Moral Stories on Respecting Elders in Hindi | बड़ों का आदर पर कहानी

दोस्तों क्या आप भी Moral Stories on Respecting Elders in Hindi के बारे में सर्च कर रहे हैं? अगर ऐसा है तो आप बिल्कुल सही जगह पर आए हैं, क्योंकि आज के इस पोस्ट में हम आपके साथ बड़ों का आदर पर कहानी करना क्यों जरुरी है और बड़ों का हमारे जीवन में क्या मह्तव है, इसके बारे में कहानियां शेयर करने जा रहे हैं| 

जब हमने देखा कि काफी लोग बड़ों का आदर पर कहानियों के बारे में सर्च कर रहे हैं तब हमने खुद इसके ऊपर रिसर्च शुरू करी और रिसर्च पूरी करने के बाद ही आज हम आपके साथ नैतिक शिक्षा से भरपूर कहानियां शेयर करने जा रहे हैं| तो चलिए दोस्तों अब हम शुरू करते हैं।

राघव के बड़ों के साथ व्यव्हार की कहानी – Moral Stories on Respecting Elders in Hindi

एक बार एक गांव में राघव नाम का व्यक्ति रहता था| उसके पिताजी का गांव में बहुत बड़ा कारखाना था, जहां पर आधे से ज्यादा गांव नौकरी करता था| राघव के पिताजी के कारखाने से ही आधे से ज्यादा गांव वालों के घर का चूल्हा बलता था| 

जैसे-जैसे राघव बड़ा हो रहा था, उसके पिताजी का व्यापार और भी ज्यादा बढ़ रहा था| अब पहले से भी ज्यादा लोग कारखाने में काम करने लगे थे| छोटे बड़े सभी राघव के पिताजी का बड़ा आदर सम्मान करते थे और राघव के पिताजी भी छोटों से प्यार और बड़ों का आदर सम्मान करते थे| उन्हें पैसे का बिल्कुल भी गुमान नहीं था| जब भी उनके घर पर कोई बुजुर्ग उनसे से मिलने आता है तो राघव के पिताजी हमेशा मुस्कुराकर उनसे मिलते और उनके पाँव भी छूते थे| 

लेकिन राघव को यह बात अच्छी नहीं लगती थी, उसे लगता था कि उसके पिताजी तो इतने बड़े व्यापारी हैं और यह सब गांव वाले उनके कारखाने में काम करते हैं| लेकिन फिर भी पिताजी उन लोगों के पाँव छूते हैं| जबकि उन लोगों को पिताजी के पांव छूने चाहिए जिनकी वजह से उनका घर का खर्च चलता है| समय बीतता गया और राघव जवान हो गया| 

अब रगाव की शादी भी हो गए और राघव ने कामकाज की भाग दौड़ भी अपने हाथ में ले ली| राघव जब भी कारखाने में जाता लोगों पर चिल्लाता रहता था| वह न किसी छोटे को देखता है और ना किसी बड़े की उम्र का लिहाज करता था, बस उन पर चिल्लाता रहता था और बदतमीजी से बात करता था| राघव के पिताजी भी अब बूढ़े हो गए थे और धीरे-धीरे राघव का व्यवहार अपने पिताजी के लिए भी बुरा होता जा रहा था| राघव अपने पिताजी का भी आदर सम्मान नहीं करता था| 

एक दिन राघव के पिताजी बीमार हो गए, लेकिन राघव ने अपने पिताजी की बिगड़ी हुई हालत पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और उनकी हालत दिनभर दिन बिगड़ती ही गई| अब राघव के पिताजी की हालत इतनी ज्यादा खराब हो गई थी कि वह चल फिर भी नहीं पाते थे, वह सारा दिन अपने कमरे में बिस्तर पर लेटे रहते थे| फिर एक दिन रगाव के पिता जी का देहांत हो गया|

राघव धन दौलत में कमाने में इतना ज्यादा व्यस्त हो गया था कि वह अपने से छोटों को प्यार और बड़ों का सम्मान करना बिल्कुल भूल ही गया था| उसे लगता था कि अगर उसके पास पैसा है तो उसके पास सब कुछ है| जिसकी वजह से सभी उसका आदर सम्मान करते है| 

फिर कुछ सालों के बाद राघव के घर पर एक लड़के का जन्म हुआ, जिसका नाम उसने रवि रखा| राघव ने अपने बच्चे का बड़े प्यार के साथ पालन पोषण किया और अच्छे शहर के बड़े स्कूल में पढ़ाया| अब रवि भी बड़ा हो गया और वह पढ़ाई पूरी करके वापिस अपने घर आ गया| अब रवि ने अपने कारोबार की भागदौड़ को संभालना शुरू कर दिया| 

अब राघव की उम्र भी काफी ज्यादा हो गई थी और वह बूढ़ा होने लगा था| अब रवि ने सारा काम अपने हाथ में संभाल लिया था जैसा रवि ने बचपन से देखा था कि उसके पिताजी किसी का आदर सम्मान नहीं करते हैं, वह भी ठीक वैसा ही करने लगा| वह भी बड़ों का आदर सम्मान नहीं करता था और ना ही अपने पिताजी का आदर सम्मान करता था और उनसे ढंग से बात भी नहीं करता था| 

