्री कृष्ण को माखन खाने का बहुत शौक था| जैसे-जैसे वह बड़े हुए उनका माखन खाने का शौक भी बढ़ता गया| वह अपने घर में ही माखन को चोरी कर लिया करते थे| श्री कृष्ण की मां यशोदा माखन को मिटटी की हांडी में डालकर लटका देती थी, ताकि कृष्ण का हाथ वहां तक ना पहुंचे|

लेकिन श्री कृष्णा और उसके दोस्त हार मानने वाले नहीं थे| एक दिन यशोदा मां माखन को मिटटी की हांडी में डालकर लटका कर चली गई| फिर श्री कृष्णा और उनके दोस्तों ने मिलकर युगत लगाई और एक दूसरे के ऊपर चढ़ते हुए कृष्णा माखन की हांडी तक पहुंच गए| उन्होंने माखन की हांडी तोड़ दी और सारा माखन खा गए।

श्री कृष्ण और सुदामा की कहानी

सुदामा और श्री कृष्ण बचपन के मित्र थे और दोनों एक ही साथ शिक्षा लेते थे| सुदामा बहुत गरीब था| वह ब्राह्मण था इसलिए वह दिन भर में 5 घर से भिक्षा मांगकर अपना और अपने परिवार का पेट पालता था| उसे जितना मिलता था उसी से गुजारा करता था| परंतु मिलने वाली भिक्षा उसके लिए पर्याप्त नहीं थी| उसका और उसके परिवार का पेट भी उससे करता नहीं था| इसी भिक्षा से अतिथि सत्कार भी हुआ करता था। 

सुदामा की पत्नी को यह मालूम था कि सुदामा और श्री कृष्ण दोनों मित्र हैं| श्री कृष्ण द्वारका के महाराजा है| अगर सुदामा उनसे सहायता मांगेगा तो कभी भी ना नहीं करेंगे। इसलिए सुदामा की पत्नी ने सुदामा को बहुत बार श्री कृष्ण के पास द्वारका जाने के लिए कहा परंतु सुदामा हर बार मना कर देता था| परंतु बहुत ज्यादा पर्यटन करने के बाद सुदामा मान जाता है और वह द्वारका के लिए निकल जाता है| उस समय उसके पास कोई साधन नहीं था| वह अपने पैरों पर चलता हुआ द्वारका की ओर बढ़ रहा था| वह संकोच और लज्जा से भरा हुआ द्वारका की ओर निकल पड़ा|

काफी दूर चलने के बाद उसे रास्ते में एक बैलगाड़ी मिलती है| जिस पर व्यापार के लिए खूब सारा माल लदा हुआ था| मुरारी ने सुदामा को द्वारका चलने के लिए मना लिया| गाड़ी पर बैठ कर दोनों द्वारका के पास पहुंचे| वहा पहुँचते ही बैलगाड़ी वाले ने सुदामा से कहा कि आपका रास्ता यहां से अलग है और मेरा अलग है| सुदामा आगे चलने के बाद वहां से वापस आ गया उसने सोचा कि मई उस बॉलगाडी वाले का धन्यवाद् करके आता हूँ| 

सुदामा मंदिर के पीछे उसका धन्यवाद् करने के लिए वहाँ गया तो वहां पर कोई बैलगाड़ी नहीं थी और ना ही कोई मुरारी था। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था वह सोच रहा था कि एक क्षण पहले वह मुरारी से बातचीत कर रहा था| परंतु दूसरे चरण में यहां पर कोई भी नहीं है। सुदामा समझ गया था कि उसके मित्र श्री कृष्ण की ही कोई लीला है| वास्तव में ऐसा ही हुआ जब दोनों की मुलाकात हुई तो वह दोनों मुरारी की घटना पर मुस्कुरा रहे थे।

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श्री कृष्ण और सांप कालिया की कहानी

एक बार की बात है कि यमुना नदी मैं एक मीठे पानी की झील में एक जहरीला सांप रहा करता था| जिसका नाम कालिया था| कालिया इतना जहरीला था कि धीरे-धीरे उसका जहर यमुना नदी के पानी को भी जहरीला बना रहा था| 1 दिन उस नदी के किनारे पर एक गाय चराने वाला गया और उसने उस नदी से पानी पीना शुरू कर दिया| पानी पीते ही उस व्यक्ति की मौत हो गई| 

