क्या आप भी Gautam Buddha Moral Stories in Hindi के बारे में सर्च कर रहे हैं? अगर ऐसा है तो आप बिल्कुल सही जगह पर आए है, क्यूंकि आज की इस पोस्ट में हम आपके साथ गौतम बुद्ध की कहानियों के बारे में जानकारी शेयर करने जा रहे हैं|
जब हमने देखा कि काफी लोग गौतम बुद्ध की कहानियों के बारे में सर्च कर रहे हैं तब हमने खुद इसके ऊपर रिसर्च शुरू करी और रिसर्च पूरी करने के बाद ही हम आपके साथ कुछ खास और चुनिंदा कहानियों शेयर करने जा रहे हैं| तो चलिए दोस्तों अब हम शुरू करते हैं।
मृतक बेटे, माँ और गौतम बुद्ध की कहानी – Gautam Buddha Moral Stories in Hindi
एक बार की बात है कि गांव में एक लड़के की मृत्यु हो जाती है और उस लड़के की माँ बहुत ज्यादा रो रही होती है| तब उसी समय गांव में कुछ लोग आते हैं और उस स्त्री को कहते है कि तुम अपने लड़के के शव को लेकर गौतम बुद्ध के पास जाओ| वह तुम्हारे लड़के को जीवित कर देंगे| यह सुनकर वह स्त्री बहुत खुश होती है और गौतम बुद्ध के पास जाने के लिए तैयार हो जाती है| जिन लोगों ने उस स्त्री को गौतम बुद्ध के पास जाने की सलाह दी थी असल में वह गौतम बुद्ध को नीचा दिखाना चाहते थे, क्योंकि वह लोग गौतम बुद्ध से नफरत करते थे|
लेकिन उस स्त्री को इस बात की बिल्कुल भी जानकारी नहीं थी| उनके कहे अनुसार वह स्त्री गौतम बुद्ध के पास चली जाती है| उस समय वहां पर गौतम बुद्ध अपने शिष्यों को उपदेश दे रहे होते हैं| वह स्त्री सीधा गौतम बुद्ध के चरणों में जाकर अपने बच्चे लड़के के मृत शव को रख देती और कहती है कि मेरे बेटे की मृत्यु हो गई है| मुझे मालूम है कि आप इसे जिंदा कर सकते हैं| दुनिया में ऐसा कोई भी काम नहीं है जो आप नहीं कर सकते है| आप परम ज्ञानी हैं|
गौतम बुद्ध पहले उस स्त्री की बात सुनते रहे और वहां बैठे उनके शिष्य और अन्य लोग भी गौतम बुद्ध ध के जवाब का इंतजार करते रहे| थोड़ी देर बाद गौतम बुद्ध ने कहा कि ठीक है मैं तुम्हारे पुत्र को जीवित कर दूंगा| यह सुनकर वहां बैठे सभी लोग हैरान हो जाते हैं कि क्या यह संभव है? फिर गौतम बुद्ध मृतक लड़के की मां को कहते हैं कि अपने पुत्र को अगर तुम जिंदा करना चाहती हो तो तुम्हें मेरा एक काम करना होगा| स्त्री कहती है कि आप बताइए मैं काम करने के लिए तैयार हूँ|
गौतम बुद्ध उसको कहते हैं कि तुम एक मुट्ठी भर गेहूं लेकर आओ, लेकिन गेहूं उसी घर से लाना है जिसके घर में कभी भी कोई मृत्यु नहीं हुई है| वह स्त्री गेहूं लेने के लिए गांव में चली जाती है| पहले घर में जाती है, गेहूं मिल जाता है लेकिन उस घर में काफी समय पहले बुड्ढे आदमी की मृत्यु हो चुकी होती है| ऐसे करते करते हुए काफी घरों में जाती है लेकिन सभी घरों में कभी ना कभी किसी ना किसी की मृत्यु हुई होती है|
अब वह इस तरह समझ जाती है कि ऐसा नहीं हो सकता कि किसी भी घर में मृत्यु ना हुई हो| जिस घर में किसी ने अगर जन्म लिया है तो उसकी मृत्यु भी अवश्य हुई होगी| फिर वह स्त्री भी गौतम बुद्ध के पास चली जाती है और वहां जाकर गौतम बुद्ध के चरणों में जाकर बैठ जाती और कहती है कि आपने कुछ भी नहीं कहा, लेकिन मैं सब समझ गई कि जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु भी अवश्य होगी|
चाहे वह इंसान सुंदर हो, करूप हो, बूढ़ा हो, जवान हो, अगर उसने जन्म लिया है तो उसकी मृत्यु अवश्य होगी| मुझे इस बात का ज्ञान तो था लेकिन मै इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं थी| अब मुझे यह बात समझ आ गई है और फिर वह स्त्री वहां से अपने बेटे की लाश को लेकर चली गई।
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गौतम बुद्ध के न्याय की कहानी
एक बार की बात है कि एक गांव में एक बुजुर्ग आदमी रहता था| जो लक्कड़ के खिलौने बनाकर पास के शहर में बेचता था और अपने घर का खर्चा निकलता था| एक दिन बुजुर्ग आदमी ने खिलौने बेचने के लिए शहर जाना था| उस ने एक थैली में सारे खिलोने डाल दिए| जैसे ही वह बजुर्ग चलने लगा, उसे याद आया कि उसने शहर से सामान भी लेकर आना है| फिर वह पैसे वह उठाने के लिए घर के अंदर चला गया|
जब 5 मिनट बाद बुजुर्ग आदमी बाहर आया था, उसने देखा कि उसका थैला वहां से गायब हो चुका था और दूर एक नौजवान युवक उसका थैला कंधे पर लटकाते हुए जा रहा है| बुजुर्ग आदमी ने उस नौजवान युवक का पीछा किया और काफी देर तक पीछा करने के बाद जब बुजुर्ग आदमी नौजवान युवक के पास पहुंचा
बुजुर्ग – हे भाई यह थैला मेरा है, तुम इसे वापिस लौटा दो|
नौजवान युवक – यह मेरा थैला है, मैं इसे घर से लेकर आया हूँ|
बुजुर्ग – तुमने अभी कुछ देर पहले मेरे घर के सामने से थैला उठाया है, मुझे वापिस लौटा दो|
नौजवान युवक – तुम पड़ गए है, यह मेरा थैला है, मैं इसे तुम्हें क्यों दूँ?
