गणेश जी की कहानी खीर वाली | गणेश जी की खीर वाली कहानी

गणेश जी की कहानी खीर वाली आप सभी ने गणेश जी की बहुत सारी रोचक कहानियां सुनी होगी| लेकिन आज की कहानी थोड़ी हटकर है| हम आज आपको सुनाने जा रहे हैं गणेश जी की कहानी खीर वाली, जिसमें गणेश जी अपने भक्त की परीक्षा लेते हैं और उन्हें अनंत काल की खुशियां प्रदान कर देते हैं| 

गणेश जी की कहानी खीर वाली

एक बार की बात है माता पार्वती और शिवाजी कलयुग की दशा देखकर कहने लगे कि आजकल भक्तों में दया भाव नहीं रहा है| कोई भी एक दूसरे की मदद नहीं करना चाहते| इस पर गणेश जी बोले नहीं पिता जी  मेरे बहुत से भक्त हैं जो मुझसे सच्ची श्रद्धा रखते हैं और हमेशा एक दूसरे की मदद करने के लिए तत्पर रहते हैं| तो इसी बात पर भगवान शिव ने गणेश जी को अपने भक्तों की परीक्षा लेने के लिए पृथ्वी पर प्रकट होने को कहा| 

इसी पर भगवान गणेश एक छोटे से बालक का रूप लेकर धरती पर प्रकट हुए| वह घूमते घूमते एक गांव में पहुंचे| बाल गणेश के एक हाथ में मुट्ठी भर चावल थे और दसूरे हाथ में चम्मच भर दूध| वह गली-गली घूम रहे थे और कह रहे थे मुझे बहुत भूख लग रही है क्या कोई मेरे लिए मेरी खीर बना देगा| सभी लोग उसे देखकर हसते हुए कहने लगे, यह बालक तो मूर्ख है भला इतने से चावल और दूध की क्या ही खीर बनेगी| 

किसी ने भी उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया और आगे बढ़ गए| सुबह से शाम हो गए लेकिन गणेश जी की मदद करने कोई नहीं आया और किसी ने भी उसे पर कोई ध्यान नहीं दिया| लेकिन गणेश जी अभी भी अपने भक्तों की परीक्षा लेने से नहीं हटे और वह सोचने लगे आखिर कोई तो होगा मेरा भक्त, जो मुझमे सच्ची श्रद्धा रखता होगा और जिसका दिल कोमल होगा|

ऐसे ही चलते-चलते हैं वह एक कुटिया में जा पहुंचे| वहां एक बूढ़ी औरत थी जो अपने कुटिया के बाहर विश्राम कर रही थी| बाल गणेश ने उस बुढ़िया से कहा माता क्या आप मेरे लिए खीर बना देंगे| इस पर माता कहने लगी हां पुत्र क्यों नहीं मैं अंदर से कोई बर्तन ले आती हूँ जिसमे तुम यह दूध और चावल डाल सको और मैं तुम्हारे लिए स्वादिष्ट सी खीर बना दूंगी|

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ऐसा कहते हुए बूढ़ी औरत घर के अंदर गयी और एक छोटा सा बर्तन लेकर आ गई| इस पर बाल गणेश कहने लगे माता यह बर्तन तो बहुत छोटा है इस मै खीर नहीं बनेगी तुम अपने घर का सबसे बड़ा बर्तन लेकर आओ| बूढ़ी औरत सोचने लगी इतने से ही तो चावल और दूध है भला बालक को बड़ा बर्तन क्यों चाहिए| लेकिन उस बालक का मन रखने के लिए बुढ़िया ने उससे कोई प्रश्न नहीं किया और घर का सबसे बड़ा बर्तन लेकर बाहर आ गई|

अब उसने बड़े बर्तन में चावल और दूध डलवा लिए और कहने लगी में खीर बना लेती हूं| इस पर गणेश कहने लगे माता आप खीर बनाएं तब तक मैं स्नान करके आता हूं| अब बूढी औरत ने उस बर्तन में खीर बनाना शुरू कर दिया| जैसे-जैसे वह खीर बना रही थी खीर का बर्तन भरता जा रहा था| जब उसने खीर बनाना शुरू किया तो दूध और चावल बर्तन के तले पर थे और जैसे-जैसे वह कड़छी घुमा रही थी वह खीर बढ़ती चली जा रही थी|

देखते ही देखते हैं वह बड़ा सा भगोना खीर से भर गया| खीर की स्वादिष्ट खुशबू सारे गांव में फैल गई| खीर की मीठी मीठी खुशबू सुंघते हुए उनके घर के दो छोटे-छोटे बच्चे आ गए और कहने लगे दादी मां खीर खानी है| फिर बुढ़िया कहने लगी नहीं पुत्र यह खीर एक छोटे से बालक की है उसे आने दो वह जब खा ले तो तुम भी खा लेना|

लेकिन बच्चे नहीं माने फिर दादी क्या करती उसने उन्हें कटोरी में खीर डाल दी और दोनों बच्चे खाने लग गए| बुढ़िया की बहू सुबह से शाम तक काम कर रही थी| और उसे भी भूख लगी तो वह कहने लगी मां जी आपने यह इतनी स्वादिष्ट खीर बनाई है क्या मैं भी खा लूं| बुढ़िया अपने बहू को ना नहीं कर पाई उसने एक कटोरी निकाल कर उसे भी दे दी|

लेकिन खीर का बर्तन अभी भी पुरा भरा था| अब बुढ़िया को सुबह से शाम हो गई उस बालक का इंतजार करते हुए| लेकिन अभी तक बालक नहीं आया| अब खीर की खुशबू पूरे गांव में फैल चुकी थी आते-जाते लोग मां जी को कहने लगे क्या बात है आज आपने बहुत स्वादिष्ट खीर बनाई हैं हमें भी चखा दो इस पर वह कहने लगी नहीं पुत्र जब वह बालक आए और खा ले, उसके बाद मैं तुम्हें भी जरूर खिला दूंगी|