जब श्री कृष्ण को इस बात का पता चला तो कृष्ण में अपनी शक्ति से उस मरे हुए व्यक्ति को दोबारा से जिंदा कर दिया| उसके बाद कृष्ण यमुना नदी में कूद गए और नदी की गहराई में जाने लगे| नदी की गहराई में गए तो वह जोर-जोर से सांप को पुकारने लगे| उस समय कृष्ण को नदी में गए हुए काफी समय हो गया था यह देखकर लोग चिंतित होने लगे और कुछ लोग तो वहां करने लगे थे| उसके बाद कालिया सांप नदी के अंदर से बहार निकला और श्री कृष्ण के सामने आया| सामने आते ही श्रीकृष्ण पर आक्रमण कर दिया| 

देखते ही देखते श्री कृष्ण उस कालिया सांप के सर पर नाचने लगे| वह कालिया सांप हजार सर वाला विशाल सांप था| श्री कृष्ण इतनी तेजी से नाचने लगे थे कि कालिया सांप के मुंह से खून निकलने लगा| जब यह बात कालिया की पत्नी को पता चली तो वह श्री कृष्ण के सामने कालिया के जीवन की भीख मांगने लगी| श्री कृष्ण ने कालिया सांप को जमुना नदी को छोड़कर रामानका द्वीप में जाने के लिए कहा और उसे यह आश्वासन भी दिया उन पर कभी भी गरुड़ हमला नहीं करेंगे| क्यूंकि उसके सिर के ऊपर कृष्ण के पैरों के निशान शप चुके हैं| 

यह सुनकर कालिया सांप बहुत ज्यादा खुश हो गया और फिर वह अपनी पत्नी के साथ यमुना नदी को छोड़कर वहां से दूर चला गया| इस प्रकार श्री कृष्ण ने कालिया सांप से गाव वालों की रक्षा की।

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भक्त की रक्षा

एक गांव में 8 वर्ष का सूर्य नाम का एक बेहद दुर्लभ बालक था| उसका परिवार का व्यवसाय लकड़ी काटना और उन्हें बाजार में बेचना था| 1 दिन सूरज यमुना नदी के किनारे पर लकड़ी काट रहा था| एक पेड़ की सूखी टहनी यमुना नदी की ओर झुकी हुई थी| सूरज की खास बात यह थी कि वह कभी भी हरी-भरी टहनी को नहीं काटता था| उसने देखा कि जो टहनी यमुना नदी की ओर झुकी हुई है वह बिल्कुल सुकि हुए है| 

उसने कुल्हाड़ी लेकर उसे काटने के बारे में सोचा जैसे ही उसने अंतिम परिहार टहनी पर किया टहनी नदी में गिर गई और सूरज ने भी उसी टहनी को बचाने के लिए यमुना नदी में छलांग लगा दी| यमुना नदी का बहाव बहुत ज्यादा तेज था क्योंकि वह मौसम बारिश का मौसम था| सूरज काफी देर तक नदी से बाहर निकलने के लिए प्रयास करता रहा| परंतु उस धारा में खुद को बहने से ना रोक सका| काफी मेहनत करने के बाद भी वह सफल नहीं हो सका था और नदी के बहाव के साथ ही बहता गया| 

उसने मदद के लिए श्री कृष्ण को पुकारा| उससे पहले अपने लिए निजी हितों के लिए कभी भी श्रीकृष्ण को याद नहीं किया था| श्री कृष्ण भी अपने भकत की पुकार सुनते ही नदी के किनारे पर पहुंच गए| उन्होंने देखा कि सूरज बेहोश और अचेत अवस्था में है| उन्होंने सूरज को नदी से निकाला नदी के किनारे पर लिटा दिया|

सूरज की आंखें बंद थी परंतु उसको एहसास हो रहा था कि किसी ने उसे बीच नदी से बाहर निकाला है और उसकी देखरेख कर रहा है| जैसे सूरज की नींद उठा उसने देखा उसके आसपास कोई भी नहीं है| परंतु वहां पर एक मोर पंख पड़ा था इस मोर पंख को देखकर वह समजह गया कि उसके प्रभु श्री कृष्ण ने ही उसे बचाया था।

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श्री कृष्ण और गोवर्धन पर्वत की कहानी

एक बार की बात है कि वृंदावन के लोग गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे थे| वह भगवान श्री कृष्ण के कहने पर उस पर्वत की पूजा करने लगे थे और इंद्र देव की पूजा नहीं करते थे| इस बात पर देवराज इंद्र ब्रिज के लोगों पर बहुत ज्यादा क्रोधित हो गए और क्रोधित होकर उन्होंने उन्हें दंडित करने के लिए ब्रिज गांव के ऊपर गणगौर वर्षा करने के लिए बादल भेज दिए| इंद्र के आदेश देते ही वह बादल गांव की ओर चल पड़े और वहां जाकर बहुत ज्यादा बारिश करने लगे| जिसके कारण वृंदावन में बाढ़ की संभावना पैदा हो गई थी| 