बुजुर्ग आदमी काफी देर तक नौजवान युवक की मिनते निकलता रहा और उसे समझाने की कोशिश भी करता रहा, लेकिन युवक नहीं माना| फिर बजुर्ग ने कहा कि यह मेरी रोजी-रोटी है, मैने बहुत मेहनत करके लकड़ी का समान बनाया है| अगर तुम इसे लेजाओगे तो मेरा बहुत नुकसान हो जाएगा| लेकिन नौजवान युवक फिर भी नहीं माना और वह थैला लेकर वहां से चला गया|
फिर बुजुर्ग आदमी परेशान होकर वहां से अपने घर लौट आया| फिर इस घटना के बारे में गौतम बुद्ध पता चला| वह उस समय जंगल के पास के खेत में बैठे थे| जब गौतम बुद्ध को पता चला कि उस नौजवान युवक ने बुजुर्ग आदमी का थैला चुराया है और बजुर्ग को देने से भी मना कर रहा है| तब गौतम बुद्ध ने उस युवक नौजवान को अपने पास बुलाने के लिए अपने सहायकों को भेज दिया|
फिर गौतम बुद्ध के सहायक नौजवान युवक और बुजुर्ग आदमी को बुला कर ले आए| नौजवान युवक थैला साथ ही लेकर आया, क्यूंकि गौतम बुद्ध ने थैला साथ लाने के लिए कहा था| फिर गौतम बुद्ध ने पहले नौजवान युवक से बात करी और पुछा कि क्या यह थैला तुम्हारा है, तो नौजवान युवक ने कहा है कि जी हाँ यह मेरा थैला है और दूसरी तरफ बुजुर्ग आदमी कह रहा था कि यह थैला मेरा है|
फिर गौतम बुद्ध सोचने लगे कि अब इस थैले का फैसला कैसा किया जाए| थोड़ी देर सोचने के बाद गौतम बुद्ध ने बोलै कि चलो ठीक है, मैं मान लेता हूं कि यह थैला तुम्हारा है| क्या तुम मुझे बता सकते हो कि इस थैले में क्या है? फिर नौजवान युवक ने कहा,जी हां इसमें लकड़ी के खिलौने हैं| गौतम बुद्ध ने कहा कि क्या यह खिलौने तुमने खुद बनाए है? नौजवान युवक ने कहा जी हां यह खिलौने मैने दिन रात मेहनत करके बनाए हैं|
गौतम बुद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा चलो अच्छी बात है, तुम एक मेहनती युवक लग रहे हो| अगर तुमने इतनी मेहनत करके यह थैला बनाया था, तो फिर थैला तुम्हारा ही होगा| गौतम बुद्ध के आसपास बैठे लोग गौतम बुद्ध के चेहरे को देखने लगे और सोचने लगे कि गौतम बुद्ध उस आदमी को थैला ले जाने के लिए कैसे कह सकते हैं? यह आदमी तो गांव का सबसे बड़ा चोर है|
जैसे ही नौजवान युवक थैला उठकर जाने लगा, गौतम बुद्ध ने कहा कि बात सुनो क्या तुम मेरे लिए एक छोटा सा काम कर सकते हो? नौजवान युवक ने कहा जी हां बताइए क्या काम है?गौतम बुद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा तुम्हारे बनाए हुए खिलौने मुझे काफी आकर्षित लग रहे हैं| क्या तुम मेरे लिए एक सबसे अलग और खास लकड़ी का खिलौना बना सकते हो? यह सुनकर नौजवान चुप हो गया, तभी गौतम बुद्ध के सहायक ने लकड़ी के कुछ टुकड़े लाकर नौजवान युवक के पास रख दिया और खिलौने बनाने के लिए कहा|
काफी देर तक युवक खिलौने बनाने की कोशिश करता रहा, लेकिन उस से खिलौना नहीं बन पाया, तब गौतम बुद्ध ने कहा कि अगर यह थैला तुम्हारा होता तो तुम्हें खिलौने बनाना भी आता होता| लेकिन ना तो तुम्हें खिलौने बनाना आता है और ना ही यह थैला तुम्हारा है| तुम झूठ बोल रहे थे और मुझे यह पहले से मालूम था| इस थैले का असली मालिक यह बजुर्ग आदमी है| तुम उसको थैला लौटा दो|
ऐसे किसी की इतनी मेहनत से किए हुए काम को चुराने का तुम्हे कोई हक़ नहीं है| तुम आज चोरी करके एक बार तो पैसे कमा सकते हैं, लेकिन सारी उम्र नहीं कमा पाओगे| तुम अच्छे भले नौजवान हो, तुम मेहनत करके पैसा कमा सकते हो| अगर तुम आज से मेहनत करने लग जाओगे तो कल को तुम भी खुद लकड़ी के खिलोने बना सकगे और उसे बाजार में बेचकर ढेर सारा पैसा कमा सकोगे| यह बात सुनकर नौजवान युवक शर्मिंदा हो गया और उसने थैला उस बुजुर्ग आदमी को लौटा दिया और उस से शमा मांगकर वहां से चला गया|
नैतिक शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि चोरी करके पैसा एक बार कमाया जा सकता है, लेकिन अगर हम मेहनत करें तो हम भविष्य में अच्छा पैसा कमा सकते हैं।