अब बुढ़िया को भी बहुत भूख लग रही थी तो एक कटोरी खीर उसने भी खा ली| बुढ़िया के खीर खाते ही बाल गणेश आ गए फिर बुढ़िया ने कहा अरे पुत्र मुझे सुबह से शाम हो गई तुम्हारा इंतजार करते-करते तुम अब आ रहे हो| इस पर बाल गणेश बोले हां मां मैं अब आया हूं, और वाह खीर की बहुत अच्छी खुशबू आ रही है| 

इस पर बुढ़िया कहने लगी हां पुत्र मैं तुम्हें कटोरी भरकर खीर दे देती हूं तुम आराम से बैठ के खाओ| इस पर वह कहने लगा नहीं नहीं माँ मेरा पेट तो बहुत भरा हुआ है| इस पर बुधिया कहने लगी कि कैसे तुम्हारा पेट कैसे भरा हुआ है| तुमने तो कुछ सवेरे का कुछ भी खाया ही नहीं है| 

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इस पर बाल गणेश कहने लगे मां जब आपने अपने छोटे-छोटे दो पोत्रों को खिलाया तब मेरा पेट भर गया, उसके बाद जब आपने अपनी बहू को खीर दी तभी भी मेरा पेट भर गया और अब जब तुमने खीर खाई तो मैं तो मेरा तो पेट बिल्कुल ही भर चुका है, मेरे पेट में बिल्कुल भी खाने की कोई जगह नहीं है|

यह सब सुन्नते ही वह बुधिया समझ गई कि यह बाल गणेश का ही अवतार है क्योंकि वह बाल गणेश की बहुत सेवा करती थी और बहुत श्रद्धा रखती थी वह समझ चुकी थी कि गणेश ने ही उन्हें दर्शन दिए हैं| अब बुढ़िया कहने लगी यह खीर का भगोना तो अभी भी भरा हुआ है मैं इस खीर का अब क्या करूं| इस पर गणेश जी कहने लगे मां तुम पूरे गांव को दावत दे दो अब बुढ़िया पूरे गांव को बुलाने लगी| 

लोग बुढ़िया पर हसते हुए कहने लगे जिसके घर में खाने के लिए एक अन्न का दाना भी नहीं है वह क्या दावत देगी| लेकिन लोग फिर भी देखने चले गए कि देखते हैं आखिर बुढ़िया हमें क्या देती है| पूरे गांव ने खीर खाली लेकिन मजाल थी कि वह बर्तन अभी भी थोड़ा सा भी खाली हो जाता| पूरे गांव को खिलाने के बाद अब बुढ़िया गणेश जी से कहने लगी है प्रभु अब आप ही बताएं मैं इस खीर का क्या करूं, पूरे गांव को खिला दी, हम सब ने खाली लेकिन अभी भी यह भगोना पूरा का पूरा भरा हुआ है|

गणेश जी कहने लगे देख लो माता अगर कोई अभी भी भूखा है तो तुम उसे खिला दो|  फिर बुढ़िया अपने बच्चों संग दूसरे गांव चली गई और जहां-जहां उसे कोई भूखा दिखता वह उसे ही खीर देखकर तृप्त कर देती| सभी लोगों ने उसके लिए बहुत दुआएं मांगी| लेकिन अगले कुछ दिन बीत गए लेकिन अभी भी वह भगोना खीर का वैसे का वैसा भरा हुआ था| फिर उसने गणेश जी का सिमरन किया और उन्हें बोलने लगी है प्रभु आप बताओ अब मैं इस खीर का क्या करूं यह बर्तन तो खाली होने का नाम ही नहीं दले  रहा|

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इस पर गणेश जी ने कहा अगर माता अपने सभी को तृप्त कर दिया है तो रात के समय घर के चारों ओर बर्तन में इस खीर को रख दो और बुढ़िया ने वैसे ही किया घर के चारों ओर अलग-अलग बर्तनों में खीर डालकर बुढ़िया सो गई| अगले दिन जब वह उठी तो बहू कहने लगी माता उन खीर के बर्तन मै क्या है अभी भी खीर हे या उसके कोई हीरा ज़ेवर बन चुके है या वह बालक बस झूठ कह रहा था| 

माता को पता था कि वह बालक कोई साधारण बालक नहीं किंतु गणेश जी का अवतार था| उसे पूरा विश्वास था कि गणेश जी ने उन बर्तनों में कुछ ना कुछ उसके जीवन का उदाहरण करने के लिए ही रखा होगा| जब उसने वह बर्तन खोल कर देखें तो बर्तन पूरे सोने ज़ेवर और मोतियों से भरे हुए थे| 

उन्होंने गणेश जी को बहुत-बहुत धन्यवाद किया क्योंकि अब उन ज़ेवर की मदद से उनके बच्चो की अच्छी पढ़ाई, अच्छा खाना और उसके परिवार का उधार हो सकता था| तो इसी तरह दोस्तों अगर हम प्रभु पर सच्ची श्रद्धा रखें तो वह किसी न किसी रूप में आकर हमें हमारी सारी इच्छाओं की पूर्ति जरूर कर देते हैं| और यही अगर हम प्रभु पर विश्वास ना करें और उनका डर ना रखें तो हमें भी उनका आशीर्वाद कभी नहीं मिल सकता इसीलिए हमेशा एक दूसरे की मदद कीजिए और ऐसे ही बुढ़िया के जैसे नरम दिल रखें|

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