बारिश इतनी ज्यादा होने लगी थी यहां तक कि कुछ लोगों के घर भी इस बारिश में बहने लगे थे| गांव के लोग बहुत ज्यादा डर गए थे और वह सहायता लेने के लिए भगवान श्री कृष्ण के शरण में पहुंचे| परंतु भगवान श्री कृष्ण को पूरी परिस्थिति के बारे में ज्ञान हो चुका था| उन्होंने गांव वालों की सहायता करने के लिए अपने बाएं हाथ पर गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया और वह पर्वत पर पूरे गांव के ऊपर छतरी का काम करने लगा| 

देखते ही देखते वृंदावन के सभी लोग और गाय एक एक करके उस पर्वत के नीचे आने लगे| इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण ने वृंदावन के लोगों की जान बचा ली| भगवान श्री कृष्ण के चमत्कार को देख कर लोग बहुत ज्यादा हैरान हो गए थे और इस चमत्कार को देखकर बादल भी वापस लौट गए और इस तरह भगवान श्री कृष्ण ने ब्रजवासी की रक्षा की और वह लोग खुशी-खुशी रहने लगे।

कृष्ण बन गए रखवाले

वृंदावन के छोटे गांव में पारो और रामदरस नाम के पति पत्नी रहते थे| वह दोनों आंखों से देख नहीं पाते थे और हर रोज भिक्षा मांग कर ही अपना जीवन व्यतीत करते थे| दोनों श्री कृष्ण की भक्ति किया करते थे| भोजन से पहले वह उस भोजन का प्रसाद लगा दिया करते थे| उस प्रसाद को अपने भोजन के पात्र में थोड़ा सा मिलाकर बाकी किसी दूसरे गरीब को खाने को दिया करते थे। श्री कृष्ण भी उनकी भक्ति से बहुत ज्यादा प्रसन्न थे| इसी कारण उनको कभी भूखे पेट सोने नहीं दिया करते थे| 

चारों ओर जन्माष्टमी की धूम मची थी| गोकुल, वृंदावन, बरसाना क्षेत्र में कृष्ण जन्मोत्सव की विशेष मनोहारी छटा देखने को मिलती है| पारो खुद भी पुत्र को जन्म देने वाली थी| उसे खुद नहीं मालूम था कि वह जन्माष्टमी के दिन एक पुत्र को जन्म देने वाली है| ठीक उसी समय उसने पुत्र को जन्म दिया| वह अपने माता-पिता की तरह ही श्री कृष्ण की भक्ति करता रहता था। उसका नाम उन्होंने चन्दन रखा था| वह नाम के अनुसार ही शांत और शीतल स्वभाव का था| 

चन्दन जब भी बीमार होता था या फिर अपने रास्ते से भटक जाता था तो उसकी मदद एक गाय चराने वाला करता था| उसका नाम मदन था| उसने बताया था कि वह पास के गांव में रहता है| जब भी चंदन के परिवार पर कोई विपत्ति आती तो मदन सदैव रखवाला बन कर खड़ा रहता था| चंदन जब बड़ा हुआ तो वह मदन के गांव में जाकर मदद को खोजने लगा और जैसे ही वह गांव पहुंचा उसने मदन के बारे में पूछा तो लोगों ने बताया कि यहां कोई मदर नाम का व्यक्ति नहीं रहता है| 

उसके बाद चन्दन ने इस रहस्य का पता लगाने का मन बना लिया| चन्दन उसे ढूंढता रहा परंतु उसे मदन ना मिला| फिर एक बार चन्दन की मां को बहुत ज्यादा बुखार हो गया था| वह लगभग मरने वाली थी| तब मदन उसके घर सहायता के लिए आया और शाम होते ही अपने गांव की ओर लौटने लगा| उस समय चंदन उसका पीछा कर रहा था और चोरी चोरी दूर से उसे देख रहा था| मदन वहां पर मौजूद एक मंदिर के अंदर दाखिल हो गया| चंदन उसे देखता रहा|

काफी समय तक इंतज़ार करने के बाद जब चन्दन ने देखा कि मदन मंदिर से बाहर नहीं आया है तोह ऐसे में चंदन उस मंदिर में गया उसने देखा कि वहां पर कोई भी नहीं है| वह अदृश्य हो गया था| वहां पर केवल भगवान् श्री कृष्ण जी की मूर्ति थी। चन्दन समझ गया था कि वह मदन कोई और नहीं स्वयं श्री कृष्ण जी ठीक है जो उनके परिवार की हर मुसीबत में रखवाली करते है।