क्रोध एक दुश्मन
एक बार की बात है कि एक गांव के पास खाली बड़े से मैदान में एक पेड़ के नीचे गौतम बुद्ध बैठे थे| उनके सामने काफी सारे शिष्य भी बैठे थे| गौतम बुद्ध उन शिष्यों को अपने विचार सुना रहे थे और सभी शिष्य उनकी बातें ध्यान से सुन रहे थे|
गौतम बुद्ध जी ने अपने शिष्यों को कहा कि हमें कभी भी जिंदगी में क्रोध नहीं करना चाहिए और कभी भी किसी को बुरा भला नहीं कहना चाहिए, क्योंकि जो व्यक्ति क्रोध में रहता है वह खुद को नुकसान पहुंचाता है और दूसरों को भी नुकसान पहुंचाता है| क्रोध में रहने वाला व्यक्ति और हमेशा प्रतिशोध की आग में जलता है और अपने जीवन को बर्बाद करता है|
उनका उपदेश खत्म होने के तुरंत बाद उनका एक शिष्य खड़ा हुआ और गौतम बुद्ध को कहने लगा कि जो बातें तुम कह रहे हो सब व्यर्थ है| यह बातें जीवन के बिल्कुल विपरीत है| इन बातों का जीवन में कोई भी महत्व नहीं है| वह बुद्ध की काफी बुरा भला कहने लगा| लेकिन गौतम बुद्ध ने आगे से कुछ नहीं कहा, वह शांत बैठे रहे| यह देखकर शिष्य को और भी ज्यादा गुस्सा आ गया| उसने गुस्से में गौतम बुध के चेहरे पर थूक दिया| लेकिन फिर भी बुद्ध ने कुछ नहीं कहा और वह वहां शांत बैठे रहे|
इतना करने के बाद वह शिष्य वहां से उठ कर चला गया और फिर वह अपने घर पहुंच गया| घर पहुंचते-पहुंचते उस शिष्य का गुस्सा बिल्कुल शांत हो गया और उसे एहसास हुआ कि उसने गौतम बुद्ध के साथ बहुत गलत व्यवहार किया है| उसे ऐसा नहीं बोलना चाहिए था, उसने गौतम बुध का अपमान किया है| अब शिष्य को बात समझ आ गई थी और उसे अपनी गलती के लिए काफी पछतावा हो रहा था| इसलिए वह गौतम बुद्ध के पास जाकर माफी मांगना चाहता था|
वह शिष्य उसी समय अपने घर से निकला और वहीं पर चला गया, जहां गौतम बुद्ध बेथर उपदेश दे रहे थे| लेकिन वहां जाकर शिष्य ने देखा कि वहां पर गौतम बुद्ध नहीं है, क्योंकि गौतम बुद्ध उधर उधर जाते रहते थे और अपना उपदेश देते रहते थे| लेकिन उस शिष्य ठान लिया था कि वह गौतम बुद्ध से माफी मांग कर ही हटेगा| वह शिष्य गौतम बुध की तलाश में इधर-उधर भटकता रहा|
फिर अगले दिन उसे गौतम बुद्ध मिले| वह बुद्ध के पैरों में गिर कर माफी मांगने लगा| तब गौतम बुद्ध ने कहा क्या हुआ, क्यों रो रहे हो और किस बात की माफी मांग रहे हो| तब उस शिष्य ने कहा कि आप मुझे कैसे भूल सकते है| वह वही हु जिसने आपको कल इतना बुरा भला कहा था और मुझे इतनी जल्दी कैसे भूल सकते है|
तब गौतम बुद्ध ने कहा कि मैं कल की बात कल ही छोड़ देता हूँ| यही मेरे जीवन जीने का तरीका है| यह सुनकर शिष्य हैरान हो गया और गौतम बुद्ध से ओर भी ज्यादा प्रभावित हो गया| उसने गौतम बुद्ध से बोला कि आज से आपकी हर बात को मैं माना करूंगा|
नैतिक शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें क्रोध नहीं करना चाहिए, क्रोध जीवन के लिए हानिकारक है| इससे हम खुद का और दूसरों का भी नुकसान करते हैं।
शान्त मन
एक बार की बात है कि गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ सफर पर थे| तभी गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ एक जगह पर बैठ गए और उन्होंने अपने शिष्य को कहा कि मुझे प्यास लगी है, जाओ तुम मेरे लिए पानी लेकर आओ| तब शिष्य उठा और उसने आसपास देखा तो वहां पर पानी का कोई भी स्रोत नहीं था| फिर वह शिष्य पानी की तलाश में चला गया|
थोड़ी दूर जाने के बाद उसे पानी का स्रोत मिला, लेकिन वहां उसने देखा कि उस पानी में काफी लोग कपड़े धो रहे थे, बैलगाड़ी पानी से निकल रही थी| जिसकी वजह से पानी में मिट्टी भर गई थी, पानी काफी गंदा हो गया था| उसने सोचा कि मैं यह पानी गौतम बुद्ध को कैसे दे सकता हूँ| फिर वह शिष्य खाली बर्तन लेकर गौतम बुद्ध के पास चला गया और जाकर उनको सारी बात बताई। फिर गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ वहीं पर बैठ गए और आराम करने लगे|