फिर राघव की हालत भी एक दिन काफी बिगड़ गई और वह बीमार हो गया| तब रवि ने अपने पिताजी के ऊपर ज्यादा ध्यान नहीं दिया| वह अपना पैसा कमाने में व्यस्त रहा| यह देखकर राघव को बहुत बुरा लगा और वह अपने कमरे में बैठकर रोने लगा तब उसे एहसास हुआ कि उसने अपने बच्चों की परवरिश सही ढंग से नहीं करी है| वह खुद अपने से बड़ों का आदर सम्मान नहीं करता था तो उसका बच्चा भी अपने से बड़ों का आदर सम्मान नहीं करता है| 

तब राघव को इस बात का एहसास हुआ कि जो मैंने अपने पिताजी के साथ किया है आज वही सब कुछ मेरे साथ हो रहा है| तब राघव को अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ, लेकिन अब राघव कुछ नहीं कर सकता था ना तो अपने पिताजी की सेवा कर सकता था क्योंकि उसके पिताजी का तो बहुत साल पहले देहांत हो गया था और ना ही वह अपने लड़के रवि को कुछ समझ सकता था| ऐसे ही कुछ सालों के बाद राघव और उसकी पत्नी का भी देहांत हो गया| 

नैतिक शिक्षा

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें बड़ों का आदर सम्मान करना चाहिए जो सुख हमें बड़ों के साथ प्यार प्रेम से रहकर मिल सकता है वह हमें धन दौलत से नहीं मिल सकता| जीवन की असली ख़ुशी धन दौलत में नहीं बल्कि बड़ों के प्यार में होती है|

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बजुर्गों के लिए बने रीती रवाज़ों की कहानी

यह कहानी हिमाचल प्रदेश के एक केलोंग जिले के एक छोटे से गांव की है| जहां पर बुजुर्गों को घर में रखने की अनुमति नहीं होती थी| गांव में एक प्रथा थी कि जब भी कोई व्यक्ति बूढ़ा हो जाता था, उसे किल्टे में डालकर दूर पहाड़ी पर अकेला रहने के लिए छोड़ दिया जाता था और वह अपना बाकी का जीवन वही पहाड़ी पर रहकर व्यतीत करता था| 

एक दिन गांव के आदमी रामलाल अपने बूढ़े पिता किशोरी राम को किल्टे में बिठाते हैं और दूर पहाड़ी पर लेकर जाने लगते हैं| तभी रामलाल का छोटा बच्चा मोहन अपने पिता से जिद करता है कि आप मुझे भी साथ लेकर चलें| उसके बार बार जिद्द करने पर उसके पिता रामलाल अपने बेटे की बात मान लेते हैं और अपने बेटे को साथ लेकर अपने बूढ़े बाप को किल्टे में बिठा कर दूर पहाड़ी पर छोड़ने के लिए ले जाते हैं| 

काफी देर चलने के बाद वह पहाड़ी पर पहुंच जाते हैं और किल्टे पहाड़ी पर रख देते हैं| फिर राम लाल अपने बूढ़े बाप को वहीं छोड़ कर वापस घर की ओर चलने लगता हैं| थोड़ी दूर चलने के बाद रामलाल का बेटा मोहन अपने पिताजी से कहता है कि पिताजी हम किल्टे को वहां पर क्यों छोड़ आए हैं तो रामलाल कहता है कि बेटा अब हमें इसकी कोई जरूरत नहीं है| इसलिए मैं किल्टे को वहीं पर छोड़ आया हूँ| पिता की बात सुनकर मोहन कहता है कि पिताजी लेकिन इसकी मुझे बहुत जरूरत है

फिर रामलाल अपने बेटे से पूछता है कि तुम्हें इसकी क्या जरूरत है? तो मोहन बताता है कि आपके पिताजी बुड्ढे हो गए तो आप उन्हें किल्टे में बिठाकर पहाड़ी पर छोड़ आए हैं| जब आप बूढ़े हो जाएंगे तो मैं भी आपको इसी किल्टे में बिठाकर पहाड़ी पर छोड़ आऊंगा| यह बात सुनकर कुछ समय के लिए राम लाल सुन हो जाता है और उसे अपने किए पर बहुत पछतावा होता है| रामलाल फिर अपने बेटे को साथ लेकर वापस पहाड़ी पर जाता है और अपने पिता के पास जाकर उनसे माफी मांगता है और उन्हें किल्टे में छुपा कर वापस घर ले आता है| 

राम लाल अपने पिताजी को अपने घर में एक कमरे में छुपा कर रखता है| काफी दिन बीत जाते हैं रामलाल और उसके पिता के बीच प्यार पहले से भी ज्यादा बढ़ जाता है| लेकिन गांव में अभी किसी को भी इस बात की भनक नहीं थी कि रामलाल अपने पिता को वापस घर ले आया है| फिर 1 दिन गांव में किसी बात को लेकर कोई चर्चा चल रही थी, सभी लोग अपने अपने विचार दे रहे थे| तभी रामलाल ने अपने पिता को पूरी बात बताई तो पिताजी की सलाह के अनुसार रामलाल ने सभी के बीच जाकर अपना विचार प्रकट करा| 