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भगवान कृष्ण और अरिष्टासुर कथा

एक बार वृंदावन में बहुत बड़ा बैल घुस गया और गांव में घुसने के बाद उस बैल ने लोगों पर आक्रमण करना शुरू कर दिया था| जिसकी वजह से काफी लोगों को चोट भी लगी थी| जब श्रीकृष्ण को इस बात का पता चला तो वह उसी समय बैल के पास पहुंचे| बैल को देखते ही भगवान श्री कृष्ण समझ गए थे कि यह बैल असुर है और उसका नाम अरिष्ठासुर था| वह बैल कृष्ण को देखते उनकी और आक्रमण करने के लिए दौड़ने लगा और उन पर हमला करने लगा| 

श्री कृष्ण ने उस बैल को परास्त कर दिया| परास्त होने के बाद वह बैल नतमस्तक हो कर श्री कृष्ण के सामने बैठ गया और उसने श्रीकृष्ण को बताया कि वह भगवान बृहस्पति का शिष्य है और उसने अपने गुरु के साथ दुर्व्यवहार किया था| जिसकी वजह से उसे असुर बैल बनने का श्राप मिला था| इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण ने लोगों को अरिष्टासुर बैल से बचा लिया।

माखन चोर भगवान कृष्ण कहानी

यह बात तो आप सभी लोग जानते हैं कि श्री कृष्ण को माखन खाना बहुत पसंद था| उनके माखन चोरी करने की आदत की वजह से उनकी मां यशोदा के साथ साथ उनके पूरे गांव वाले बहुत ज्यादा तंग हुआ करते थे| इसी वजह से कृष्ण की मां यशोदा माखन की मटकी को छत के ऊपर के भाग से लटका कर रखती थी| ताकि कृष्ण से वहां तक पहुंचना ना जा सके और माखन चोरी ना कर सके| 

परंतु एक बार की बात है एक बार यशोदा को किसी काम से घर छोड़कर जाना पड़ा| उस समय श्री कृष्ण ने अपने सभी दोस्तों को अपने घर बुला लिया और अपने दोस्तों की मदद से वह माखन की मटकी तक पहुंच गए| उन्होंने मटकी को तोड़ दिया और माखन निकालकर खाने लगे इतने में उनकी मां यशोदा घर लौट आई|

उन्होंने देखा कि कृष्ण अपने दोस्तों के साथ माखन की मटकी तोड़ कर उसमें से माखन निकल कर खा रहा है| जैसे ही उनके दोस्तों को पता चला कि यशोदा मां आ गई है उनके सारे दोस्त श्रीकृष्ण को वहां अकेला छोड़कर भाग गए| परंतु कृष्ण नहीं भागे और वहीँ बैठे माखन खाते रहे| उसके बाद कृष्ण को यशोदा मां से अच्छी डांट पड़ी।

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भगवान कृष्ण और फल बेचने वाली महिला की कहानी

एक बार एक महिला गांव में फल बेच रही थी| जैसे ही वह श्री कृष्ण के घर के सामने से गुजर रही थी तब श्री कृष्ण ने उस फल वाली महिला को देखा| उनका फल खाने का मन किया तो उन्होंने फल बेचने वाली महिला से फल मांगे तो महिला ने कृष्ण से उन फल के बदले में कुछ मांगा| फल के बदले में अनाज देने के लिए कृष्ण घर के अंदर दौड़ते हुए गए और मुट्ठी भर अनाज लेकर वापस आने लगे| 

परंतु महिला तक पहुंचते-पहुंचते उनके हाथ में से अनाज सारा नीचे गिर जाता था| श्रीकृष्ण बार-बार अनाज लेकर आते थे परंतु अनाज नीचे गिर जाता था| यह देखकर फल वाली महिला बहुत ज्यादा प्रसन्न हो गई और उसने सारे फल कृष्ण को दे दिए और कृष्ण भी अंदर ही अंदर बहुत ज्यादा प्रसन्न हो गए| जब वह महिला सारे फल कृष्ण को देकर अपने खाली टोकरी लेकर वहां से जा रही थी और जैसे ही वह महिला अपने घर पहुंची उसने देखा कि उसकी टोकरी सोने और जवाहरात से भरी हुई है।

कृष्ण को गोविंद क्यों कहते हैं?