थोड़ी देर आराम करने के बाद गौतम बुद्ध ने उसी शिष्य को कहा कि जाओ तुम मेरे लिए पानी लेकर आओ| तब वह शिष्य फिर से उसी जगह पर गया| वहां जाकर उसने देखा कि पानी बिल्कुल साफ हो चुका था, मिट्टी बिल्कुल नीचे बैठ चुकी थी और पानी पीने योग्य हो चुका था| वह बर्तन में पानी भरकर गौतम बुध के पास ले गया|
तब गौतम बुद्ध ने समझाया कि पहले पानी में मिट्टी फैली हुई थी, पानी पीने योग्य नहीं था| जब पानी को थोड़ी देर के लिए छोड़ दिया तो सारी मिट्टी नीचे बैठ गई| ठीक हमारा दिमाग भी उसी प्रकार है, जब हमारा दिमाग अशांत होता है तो हमें उसे थोड़ी देर के लिए खाली छोड़ देना चाहिए, ताकि वह शांत हो सके|
थोड़ा समय लेने के बाद दिमाग शांत हो जाता है| अगर हम अशांत दिमाग के साथ कोई निर्णय लेते हैं तो उससे हमारा और दूसरों का भी नुकसान होता है| इसलिए हमें अशांत मन को खाली छोड़कर शांत करके ही निर्णय लेने चाहिए।
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परिश्रम के साथ धैर्य भी जरुरी है
एक बार गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ उपदेश देने के लिए दूसरे गांव में जा रहे थे| थोड़ी देर चलने के बाद गौतम बुद्ध और उनके शिष्यों ने देखा कि रास्ते में जगह-जगह पर छोटे छोटे खड्डे खोद रखे हैं| यह देखकर शिष्य बहुत ज्यादा हैरान हो गए| तब एक शिष्य ने गौतम बुद्ध को कहा कि यहां पर इतने खड्डे खोद रखे हैं इसका क्या मतलब है?
तब गौतम बुद्ध ने बच्चों को समझाते हुए कहा कि किसी व्यक्ति ने पानी की खोज में खड्डे खोदे होंगे| लेकिन जब उसे एक जगह से पानी नहीं मिला तो वह दूसरी जगह खड्डा खोदने लगा और फिर तीसरी जगह| ऐसे करते करते उस व्यक्ति ने काफी सारे खड्डे खोद लिए, लेकिन उसे पानी फिर भी नहीं मिला| अगर वह व्यक्ति एक ही जगह खड्डा खोदता रहता तो उसे पानी जरूर मिल जाता है। इसलिए परिश्रम के साथ धैर्य भी जरूरी है।
मारने वाले से बचाने वाला बड़ा
यह कहानी गौतम बुद्ध के बचपन की है| जब उन्हें सिद्धार्थ के नाम से जाना जाता था| यह कहानी गौतम बुद्ध और उनके चचेरे भाई देवदत्त के बचपन की है। एक बार राजा सिद्धार्थ अपने बगीचे में बैठकर प्रकृति का आनंद ले रहे थे| तभी एक घायल हंस आकर उनके पैरों में गिरा|
राजा सिद्धार्थ में जब हंस को देखा तो वह बिल्कुल घायल था, उसके तीर लगा हुआ था| राजा सिद्धार्थ को इस बात का ज्ञान हो गया कि इस हंस को जरूर किसी ने आज किसी ने शिकार किया है| तब राजा सिद्धार्थ ने उसकी मदद करने के बारे में सोचा|
सबसे पहले राजा सिद्धार्थ ने घायल हंस के लगे हुए तीर को निकाला और उसकी मरहम पट्टी करी| तभी अब सिद्धार्थ का चचेरा भाई देवदत्त भी वहां पर आ गया| उसने देखा कि हंस सिद्धार्थ के पास था| तब देवदत्त ने बोला कि इस हंस पर मेरा अधिकार है क्योंकि मैंने इसका शिकार करने में बहुत मेहनत करी है, सिद्धार्थ ने कहा कि यह हंस मेरे पैरों में आकर गिरा था, मैंने इसकी मरहम पट्टी करके इसका इलाज किया है, इसलिए इस पर मेरा अधिकार ज्यादा है|
जब दोनों के बीच हंस पर अधिकार को लेकर फैसला नहीं हुआ तो दोनों राजा के पास चले गए| सबसे पहले देवदत्त बताया कि मैंने इस हंस का शिकार किया है इसलिए इस पर मेरा अधिकार ज्यादा है| फिर राजा ने सिद्धार्थ से पूछा, तो सिद्धार्थ ने कहा कि यह हंस घायल होकर मेरे पैरों में गिरा था, मैंने इसका इलाज किया है, इसलिए इस पर मेरा ज्यादा अधिकार है|
यह बात सुनकर राजा सोच विचार में पड़ गए| तब राजा ने कहा कि मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है| इसलिए इस हंस पर सिद्धार्थ का अधिकार ज्यादा है| अब यह बात देवदत्त को भी समझ आ गई थी कि मारने वाले से बचाने वाले का अधिकार ज्यादा होता है।