रामलाल का विचार सुनने के बाद गांव के अन्य लोग भी उसके साथ सहमत हो गए| फिर कभी भी जब गांव में जब कभी चर्चा होती या किसी बात को लेकर झगड़ा होता तो अक्सर ही रामलाल अपने पिता को सारी बात बताता और पिताजी के कहे अनुसार वह गांव में जाकर अपने विचार रखता और झट से फैसला करवा देता था| क्योंकि रामलाल के पिता किशोरी राम जी को अपने जीवन में ऐसे बहुत से अनुभव लिए हुए थे| उन्हें हर बात के बारे में मालूम होता था कि कब क्या और कैसी बात करनी चाहिए| 

उधर दूसरी तरफ रामलाल जब भी चर्चा में अपने विचार रखता है तो लोग उससे बहुत खुश होते और हैरान भी होते कि रामलाल की उम्र तो इतनी छोटी है और इसके विचार कितने बड़े हैं| इस प्रकार रामलाल की पूरे गांव में इज्जत पहले से ज्यादा हो गई| फिर एक राम लाला सोचने लगा कि अगर मैं अपने पिताजी को उस दिन घर वापस नहीं लाता तो उनसे मुझे यह बातें सीखने को ना मिलती और ना ही मेरी गांव में इतनी ज्यादा इज्जत होती| 

फिर कुछ दिनों के बाद गांव में फिर कोई चर्चा हुई और रामलाल ने फिर अपने विचार रखे| तब गांव वालों ने हैरान होकर रामलाल से पूछा कि तुम्हे इतने अच्छे विचार आते कहां से हैं|तब राम लाल ने मुस्कुराते हुए कहा कि मुझे यह विचार मेरे पिताजी से मिले हैं| जब भी किसी बात की चर्चा होती है, मेरे पिताजी इसके बारे में मुझे सलाह देते और उनका आशीर्वाद लेकर ही आपके सामने मैं अपने विचार रखता हूँ| वह हमारे बुजुर्ग हैं, जो हमसे ज्यादा जीवन व्यतीत कर चुके हैं| जिन्हें हमसे ज्यादा जीवन का अनुभव है और उनके अनुभव के साथ ही मैं अपने विचार आपके सामने रख पाता हूँ| 

यह सुनकर सभी लोग खुश हो गए और सब गांव वालों को पता चल गया कि रामलाल ने अपने बूढ़े पिता को किल्टे में डालकर पहाड़ी पर नहीं छोड़ा बल्कि अपने पास घर पर ही रखा है| फिर सभी लोगों ने गांव में च रही इस प्रथा को हमेशा के लिए खतम कर दिया और सभी लोग अपने बजुर्गों के साथ अपने ही घर में ख़ुशी ख़ुशी रहने लगे|

नैतिक शिक्षा

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने बड़े बुजुर्गों का आदर करना चाहिए और उनके द्वारा दी गई सीख को अपने जीवन में अमल करना चाहिए|  क्योंकि उनके द्वारा दी गई सीख से हम फर्श से अर्श तक भी पहुंच सकते हैं।

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Conclusion

उम्मीद करते हैं कि हमारे द्वारा शेयर करी गई Moral Stories on Respecting Elders in Hindi को पढ़कर आपको अच्छा लगा होगा और सभी कहानियों को पढ़कर आपको अच्छी सीख भी मिली होगी| उम्मीद करते है कि कहानियों को पढ़ने के बाद आप भी अपने जीवन में अपने से बड़े बुजुर्गों का आदर सम्मान जरूर करेंगे, उनसे प्यार करेंगे|

उम्मीद करते हैं कि हमारे द्वारा शेयर करी गई कहानियां आपको पसंद आई होगी| अगर आप हमे कोई राय देना चाहते हैं तो नीचे कमेंट बॉक्स में कमेंट कर सकते हैं।

FAQ (Frequently Asked Questions)

बुजुर्गों के लिए बने रीति रिवाज की कहानी में कौन सी प्रथा की बात हुई है?

बुजुर्गों के लिए बने रीति-रिवाजों में बुजुर्गों को किल्टे में डालकर घर से दूर पहाड़ी में अकेले रहने के लिए छोड़ कर आने के रीति रिवाज की बात हुई है।

अपने से बड़ों का सम्मान कैसे करना चाहिए?

अपने से बड़ों से हमें हमेशा सिर झुकाकर विनम्रता के साथ बात करनी चाहिए| जब भी हमारे घर पर कोई बड़े बुजुर्ग आते हैं तो हमें हाथ जोड़कर उनको नमस्कार करना चाहिए और उनके पांव छूकर आशीर्वाद लेना चाहिए|

हमारे जीवन में बड़ों का क्या महत्व है?

हमारे जीवन में बड़े बुजुर्गों का होना बहुत जरूरी है, क्योंकि उनसे हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है और जिस परिवार में बड़े बुजुर्गों का सम्मान नहीं होता उस परिवार में सुख शांति कभी भी नहीं होती।

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