एक दिन कामधेनु नामक गाय स्वर्ग से श्री कृष्ण के पास पहुंची और उन्होंने श्री कृष्ण से कहा कि वह देवलोक से उनका अभिषेक करने के लिए आई है| क्योंकि वह पृथ्वी पर गांव की रक्षा कर रहे हैं| उस गाय ने श्री कृष्ण को पवित्र जल से नहलाया और उनका दिल से शुक्रिया किया|

इतने में उसी समय भगवान इंद्र अपने हाथी ऐरावत पर विराजमान होकर वहां से गुजर रहे थे| उन्होंने श्री कृष्ण को आशीर्वाद दिया और कहा कि इस पुण्य के लिए पूरे विश्व के लोग आपको गोविंद के नाम से जानेगे|  यही वजह है कि आज भी भगवन श्री कृष्ण को लोग गोविन्द के नाम से भी पुकारते है।

कृष्ण और पूतना असुर की कहानी

यह बात तो आप लोग भी जानते ही होंगे कि मामा कंस का वध भगवान श्री कृष्ण के हाथों में ही लिखा था और यह बात कंस खुद भी जानता था| इसलिए वह कृष्ण का वध करने के लिए अलग-अलग असुरों को भेजा करता था| एक बार उसने पूतना नाम की एक रक्षाशनी को भेजा| वह श्री कृष्ण के गांव में पहुंची और उसने एक सुंदर महिला का रूप धारण कर लिया| 

फिर उसने घर घर में जाकर श्री कृष्ण को ढूंढना शुरू कर दिया| कुछ देर ढूंढने के बाद में श्रीकृष्ण के घर पहुंची और उसने श्री कृष्ण को पहचान लिया| उस समय उनके घर में कोई नहीं था उस समय श्रीकृष्ण भी बहुत ज्यादा छोटे थे| उस रक्षाशनी ने कृष्ण को अपनी गोद में उठाया और उसे अपना ज़हरीला दूध पिलाने लगी|

उसने सोचा कि दूध पीते ही कृष्ण की मृत्यु हो जाएगी| परंतु ऐसा नहीं हुआ| कृष्ण वह दूध पीते रहे और वह तब तक दूध पीते रहे जब तक उस महिला की मृत्यु नहीं हो गई| मृत्यु होते ही वह महिला अपने असली क्रूर रूप में आ गई।

Conclusion

Shree Krishna Motivational Story in Hindi – उम्मीद करते हैं कि हमारे द्वारा शेयर करी गई भगवान श्री कृष्ण की कहानियाँ आपको बहुत पसंद आई होगी और इन कहानियों को पढ़ने के बाद आपको काफी कुछ सीखने को भी जरूर मिला होगा।

FAQ (Frequently Asked Questions)

श्री कृष्ण को ओर किस नाम से जाना जाता है?

श्री कृष्ण को माखन चोर के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि श्री कृष्णा बचपन में माखन चुरा कर खाया करते थे।

श्री कृष्ण भगवान की सबसे प्रिय पत्नी कौन थी?

श्री कृष्ण भगवान की सबसे प्रिय पत्नी रुक्मणी थी| श्री कृष्ण की पत्नी रुक्मणी को लक्ष्मी का अवतार भी माना जाता है| रुकमणी से श्री कृष्ण ने प्रेम विवाह किया था।

कृष्ण की पूरी कहानी क्या है?

श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि को हुआ था| श्री कृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था और उनके पिता का नाम वासुदेव और माता का नाम देवकी था| श्री कृष्ण का जन्मदिन जन्माष्टमी के नाम पर भारत, नेपाल, अमेरिका सहित विश्वभर में मनाया जाता है।

कृष्ण की इतनी सारी पत्नियां क्यों थी?

जब श्री कृष्ण ने राक्षस राजा नरकासुर को मार दिया था, तो उनके पास बंदी 16100 पत्नियां मुक्त हो गई थी| जिन्हें श्री कृष्ण ने अपनी पत्नियों के रूप में स्वीकार किया था और उन्हें अपने साथ द्वारका ले आए थे|

श्री कृष्ण की कितनी पत्नियां थी?

श्री कृष्ण की 16000 पत्नियां थी|

श्री कृष्ण की 16000 पत्नियां क्यों थी?

जब श्री कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था तो उन्होंने नरकासुर के पास बंदी 16100 पत्नियों को मुक्त करवाया था और उन सभी पत्नियों ने श्री कृष्ण से अनुरोध किया था कि वह उनके साथ विवाह कर लें| इसलिए श्री कृष्ण की 16000 पत्नियां थी|

श्री कृष्ण के बचपन का नाम क्या था?

श्री कृष्ण को बचपन में कन्हैया के नाम से जाना जाता था| उन्हें प्यार से लोग काहना भी कहते थे।

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