बुद्ध और भिखारी
एक बार एक शहर में एक भिखारी रहता था| वह अपना और अपने बच्चों का पेट भरने के लिए भीख मांगता था| भीख मांगना ही उसका काम था| वह सारे दिन में जितना भीख मांग कर इकट्ठा करता उसी से अपना घर चलाता था| लेकिन वह भिखारी यह सोच कर बहुत निराश होता था कि उसके जीवन में बदलाव कैसे आएगा और हर बार जब उसके मन में यह विचार आता है वह सोच कर निराश हो जाता था|
एक दिन भिखारी ने बाजार में देखा कि काफी लोग निराश होकर आंखों में आंसू लेकर गौतम बुध के पास जाते हैं और जब वापस आते हैं तो बहुत खुश होते हैं| लेकिन उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि गौतम बुध के पास ऐसा क्या है? जो हर कोई जाता है, वहां से खुश होकर ही वापस आता है| ना तो वहां से वापस आने वालों के हाथ में सोना, चांदी होता है और ना पैसे होते है| लेकिन फिर भी वहां से खुश होकर ही वापिस आते है|
फिर उस भिखारी ने सोचा कि मैं भी गौतम बुद्ध के पास जाता हूँ और देखता हूँ वहां पर ऐसा क्या है? जिससे लोग इतने ज्यादा खुश हो रहे हैं| फिर अगले ही दिन वह भिखारी गौतम बुद्ध के पास चला गया| वहां पर लोगों की कतार लगी हुई थी| वह भी कतार में खड़े होकर इंतजार करने लगा| फिर भिकारी का नंबर आया तो भिखारी ने गौतम बुद्ध से कहा कि मैं गरीब आदमी हूं और भीख मांग कर अपने घर का गुजारा करता हूँ|
मैं अपनी जिंदगी से बहुत ज्यादा परेशान हूँ| मुझे बताइए कि मेरा जीवन कैसे बदल सकता है? गौतम बुद्ध ने कहा कि तुम गरीब नहीं हो, तुम्हें ऐसा लगता है कि तुम गरीब हो| तुमने कभी भी किसी के लिए कुछ भी नहीं करा है, ना ही कभी किसी को दान दिया है| यह सुनकर भिखारी सोच में पड़ गया और गौतम बुद्ध को कहने लगा कि मैं तो खुद एक भिखारी हूँ| मैं किसी को क्या दान दे सकता हूँ?
तो गौतम बुद्ध ने कहा कि भगवान ने तुम्हें इतना अच्छा है शरीर दिया है, तुम अपने हाथों से लोगों को दान कर सकते हो| जरूरी नहीं कि दान पैसों का ही होता है, तुम अन्नदान कर सकते हो| ,तुम अपने मुख से लोगों को अच्छे-अच्छे विचार देकर उनका हौसला बढ़ा सकते हो और उनकी सहायता कर सकते हैं तुम उन्हें शिक्षा दान कर सकते हो|
गरीब तुम नहीं हो, गरीब तुम्हारा दिमाग है| तुम्हें इस विचार से हटकर दूसरों की सेवा करने के बारे में सोचना चाहिए| यह बात सुनकर भिखारी बहुत ज्यादा खुश हो गया और वह संतुष्ट होकर वहां से चला गया।
नैतिक शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि मैं गरीब हूँ, इस बात से चिंता करने से समय बर्बाद होता है और यह बिल्कुल भी सत्य नहीं है| सत्य है कि आप को भगवान ने बिल्कुल सही शरीर दिया है, हमे इसका इस्तेमाल करके आगे बढ़ना चाहिए और खुद के जीवन को बेहतर बनाना चाहिए।
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सबकुछ स्वीकार करना जरुरी नहीं
एक बार गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ अपने उपदेश बांट रहे थे| वैसे तो गौतम बुद्ध हमेशा ही अपने उपदेश बांटने के लिए इधर से उधर घूमते रहते थे| लेकिन एक दिन वह पेड़ के नीचे बैठकर अपने शिष्य को उपदेश दे रहे थे| उनके शिष्य भी उनको काफी ज्यादा पसंद करते थे| लेकिन समाज में कुछ ऐसे लोग भी थे जो गौतम बुद्ध से बहुत नफरत करते थे|
एक दिन जब गौतम बुद्ध अपने शिष्यों को उपदेश दे रहे थे तब उनके पास एक व्यक्ति आया| व्यक्ति ने आते ही गौतम बुद्ध को बुरा भला कहा, उनके पूर्वजों तक को गाली दी| लेकिन गौतम बुद्ध ने आगे से कुछ नहीं कहा| गौतम बुद्ध उसकी बात सुनते रहे| जब उस व्यक्ति ने देखा कि गौतम बुद्ध कुछ भी नहीं कह रहे हैं तो और उस व्यक्ति को ओर भी बुरा लगा| काफी देर बुरा भला कहने के बाद वह व्यक्ति शांत हो गया|
गौतम बुद्ध के शिष्य भी यह सब कुछ देख रहे थे और गौतम बुद्ध के इस व्यव्हार को देख कर काफी ज्यादा हैरान हो रहे थे| फिर एक शिष्य ने पूछा कि आप उस व्यक्ति को कुछ कह क्यों नहीं रहे है? आप शांत क्यों बैठे हैं| तब गौतम बुद्धने कहा कि अगर मुझे कोई तोहफा देता है तो उसे मैं स्वीकार करूं या ना करूं यह मुझ पर निर्भर करता है| अगर मै स्वीकार करता हु तो वह तोहफा मेरा है अगर मई स्वीकार नहीं करता हु तो वह तोहफा उसी व्यक्ति का है|
ठीक उसी प्रकार यह व्यक्ति मुझे इतने अपशब्द कह रहा है| अगर मई इसके उपशब्द स्वीकार करता तो वह मेरे होते, मैंने स्वीकार नहीं करे हैं तो यह शब्द इस के खुद के ही है| हमें कभी भी उसी समय प्रतिक्रिया नहीं देनी चाहिए| हमें शांत होकर सही या गलत का फैसला करना चाहिए| उसके बाद ही अपने प्रतिक्रिया देनी चाहिए|
ऐसा करने से बुरी बातें और मुसीबतें टल जाती हैं| गौतम बुद्ध की इस बात को सुनकर व्यक्ति बहुत ज्यादा शर्मिंदा हो गया और गौतम बुद्ध के चरणों में आकर माफी मांगने लगा| गौतम बुद्ध ने उस व्यक्ति को माफ कर दिया और वह आगे चले गए|
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि स्वीकार करना या ना करना यह हमारे ऊपर है| इसलिए हमें जीवन में अच्छी बातों को स्वीकार करना चाहिए और बुरी बातों को अस्वीकार करना चाहिए।
डाकू अंगुलिमाल और महात्मा बुद्ध की कहानी
एक बार की बात है कि मगध नाम का एक राज्य था| वह राज्य बहुत ही ज्यादा संपन्न था| मगध राज्य में एक हस्तिनापुर नाम का गांव था| वहां पर लोग दिन में काम किया करते थे और रात को कोई भी अपने घर से नहीं निकलता था| लोगों का घर से ना निकलने की वजह वहां पर रहने वाला एक डाकू अंगुलिमाल था|
अंगुलिमाल बहुत ज्यादा खूंखार डाकू था| लोगों में अपना डर बनाए रखने के लिए लोगों को मारता था और उनकी उंगलियों को काटकर गले की माला बनाकर पहनता था| वह डाकू जंगल में गुफा में रहता था| उस गुफा के पास गांव के लोग जाने से भी डरते थे|
1 दिन की बात है कि गौतम बुध गांव में से गुजर रहे थे| उन्होंने देखा कि लोग काफी चिंतित हैं| तब उन्होंने लोगों से पूछा कि तुम इतने ज्यादा चिंतित क्यों हो? तब उनमें से एक व्यक्ति सामने आया और उसने बताया कि हमारे गांव में एक डाकू रहता है| जिसका नाम अंगुलिमाल है, वह लोगों को मारकर उनकी उंगलियां काट कर गले की माला बनाकर पहनता है| वह बहुत ही ज्यादा खूंखार डाकू है|
तब गौतम बुद्ध ने पूछा कि वह डाकू कहां रहता है? उस व्यक्ति ने डाकू की गुफा के बारे में गौतम बुद्ध को बताया| फिर गौतम बुद्ध उस डाकू के पास जाने लगे लेकिन लोग गौतम बुद्ध को रोकने की कोशिश करने लगे| लेकिन गौतम बुद्ध नहीं माने और गुफा के पास चले गए| गौतम बुद्ध को गुफा की ओर आता हुआ देखकर अंगुलिमाल गुफा से बाहर आ गया है| वह तलवार लेकर खड़ा हो गया, लेकिन गौतम बुद्ध ने अंगुलिमाल को नजरअंदाज कर दिया और वहां से आगे बढ़ते गए|
यह देखकर अंगुलिमाल को बहुत गुस्सा आया| उसने गुस्से में कहा कि हे सन्यासी तुम जानते नहीं मैं कौन हूँ? फिर गौतम बुद्ध ने कहा कि नहीं मैं नहीं जानता कि तुम कौन हो? फिर डाकू ने कहा कि मैं इस गांव का सबसे शक्तिशाली मनुष्य हूँ| गौतम बुद्ध ने कहा कि मैं नहीं मानता कि तुम इस गांव के सबसे शक्तिशाली मनुष्य हो|
फिर उंगली मल ने कहा कि बताओ मैं ऐसा क्या करूं, जिससे तुम मान जाओ कि मैं एक गांव का सबसे शक्तिशाली मनुष्य हूँ| तब गौतम बुद्ध ने कहा कि तुम्हारे पीछे एक पेड़ है, वहां से 10 पत्तियां तोड़ कर लाओ| अंगुलिमाल डाकू भाग कर पेड़ पर गया 10 पत्ते तोड़कर ले आया| फिर गौतम बुद्ध ने कहा कि इन पत्तियों को वापस जोड़ दो| अंगुलिमाल ने कहा कि यह कैसा मजाक है?
गौतम बुद्ध ने कहा अगर तुम किसी चीज को जोड़ नहीं सकते तो उसे तोड़ो भी मत| अगर तुम किसी को जीवन नहीं दे सकते तो उसको मारो भी मत| यह सुनकर डाकू की आंखों में आंसू आ गए| अंगुलिमाल उसी समय गौतम बुद्ध के चरणों में गिर कर माफी मांगने लगा और उस दिन से अंगुलिमाल गौतम बुद्ध का शिष्य बन गया|
नैतिक शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि इंसान चाहे कितना भी बुरा क्यों ना हो, उसे बदला जा सकता है।
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गौतम बुद्ध और अंधविश्वास से छुटकारा पाने की कहानी
एक बार की बात है कि सर्दियों का समय था और गौतम बुद्ध एक नदी के किनारे पर जा रहे थे| वहां पर सभी लोग मोटे मोटे वस्त्र पहन कर जा रहे थे| तभी गौतम बुद्ध की नजर एक व्यक्ति पर पड़ी| जो ठंडे पानी में डुबकी लगा रहा था| गौतम बुद्ध उसे देखते रहे| आदमी पानी में डुबकी लगा रहा था साथ में उसका शरीर भी कांप रहा था|
थोड़ी देर देखने के बाद गौतम बुद्ध उसके पास गए और पूछा कि तुम इतने ठंडे पानी में डुबकी क्यों लगा रहे हो? तब उस आदमी ने कहा कि अभी कुछ समय पहले मैं नदी से नहा कर पूजा करने के लिए जा रहा था, लेकिन मेरे पाँव के नीचे एक मछली आ गई| जिसके ऊपर पैर रखने से में अपवित्र हो गया हूँ| अब मैं इस पानी में डुबकी लगाकर खुद को पवित्र कर रहा हूँ|
गौतम बुद्ध ने कहा कि मछली तो हमेशा से इसी पानी में रहती है| अगर तुम इस पानी में डुबकी लगाने से पवित्र हो गए हो तो वह मछली तो हमेशा से ही इस पानी में रहती है| फिर तो वह मछली हमेशा से ही पवित्र होगी| अब उस आदमी को गौतम बुद्ध की बात समझ आ जाती है और वह पानी से बाहर आ जाता है| फिर गौतम बुद्ध उस व्यक्ति के वस्त्र उठाकर उसे पहनने के लिए देते हैं और साथ में कहते हैं कि खुद को अंधविश्वास के जाल में मत फसाओ, जब तक कि तुमने उस चीज का खुद अनुभव ना करा हो|
फिर गौतम बुद्ध उस आदमी को समझाते हैं कि जो चीजें अपवित्र हैं, लोग उसे अपवित्र नहीं मानते| जैसे नशा करना, दुर्व्यवहार करना, दूसरों से घृणा करना| इस बात को तो लोग अपवित्र नहीं मानते| लेकिन कोई जीव जंतु जो हमारे जीवन में इतना ज्यादा महत्व नहीं रखता उसको लोग अपवित्र मानते है|
फिर वह व्यक्ति गौतम बुद्ध से पूछता है कि अंधविश्वास क्या है? गौतम बुद्ध बताते है कि असल में अंधविश्वास हमारे मन के अंदर होता है| अगर हम मन पर काबू पा लेंगे तो हम अंधविश्वास पर काबू पा सकते हैं।
हर एक व्यक्ति को लगता है कि वह अपने जीवन में सभी दुखों से अपने मन की वजह से मुक्त हो सकता है| अगर तुम अपने चारों ओर देखोगे तो सभी लोग अपने मन के साथ उलझे हुए हैं| लेकिन यह सच्चाई है नहीं है| जब तक इंसान अपने मन को नहीं समझता तब तक कुछ भी ठीक नहीं हो सकता| फिर वह व्यक्ति गौतम बुद्ध से पूछता है कि मन को कैसे समझा जाता है?
तो गौतम बुद्ध कहते हैं कि मन को जागरूकता के द्वारा समझा जा सकता है| जब भी पूरे दिन में तुम्हें याद आए तुम जागरूक होकर देखो कि तुम्हारा मन तुमसे क्या करवा रहा है? तुम्हारा मन बार-बार तुम्हें भुलाने का प्रयास करता रहेगा, लेकिन तुम्हें बार-बार उस प्रयास को करते रहना है| तुम्हें दिन में बार-बार देखना है कि क्या तुम उसी रास्ते पर जा रहे हो, जहां पर तुम्हारा मन तुम्हें पहुंचाना चाहता है? क्योंकि अपने मन को समझ कर मन से मुक्त होने का यही सूत्र है|
गौतम बुद्ध, अमरूद और बच्चे की कहानी
एक बार एक गांव के बाहर के रास्ते पर एक अमरूद का पेड़ था| गौतम बुद्ध उस पेड़ के नीचे आंखें बंद करके आराम कर रहे थे| थोड़ी देर बाद उस पेड़ के पास गांव के छोटे-छोटे बच्चे आ गए| वह अक्सर ही उस पेड़ के पास अमरूद खाने के लिए आया करते थे| उन्होंने जब देखा कि पेड़ पर अमरुद अभी भी लगे हुए हैं उन बच्चों ने पत्थर मारने शुरू कर दिए|
इतने में एक पत्थर गौतम बुद्ध के सर पर आकर लगा| पत्थर लगने के कारण गौतम बुद्ध के सर से खून बहने लगा और यह देखकर बच्चे भयभीत हो गए| लेकिन गौतम बुद्ध ने कुछ नहीं कहा और आंखें बंद करके ऐसे ही बैठे रहे| सभी बच्चे गौतम बुद्ध से माफी मांगने लगे| एक बच्चा गौतम बुद्ध के पास आया और उसने कहा कि आप मुझे माफ कर दीजिए, मेरी वजह से आपके सर पर पत्थर लग गया है| मैंने यह जानबूझकर नहीं मारा है|
यह सुनकर गौतम बुद्ध की आंखों में पानी आ गया| तब गौतम बुद्ध ने एकदम से आंखें खोली और छोटा बच्चा तब गौतम बुद्ध के चरण पकड़ कर माफी मांग रहा था| तब गौतम बुद्ध ने कहा मुझे रोना इस बात पर आया है कि तुम पेड़ को पत्थर मार रहे हो थे वह तुम्हें फल दे रहा था और मेरे पत्थर लगा तो मैं तुम्हें सिर्फ भय ही दे पा रहा हूँ| यह सोचकर मेरे आंखों से पानी आ गया है|
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Conclusion
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FAQ (Frequently Asked Questions)
बोधि वृक्ष का दूसरा नाम क्या है?
बोधि वृक्ष को हरसिंगार, प्राजक्ता, परिजात, शिउली, शेफालिका, और शेफाली नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा उर्दू भाषा में बोधि वृक्ष को गुलज़ाफ़री भी कहा जाता है।
क्या बुद्ध जिस पेड़ के नीचे बैठे थे वह अभी भी जीवित है?
गौतम बुद्ध जिस पेड़ के नीचे बैठे थे वह पेड़ अब जीवित नहीं है| लेकिन मौजूदा पवित्र अंजीर के पेड़ों को बोधि वृक्ष भी कहा जाता है और इसका सबसे बड़ा उदाहरण महाबोधि मंदिर में उगने वाला महाबोधि वृक्ष है।
गौतम बुद्ध को ज्ञान किस वृक्ष पर प्राप्त हुआ था?
गौतम बुद्ध को बोधगया नामक जगह पर लगे बोधि वृक्ष के नीचे बैठकर ज्ञान प्राप्त हुआ था | गौतम बुद्ध ने इसी वृक्ष के नीचे बैठकर अपने राजसी जीवन का त्याग किया थे और तपस्या करने का निर्णय लिया था।
गौतम बुद्धके अनुसार दुःख क्यों होता है?
गौतम बुद्ध के अनुसार दुख की मुख्य वजह तृष्णा और तेज इच्छा है| अगर हम अपने अंदर तृष्णा या तेज इच्छा रखते हैं तभी हमें दुख होता है।
भगवान बुद्ध किसकी पूजा करते थे?
भगवान बुद्ध देवी तारा की पूजा करते थे| उन्होंने देवी तारा का निर्माण 11वीं शताब्दी में मठ के ऊपरी भाग में मंदिर बनाकर किया था।
बुद्ध की नैतिक शिक्षाएं क्या थी?
बुद्ध की नैतिक शिक्षा के अनुसार आदमी को सफलता प्राप्त करने के लिए खुद पर्यतन करते रहना चाहिए| इसमें कोई भी हमारी सहायता नहीं करेगा, बल्कि हमे खुद ही अपने कदमों को आगे बढ़ाना है और बुद्ध यह भी मानते थे कि किसी देवी देवता की प्रार्थना करने से किसी भी इंसान का कल्याण नहीं हो सकता।
गौतम बुद्ध की पूरी कहानी क्या है?
गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में हुआ था और उनकी मृत्यु 483 ईसा पूर्वमें हुई थी| गौतम बुद्ध को भगवान बुद्ध, सिद्धार्थ, महात्मा बुद्ध के नाम से भी जाना जाता है| गौतम बुद्ध एक शिक्षक थे जो पांचवी शताब्दी के बीच भारत में रहे थे।
बुद्ध का मूल संदेश क्या था?
बुद्ध का मूल संदेश था कि हमें अपने जीवन में हजारों लड़ाइयां जीतने से बेहतर है कि हम पहले अपने आप पर जीत हासिल करें| अगर हम खुद पर जीत हासिल कर लेंगे, तभी हम दूसरी लड़ाइयां को जीत सकते हैं और फिर हमारी जीत को हमसे कोई छीन भी नहीं सकता।